बड़ी विपदा का अंदेशा तो हो रहा था लेकिन हम ठहरे मध्यमवर्गीय जो बेहद गम्भीरता पर ही गम्भीर होते हैं।
डायलिसिस डायरी संस्मरण संस्करण – 1
आज डायलिसिस के दौरान एक नए गुर्दा फेलियर मरीज को देखा तो उसके परिजनों के मायूस चेहरों को देखकर अनायास ही अतीत की गहराइयों में खो गया हालांकि उनके परिजनों व बीमार को ढांढस बंधाते हुए बीमारी से लड़ने का आत्मबल तो दिया लेकिन खुद को अतीत के सागर में गोते लगाने से नही रोंक सका। उधर मेरी डायलिसिस द्रुत गति से दौड़ रही थी दक्ष तकीनीकी टीम कुशलकारी से तबियत को नियंत्रण में लेकर स्थिर बनाये हुए थी।
वो 2011 की आखिरी रात जब सारा देश जश्न के साथ 2012 के आगमन की तैयारी कर रहा था उस रात मेरे घर मे उदासी सन्नाटा पसारे हुए थी। चक्कर आ रहे थे और खड़े होने तक का साहस नही था। हालांकि किसी बड़ी विपदा का अंदेशा तो हो रहा था लेकिन हम ठहरे मध्यमवर्गीय जो बेहद गम्भीरता पर ही गम्भीर होते हैं। उस दौर में मध्यम व निम्नमध्यम वर्ग में रूटीन चेकअप आदि बमुश्किल ही होता था और गांव देहात में तो डायलिसिस का नाम तक बहुत कम लोग जाना करते थे।
खैर जैसे तैसे रात कटी और सुबह हुई। 2012 की सुबह तमाम घरों में बेशक खुशी का पैगाम लाई हो लेकिन मेरे यहां दुख भरा सन्देश लाई। मेरे अनुज ने एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती करवाया। जहां काफी प्रयास के बाद चिकित्सक इस निर्णय पर पहुंचे की राष्ट्रीय राजधानी के किसी बड़े गुर्दा रोग विशेषज्ञ से मरीज को दिखवाया जाय। मुझे आज भी याद है सर्दी की वह रात और मेरी लगभग 3 साल की लाडली, 1 साल का पुत्र, पत्नी और अनुज मुझे लेकर दिल्ली की गलियों में किस तरह भटके थे। सारी रात किसी अस्पताल ने एडमिशन के लिए हामी नही भरी, सम्भवतः यूरिया/क्रीएटिनिन अत्यधिक था। महज इत्तेफाक था कि अगले दिन सुबह आरएमएल दिल्ली में गुर्दा रोग का कैम्प लगा था और वहां के एचओडी ने गम्भीरता से लेते हुए फौरी तौर पर दाखिला देकर उपचार शुरू किया था।
आज उन परिजनों का दुःख देख अपना अतीत याद आ गया और बरवस जीवन का वह पन्ना पलट गया जिसे मैं आज भी नही भुला पाया था।अभी सोंच में डूब उतरा ही रहा था तब तक टेक्नीशियन की आवाज आई सब ठीक है ना! टेक्नीशियन बीच बीच मे बातचीत कर मनोस्थिति व शारीरिक स्थिति से भी अवगत होते रहते हैं।
मेरी तन्द्रा भंग हुई और मैंने कहा हा सर सब ठीक है। उन्होंने कहा डायलिसिस पूरी होने वाली और औपचारिकताएं पूरी करने में मशगूल हो गए। आवश्यक जांचों के साथ उन्होंने मेरी 1248 वी डायलिसिस से मुक्त किया। डायलिसिस उतर चुकी थी लेकिन विचार मन मे चल रहे थे। अब आज वापस जा रहा हूँ लेकिन यह सप्ताह में नियमित तीन बार की आवश्यक प्रकिया है जिससे हर हाल में गुजरना ही है इसलिए परसों यानी चित्रगुप्तवार (गुरुवार) को आपसे रूबरू होऊंगा तब तक के लिए जय जय श्री चित्रगुप्त भगवान 🙏
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