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राजकीय रज़ा महाविद्यालय व सरकार के समक्ष हाईकोर्ट के भी आदेश बौने, सक्सेना महिला प्रवक्ता मनोविज्ञान द्वारा असंगत निर्देश न मानने के क्रम में उत्पीड़न की श्रृंखला व सरकारी व्यवस्था पर प्रश्न उठाती आखिरी सच की रिपोर्ट।

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आज आखिरी सच न्यूज पोर्टल का सन सनीखेज खुलासा रामपुर के राजकीय रज़ा स्नाकोत्तर महाविद्यालय रामपुर प्रशासन व विभागाध्यक्ष, व शासन की जबर्दस्त यथार्थ पर आधारित पीडि़ता की कहानी पीडि़ता की ही जुबानी, जबकि मनोविज्ञान विषय की महिला प्रवक्ता को नियोजित षडयंत्र के तहत मनोवैज्ञानिक, मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान किया गया है। व उक्त 50 वर्ष से ज्यादा उम्र की कायस्थ महिला प्रवक्ता विगत 18 वर्षों से खानाबदोश जीवन जीने को विवश है, उच्चस्तरीय प्राधिकारियों के लिये भी यह सब केवल टाइम पास के मुद्दे हैं। पूर्व व वर्तमान सरकारें व उच्च अधिकारी भी मूक दर्शक बने बैठे हैं। आखिर इन गैर जिम्मेदार जनता के भगवानों को जिम्मेदार कैसे बनाया जाए।

पीडि़ता की कहानी उसी की ज़बानी।

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से चयन के बाद रामपुर रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर में प्रवक्ता मनोविज्ञान के पद पर 27/12/2000 से कार्यकार्यभार ग्रहण किया।

‘मिठाई’ मांगने को मैंने सहजता से लिया था। जैसा प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा श्रीमती नीरा यादव जी को लिखे पत्र में स्पष्ट है।

संक्षेप में, प्राचार्य सतीश कुमार और विभागाध्यक्ष डॉ पी एन अरोरा के योजनाबध्द निरंतर  सासामाजिक,  मानसिक,  आर्थिक उत्पीडन के अतिरिक्त  व्यभिचारी मांगो, अश्लील व्यवहारों द्वारा यौन उत्पीड़न भी इतना बढ गया कि प्रोबेशन अवधि में नौकरी का जोखिम उठाकर भी सचिव उच्च शिक्षा को

उचित माध्यम से पत्र रजिस्ट्री करना पड़ा (17/12/2000  रजिस्ट्री नंबर नीरा यादव जी को लिखे पत्र में)

 

यह पत्र प्राचार्य सतीश कुमार द्वारा सचिव को नहीं भेजा गया।

शारीरिक प्रहार भी कराया गया।

नीरा यादव जी को लिखने के बाद  अनुचित दबाव डालने के लिए पिछली तारीख में आरोप पत्र तैयार कराया गया -जिसके आरोपों को स्वयं अधिकारी कोर्ट में आधारहीन लिख कर दे चुके हैं। अखबार में आरोप सिद्ध होने का झूठा नोटिस प्रकाशित कराकर भी अपमानित किया गया प्रदेश भर में।

यह सब स्पष्टतः आपराधिक षड्यंत्र रचने के कारण ही था।

कोर्ट भी इसे दोषपूर्ण दर्ज कर चुका है।

ध्यान रहे कि कार्यस्थल उत्पीडन के दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई और उच्चतम न्यायालय के निर्देश की निरंतर अवमानना की गई। कानूनहीनता का षड्यंत्र आज तक जारी है।

 

न्यायालय में भी झूठा एफिडेविट दिया गया कई बार। ‘विशाखा कमेटी’ जिसमें एक सदस्य गैरसरकारी विशेषज्ञ होना अनिवार्य है और जिसे 90 दिन में ही रिपोर्ट देनी होती है- कभी नहीं बनी। पर प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा के एफिडेविट में झूठ दर्ज किया गया कि विशाखा कमेटी के अनुसार…।

अन्य प्रमुख सचिव ने तीन सप्ताह में गलती सुधारने का अंतिम अवसर मांगा कि यदि प्राचार्य या अन्य व्यवहार अनुपस्थिति का कारण है तो एरियर दिए जाने चाहिए।

पर अभी तक कोई ईमेल नहीं प्राप्त हुआ है। बेघर होने के कारण अधिकारियों से न्यायालय के दौरान भी ईमेल से ही आदान प्रदान होता था।

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार इन मामलों में दोषियों के साथ जरा भी नरमी नहीं की जानी चाहिए पर यहाँ एक को एक्सटेंशन और एक को पदोन्नति दी गई। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश की धज्जियां उडाई गई। पीडिता को अतिरिक्त मानसिक यातना और मनोबल तोडऩे का प्रयास अब भी जारी है।

लाकडाउन के दौरान मानवाधिकार आयोग को भेजे पत्र में यौन उत्पीडन की शिकायतों के पत्रों की बात छिपाई गई।यह Prejury   के समकक्ष है क्योंकि न्याय में बाधा डालने का काम किया है।

पता चला एक अधिकारी के मिलने आने के बाद झूठे दावे कि “ध्यानपूर्वक जांच करने के बाद”   बंद कर कार्यस्थल उत्पीडन के दोषियों को बचाने का प्रयास किया है।यहां उच्चतम न्यायालय के जज एवं कानून अधिकारी केस देखते हैं अतः कानून का ग्यान नहीं है नहीं कहा जा सकता अर्थात भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा ही कह सकते हैं।

आयोग पुनः खुलवाने पर आदेश देकर पुनः बंद कर देता है केस कि ” हर कालेज में इंटरनल कमेटी (जिसमें एक गैरसरकारी विशेषज्ञ अनिवार्य है) बनाई जाए ….पर इसी केस में 18 वर्ष के संघर्ष के बाद भी यह कमेटी नहीं बनाई गई इस तथ्य अर्थात अपराध को दबा दिया गया। अपराधी अधिकारी बचाए गए।

पुनः ध्यान दिलाना चाहूँगी कि इस केस में उच्चतम न्यायालय के अनिवार्य कानून के अनुसार विशाखा कमेटी का गठन नहीं किया गया है।

प्राचार्य,  प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा 2002 से अब तक, अध्यक्ष उ प्र महिला आयोग,  जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक भी कानून पालन न करने के दोदोषियों के प्रति कोई कार्रवाई नहीं कर पाए हैं । अपितु दोषियों को बचाने के लिए दीर्घकालिक आपराधिक षड्यंत्र चल रहा है। क्योंकि 2002 से अद्यतन जानकारी के बाद भी मुख्यमंत्री कार्यालय- सचिवालय और जिला स्तर के अधिकारियों के  मौन और सूचनाओं को छिपाने को सहज नहीं कहा जा सकता।

केन्द्रीय मंत्री को, मानवाधिकार आयोग को तथा सूचना अधिकार के तहत भी उत्पीडन और उच्चतम न्यायालय की अद्यतन अवमानना के तथ्य मंशापूर्वक छिपाए गए।

माननीय उच्चतम न्यायालय के संज्ञान की अपेक्षा में।

18 वर्ष तक जहाँ आईएएस स्तर के अधिकारी और सरकारी अधिकारी उच्चतम न्यायालय के कानून का भी उपहास कर सकते हो वहाँ कितने सुरक्षित है हम ? कितने सुरक्षित है?

उच्चतम न्यायालय के निर्देश व कानून के अनुसार ‘ विशाखा कमेटी जिसमें एक गैरसरकारी विशेषज्ञ होना अनिवार्य है’ न बनाकर पीडिता के विरुद्ध दोषपूर्ण कार्रवाई व आपराधिक षड्यंत्र सचिवालय स्तर तक से अद्यतन जारी।

वर्तमान प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा सुश्री मोनिका जी व अध्यक्षा महिला आयोग सुश्री बाथम भी मौन।मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री के ईमेल पर भेजी उत्पीडन सूचनाओं पर भी कोई कानून सम्मत कार्रवाई नहीं।

क्या है पूरा  मामला?

विषय : – प्राचार्य डॉ सतीश कुमार एवं विभाग प्रभारी डॉ . पी.एन , अरोड़ा द्वारा गत तीन सत्रों से की जा रही  व्यभिचारी मांगों का विरोध करने के कारण मेरे प्रति मानसिक सामाजिक , आर्थिक शैक्षिक हिंसा और प्रतिभा उत्पीड़न शारीरिक हिसा करवाने के संदर्भ में ।

उपरोक्त से ध्यान भटकाने हेतु उनके द्वारा राष्ट्रहित एवं शिक्षा जगत के लिए आत्मघाती , खतरनाक राजनीति खेलने के संदर्भ में।

अपने विद्यार्थी जीवन में सदैव प्रथम स्थान -प्रथम श्रेणी प्राप्त करते हुए मैंने लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश के माध्यम से 27.12.2000 को राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामपुर  में प्रवक्ता मनोविज्ञान का पदभार ग्रहण किया । उत्साहपूर्वक कार्य करते हुए प्रथम पूर्ण सत्र 2001- 2002 में ही गत बीस वर्षों की तुलना में 500 प्रतिशत बेहतर परिणाम दिया। यह गुणवता दूसरे सत्र 2002-2003 में भी बनी रही इसकी अभिव्यक्ति मेरी CR में नहीं की गई। दोनों सत्रों में CR ‘ खराब ‘ रिकार्ड की गई। मुझे प्रकाशित पुस्तक पर मध्यप्रदेश का शाइरे वतन २००३ सम्मान भी प्रस्तुत किया गया।

Joining के समय मिठाई मांगना “।

मिठाई के पैसे तो हम निकलवा लेगे ” आदि को मैने सहजता से लिया था । ‘ मिठाइकोडवर्ड है , यह बाद में ज्ञात हुआ। इस समय मेरे पास रचनात्मक एवं शैक्षणिक उपलब्धियों के अतिरिक्त बेरोजगारी का अतीत और कर्ज का वर्तमान था।

मुख्य समस्या तब हुई जब जनवरी – फरवरी के दौरान प्राचार्य के साथ घूमने वाले वरिष्ठ प्राध्यापक लगातार अभद्रतापूर्ण व्यवहार करते रहे। इससे मैं बहुत असहज और असहाय अनुभव करती थी। इससे मुझे कक्षा में कार्य करने में बाधा पड़ती थी। मैंने सोचा कि प्राचार्य स्वयं ही उन्हें रोक देगें, पर डेढ़ माह तक भी उनके वैसा ही व्यवहार करते रहने पर मैंने प्रत्यक्ष रूप से प्राचार्य के नोटिस में लाना आवश्यक समझा ताकि मौखिक और सहज रूप से समस्या सुलझ जाए। किंतु प्राचार्य ने अत्यन्त उत्तेजित होकर असंयमित भाषा में मुझे ही प्रताड़ित किया, ” नेतागिरी करने आई हो या नौकरी करने? इनका नाम दुबारा मुंह से न निकालना। ” अगले दिन मैंने महाविद्यालय में प्रवेश करते ही प्राचार्य को उन्ही प्राध्यापक की बगल में कुर्सी पर बैठकर अभद्र ढंग से पुकारते मुस्कराते और भद्दे इशारे करते देखा। यह स्पष्ट संदेश था कि प्राचार्य छेड़खानी करने वाले प्राध्यापक के साथ हैं। पुनः एक बार बात बढ़ने पर जब मैं बुरी तरह रो पड़ी और लिखकर शिकायत देने लगी तो प्राचार्य और उनके दल के प्राध्यापकों द्वारा कई – तरह की धमकियां मुझ तक पहुंचने लगी। हम पांच लोगों से कह देगे कि इन्हें छेड़ो तुम किस – किस की शिकायत करोगी? पांच लोग लिख देगें मैडम ही छेड़ रही थी, तुम्हारी ही बदनामी होगी। ऐसी जगह स्थानान्तरण करा देगें जहां दिन – दहाड़े उठाकर ले जाएगें। हमारी जान – पहचान के लोग हर जगह हैं। इसी दहशत में मैंने एक कविता लिखी थी।

यहां कुत्ते हैं वहां भेड़िये होगें। कमेटी में तो हमी ही लोग बैठेगें तुम्हें ही निराशा होगी। मेरी बेटी होती तो मैं भूल जाने की ही सलाह देता। तुम लड़की हो इसलिए शिकायत मत करो। यह रामपुर है। प्रोबेशन में तो कोई ना बोलती थी और फिर बोलने लायक होते ही और आ जाएगी। ऐसी सूचना भी दी गई जिसमें धमकी निहित थी। ‘ इस महाविद्यायल में सीआरपीएफ के अधिकारी की पुत्री के साथ कार्य समय में सामूहिक बलात्कार हो चुका है। मुझे पता था कि प्राचार्य दल कुछ भी सिद्ध कर सकता है, कुछ भी करा सकता है, और कोई भी आरोप लगा सकता है। मुझे बताया गया था कि इनके संबंध खतरनाक लोगों से हैं। प्राचार्य इसी महाविद्यालय में प्राध्यापक रह चुके हैं और डा . पीएन अरोड़ा ( विभाग प्रभारी ) भी इसी जनपद के निवासी। इसी महाविद्यालय में पढ़े और इसी महाविद्यालय में २० वर्षों से भी अधिक समय से पढ़ा रहे हैं। शहर में लगभग सभी से इनकी जान – पहचान और तालमेल है। इसी समय रामपुर रेलवे स्टेशन की एक महिला कर्मचारी पर झूठा छेड़खानी का आरोप लगाने पर उसे दंड देने का समाचार अखबारों में था, इसने भी विपरीत दवाब डाला। मैं अकेली आत्मनिर्भर और अविवाहित युवती हूं, और नौकरी खोने का खतरा नहीं ले सकती थी। अतः अन्तिम सीमा तक धैर्यपूर्वक सहती रही। इसके बाद प्राचार्य द्वारा खुले आम मुझे प्रताड़ित किया जाने लगा। सबके बीच अपमानित करना, झूठे आरोप लगाकर नोटिस देना, मेरे उत्तर एवं पत्रों की प्राप्ति देने से कर्मचारियों को मना कर देना, वेतन काटना, आर्थिक हानि पहुंचाना तथा अपने मित्र प्राध्यापकों को छेडखानी करने की छूट देना बढ़ गया। कई बार इतनी बाते कहीं जाती जिन्हें सुनकर सामान्य रह पाना संभव नहीं है। प्राचार्य से सीधे बात करने से मैं बचती थी। कार्यालय में कोई मेरा पत्र रिसीव नहीं करता था, और रजिस्ट्री करने पर आर्थिक दंड मुझे  मिलता और बिना प्राप्ति पनदेने पर उसका दुरूपयोग किया जाता। मेरी आर्थिक स्थिति भी कमजोर थी व कर्ज में थी। इस तरह प्राचार्य अपने पास आने के लिए तरह – तरह से बाध्य करने का प्रयास करते । महाविद्यालय के बाद के घंटो में भी आने के लिए कहा गया। मेरे अविवाहित होने पर भी टिप्पणी की जाती। हर बात लिखी नहीं जा सकती क्योंकि वे वास्तव में अकल्पनीय स्थिति है। आधार पाशविक वातावरण से घबराकर राष्ट्रीय महिला आयोग को भी एक नाम रहित पत्र डाला था। मैं भयभीत थी क्योंकि अपनी ‘ ऊपर तक पहुंचर और शिकायत की तो …

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‘ की धमकियां मुझे दी गई थीं। अप्रैल में परीक्षा डयूटी के दौरान भी निरीक्षण के समय ये प्राध्यापक कमरे के अन्दर और बाहर लगातार गलत व्यवहार करते जिससे निरीक्षण में बाधा पड़ती और झेलना कठिन हो जाता था। प्राचार्य से कहने का कोई लाभ नहीं था। वे स्वयं शामिल थे। वह 11-7-2001 को एक नोटिस दिया गया जिसका उत्तर मैंने तुरंत ही लिखकर दे दिया। इसमें उपरोक्त घटनाओं का जिक आ गया था। कुपित होकर 12-7-2001 को सभी के सामने प्राचार्य द्वारा मुझे बुरी तरह प्रताड़ित किया गया। वरिष्ठ प्राध्यपकों द्वारा कनिष्ठ प्राध्यापकों की अमानवीय गिग का दृश्य था। महाविद्यालय में अब ऐसा वातावरण था कि यदि कोई मेरे साथ बुरा और हानिकारक व्यवहार करता तो वह प्राचार्य से पुरस्कार का हकरदार हो जाता था। यह क्रम इतना बढ़ा कि मैं मानसिक और शारीरिक रूप से टूट गई और 2 दिन बाद 14-7-2001 को अपनी अस्वस्थता की सूचना और मुख्यालय अवकाश देकर दिल्ली चली आई। 14-7-2001 को तीव्र वर्षा थी और इसमें भीगने से मेरी तबीयत और बिगड़ गई। समय – समय पर अस्वस्थता की सूचना लिखित और मौखिक माध्यमों से प्राचार्य को दी जाती रही पर 21-8-2001 को शासन को इन शब्दों में पत्र भेजा गया जिससे मेरी गलती को आभास हो। ऐसी स्थिति में मेरी अस्वस्थता का कारण शारीरिक से अधिक मानसिक दहशत थी। जब भी मैं रामपुर जाने को स्वयं को तैयार करती पुनः तीव्र ज्वर हो जाता।

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3-9-2001 को चिकित्सा व स्वस्थता प्रमाण पत्र लेकर में Join करने आई तो प्राचार्य ने कहा यदि अस्वस्थता शब्द लिखा तो Joining नहीं करा पाऊंगा , घूमती रह जाओगी। ” मुझे संदेह भी नहीं था कि प्राचार्य पद से मुझे धोखा दिया जाएगा। ये तथ्य सप्रमाण मेरे द्वारा शासन को उपलब्ध कराऐ जा चुके हैं। 10 नवम्बर 2001 को पूरा समय मैं महाविद्यालय में रही। 11 रविवार था और फिर दीवाली अवकाश। नियमानुसार मुख्यालय अवकाश रजिस्टर में पृष्ठ 16 पर अपना पता लिखकर मैं चली गई। फिर अपरिहार्य शैक्षिक शोध कारणों से फोन और तार द्वारा आकस्मिक अवकाश का आवेदन किया। 28-11-2001 को महाविद्यालय में मुझे प्राचार्य द्वारा दो नोटिस इस संदेश के साथ प्राप्त हुए कि “अब दो साल एक्सटेंशन हो गया है कुचलकर रख दूंगा। ” 10-11-2001 के पत्र में आरोप था कि मैंने इस दिन पीरियड नहीं लिया जबकि इस दिन मेरा पीरियड नहीं था। यह प्राचार्य कार्यालय में उपलब्ध उस वर्ष के विद्यार्थी उपस्थिति रजिस्टर से सिद्ध हो जाएगा। प्रयोगात्मक कक्षाएं ‘ऑल्टरनेट वीक’ में होती थीं। दूसरे में 15-7-2001 लिए गए अवकाश के बारे में आरोप था। जिसके समुचित प्रमाण शासन को मेरे द्वारा भेजे जा चुके हैं। 26-12-2001 को मेरे आने से पहले ही उपस्थिति रजिस्टर में अनुपस्थित लिख दिया गया। नोटिस दिया गया जिसके जवाब की प्राप्ति मुझे नहीं दी गई। 12 फरवरी 2002 को प्राचार्य को मैंने रजिस्टर्ड डाक द्वारा पत्र भेजा जिसमें मुझे रजिस्टर में

उपस्थिति दर्ज होने पर भी वेतन प्राप्त न कराने तथा अनियमितता का तथ्य बताया गया तथा उनके कार्यालय द्वारा प्राचार्य आदेश कहकर किसी भी पत्र की प्राप्ति न देने की बात भी कही गई। फिर भी 21 मार्च 2002 तक उपरोक्त अवधि का वेतन बैंक में न पहुंचने पर प्राचार्य से सीधे बात करी। प्राचार्य ने मुझसे खाली कागज पर हस्ताक्षर करने को कहा गया तथा मना करने पर ‘सीआर’ खराब करने की धमकी दी गई। विनम्रता से अपनी निष्ठा दर्शाने पर प्राचार्य बोले- यहां टॉपर ही सुसाईड करते हैं। उन दिनों रूहेलखंड विश्वविद्यालय के टॉपर एमबीए छात्र द्वारा निम्न आंतरिक आकलन के कारण आत्महत्या का मामला सुर्खियों में था। (26 मार्च की ‘सीएल’ दी थी और शेष होली अवकाश था। किंतु यह स्वीकृत नहीं हुआ और दीवाली की तरह होली अवकाश का वेतन भी काटा गया।)

1 अप्रैल 2002 को ( अपरिहार्य ) कारण बताकर मेरी परीक्षा डयूटी निरस्त की गई। 2 अप्रैल 2002 को महाविद्यालय गेट पर प्राचार्य कार्यालय कर्मचारी विनीत द्वारा शारीरिक बलप्रयोग सहित प्राचार्य आदेश के तहत दुर्व्यवहार किया गया। प्रमाण उस रजिस्टर में है।

 

3 मई 2002 को कर्मचारी सुधीर द्वारा भी प्राचार्य आदेश के तहत नोटिस देने के बहाने अपमानित किया गया। इसकी मेरे द्वारा लिखित सूचना भी दी गई। इन षड्यंत्रकारी गतिविधियों से घबराकर मैंने जिलाधिकारी महोदय को उपरोक्त व्यवहारों और धमकियों तथा साजिश की संभावना से अवगत कराया तथा उनसे आश्वासन मिलने पर निश्चित हो गई। शीघ्र ही जिलाधिकारी महोदया का स्थानान्तरण हो गया था। फिर ग्रीष्म अवकाश हो गया। (मेरा प्रथम सत्र था। जुलाई में ज्ञात हुआ कि इस वर्ष विभाग का परिणाम गत 20 वर्षों की तुलना में 500 प्रतिशत बेहतर है।) 07-10-2002 को खराब सीआर की कॉपी और विभाग की वरिष्ठ सहयोगी को भड़काना और विभाग प्रभारी डा . पी.एन. अरोड़ा द्वारा शारीरिक प्रहार की धमकी और अपशब्द कहना साथ – साथ ही हुए। सूचना जिलाधिकारी महोदय को दी गई। इस समय विभाग प्रभारी डा . पीएन अरोडा की पुत्री का विवाह तय हो चुका था और भी उन्मुक्त होकर अश्लीलता पर उतर आए थे। शहर से बाहर शादी में जाएगें एक और केविन वाली दावत खाएगें ‘जैसे शब्दों की जानकारी अल्पीकृत और संयमित भाषा में प्राचार्य को दी और प्रभारी को भी पत्र दिया कि ऐसी बातें और व्यवहार छोड़कर नई स्वस्थ शुरूआत करें पर वे और हिसक हो उठे। इसका मेरे मन पर बहुत पीड़ादायक घातक प्रभाव पड़ा। डा . अरोड़ा हाथ जोड़कर सफाई भी देते कि ‘ 3 नम्बर ‘ पाने के लिए प्राचार्य को खुश करने के लिए उन्हें सब करना पड़ता है। नहीं तो वे प्राचार्य नहीं बच पायेंगे महोदय, प्राचार्य से मिलने से बचा जा सकता था पर विभाग प्रभारी से नहीं। प्राचार्य भी डा . अरोड़ा को कुत्सित करने में प्रोत्साहित करते थे। उन्हें अलग कमरा दिया गया जहां जाना और भी असुरक्षित हो गया। मुझे स्वयं उनके पास जाने हेतु दवाब डाला जाता था। कर्मचारी से मना किया था कि मुझसे कोई भी कागज ना लें। स्वयं जाने दें। (समुचित प्रमाण उपलब्ध है।) मुझे स्टेशनरी कक्षा में विद्युत आदि सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी। जिसकी जानकारी प्राचार्य को लिखित रूप से भी दी। इससे मेरी सामाजिक छवि, संबंध और व्यवहार भी प्रभावित हुआ। अकेले रहकर यह सब सहना और भी अवसादपूर्ण था । मेरे रचनात्मक लेखन पर भी प्रभाव पड़ा। ऐसे ही जीने – मरने के द्वंद की स्थिति में मैंने लोकायुक्त महोदय को पत्र लिखकर पीड़ा कम करनी चाही जो लोकायुक्त कार्यालय में 4720/2002/2/6791 संख्या पर दर्ज है।17-12-2002 को उचित माध्यम से प्रेषित रजिस्ट्री संख्या 0347 ( ए.डी ) सचिव महोदय को सम्बोधित की गई। जिसमें उपरोक्त द्वारा शारीरिक आघात की धमकी , अश्लील व्यवहारों एवं सभी प्रकार के harrassment व हिंसा का जिक कर अपनी दशा से अवगत कराया था, जिसके संचयी प्रभाव से तीन अद्यतन पर नहीं पार्थी प्राचार्य द्वारा यह पत्र 25-01-03 तक सचिव महोदय को महाविद्यालय सेवित नहीं किया गया। मेरे द्वारा यह जानकारी लेने के बाद 27-01-2003 को मुझे रजिस्ट्री प्राप्त हुई जिसे 25-01-03 को प्राचार्य द्वारा प्रेषित किया गया था। इसमें मात्र खाली कागज था। पूछने पर बताया कि धोखे से चला गया होगा पर अब मुझे यह भी षड़यंत्र का एक हिस्सा लगता है। 8-8-2003 को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी श्रीमती परवीन द्वारा मुझ पर नियोजित ढंग से शारीरिक प्रहार कराया गया। सभी ने बताया कि यह योजना बहुत दिन से थी फिर भी पूर्वाग्रह रहित होकर मैने प्राचार्य को आवेदन दिया और परवीन के इस आपराधिक व्यवहार का सम्भावित कारण भी सुझाया कि कुछ दिन पूर्व घन्टा बजने के बाद परवीन द्वारा विद्यार्थी को उसकी मर्जी के खिलाफ पान लाने भेजने पर मैंने कहा था, ” किसी और से मंगवा लो , इसे क्लास में जाने दो। ” इसके बाद परवीन को अपशब्द बोलता छोड़कर मैं वहां से चली गयी थी। मेरा परवीन से और ना ही किसी अन्य कर्मचारी से दुर्भाव है। बल्कि सब अत्यधिक सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखते हैं। यहां ध्यान चाहूंगी कि इसी परवीन ने राजकीय कन्या महाविद्यालय, रामपुर की पूर्व प्राचार्या एवं संयुक्त निदेशक रह चुकी डा . नलिनी चन्द्रा के साथ भी शारीरिक बल प्रयोग किया था। जिसके कारण यहां से इस महाविद्यालय में स्थानान्तरित की गई। यही प्राचार्य वरिष्ठ प्राध्यापक डा . उपाध्याय के साथ भी दो कर्मचारियों से नोटिस देने के बहाने हाथापाई करा चुके हैं, जिसकी सूचना थाने में दर्ज कराई गई और कार्यवाही भी हुई। यह घटना विभाग प्रभारी डा , अरोडा एवं स्वयं प्राचार्य द्वारा विभिन्नमाध्यमों से लगातार किए जा रहे harrassment से ध्यान भटकाने के लिए किया गया कुत्सित प्रयास है। प्रताडित प्राध्यापक भी हैं , पर प्राध्यापिका को प्रताडित करने में व्यभिचार की दिशा भी जुड़ जाती है। तथ्य एवं साक्ष्य छुपाने , मिटाने , जुटाने में उपरोक्त मुझसे अधिक समर्थ है । भड़काया अन्य सहयोगियों व कर्मचारियों का भी गया पर वे शीघ्र ही साजिश समझ गए । परवीन समझने में असमर्थ रही । ( वह कम्पशैनेंट आधार पर नियुक्त है । 9-8-2003 को मैं जिलाधिकारी से मिलने गई पर व्यस्तता के कारण वे मिल नहीं पाई । महाविद्यालय आने पर शाम तक मुझे प्रताड़ित कर आत्महत्या के लिए प्रेरित किया गया । पुलिस बुलाने के लिए कार्यालय फोन का उपयोग नहीं करने दिया गया और ना ही मेरी बिगड़ती हुई शारीरिक दशा के कारण कहने पर भी एम्बुलेंस का प्रबन्ध किया गया। महाविद्यालय की एक प्राध्यापिका जिनके पति डाक्टर हैं . मुझे उन्हें सौंप दिया गया कि अपने साथ ले जाओ और कहीं मत जाने देना। 10-8-2003 को उनके घर से बैंक जाने को कहकर मैं गई और इसी मनोदशा में पुलिस अधीक्षक महोदय को प्रथम सूचना फैक्स द्वारा दी। फैक्स में त्रुटिवश यह तिथि 10-10-2003 हो गई है। 11-8-2003 को एक नोटिस मिला जिसमें पहले की तरह खानापूर्ति हेतु कमेटी की सूचना थी।

मैने अस्वीकार कर शासन को संदर्भित करने का निवेदन किया प्राचार्य पार्टी से  न्याय की संभावना शून्य थी। 12 को रक्षाबंधन अवकाश था। 13-8-2003 को मुझमें बोलने की शक्ति नहीं थी। और आवसाद में थी। 14-8-2003 को प्राचार्य कक्षा में भुलाकार प्राचार्य एवं उनके दल द्वारा निकृष्टतम रूप की मुझे इतना अपमानित , प्रताडित और आतंकित किया गया कि अपनी अस्मिता और जीवन रक्षा के लिए भागने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था। स्टेशन लीव देकर रामपुर से चली गई। स्टेशन लीव देने में भी गिरोहबद्ध होकर एक घंटा बुरी तरह प्रताड़ित किया गया और खतरनाक धमकियां भी.दी। तबसे हर प्रकार की दहशत और हानि के साथ में इधर – उधर भटक रही हूँ। मेरे पास अधिक धन भी नहीं है जो इस तरह अधिक दिन जीवन यापन कर सकू और आवेदन छपाई . डाकखर्च आदि व्यय उठा सकू। कृपया शीघ्र अतिशीघ्र मुझे निर्देश देने की कृपा कर कि मैं क्या करूं जिससे कि मैं सुरक्षित रहकर कार्य निष्पादन कर सकू। महोदय विद्यालय में कोई भी प्राचार्य मशा के विरूद्ध विदित कारणों से कुछ नहीं लिखेगा या कहेगा। आपसे विनम्र निवेदन है कि शारीरिक हिंसा के अतिरिक्त मेरी मानसिक , सामाजिक , आर्थिक और शैक्षिक हत्या की गई है जो कि मेरा प्रथम concern है। शिक्षण , प्रशिक्षण , लेखन , प्रकाशन , रेडियो आदि में मेरा वर्षों से सक्रिय योगदान रहा है। मेरे कई assignment समाचारपत्र शोधपुस्तक आदि इन्हीं कारणों से पूरी नहीं हो पाये जिससे मेरी छवि , नया सीखने , योगदान और कार्य – सतुष्टि पर भी घातक प्रभाव पड़ा है । प्रतिभा पोषण का स्थल प्रतिमा हत्या का स्थल बन गया है । महोदय , मेरा सविनय अनुरोध है कि निष्पक्ष उच्चस्तरीय जांच के द्वारा काई प्रकार की हत्या के दोषी शिक्षित अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देकर उच्च शिक्षा स्थलों को इस घृणास्पद , गिरोहबद्ध आपराधिक कार्यों और प्रतिभाशाली निष्ठावान शिक्षकों की गैर – संवैधानिक रैगिंग से बचाया जाये श। मुझे न्याय दिलाया जाए ताकि मैं इसी उत्साह , निष्ठा और गुणवता से कार्य निष्पादन करती रहूं। मेरे पास प्राचार्य के दोषी होने का साक्ष्य तथा अपने निर्दोष होने का साक्ष्य और श्रीमती परदीन के शारीरिक प्रहार करने का साक्ष्य पर्याप रूप से उपलब्ध है । – अबिलम्ब सुधारात्मक , दंडात्मय एवं उपचारात्मक कार्यवाही की अपेक्षा में।

वही कोर्ट का आदेश आज तक इस प्रबन्धन व प्रशासन समिति के समक्ष बौना व नतमस्तक है। क्या यह सरकार की मशीनरी की उदासीनता नहीं है?

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