नोटा बटन की मतदाताओं में बढ़ती लोकप्रियता- शैलेन्द्र भट्ट।
हाल ही में हुए चुनाव के परिणामों में स्पष्ट हुआ कि लाखों मतदाताओं ने नोटा के बटन को दबाकर मैदान में खड़े सभी उम्मीदवारों के खिलाफ अपना असंतोष व्यक्त करने का फैसला किया है जो कि नोटा विकल्प की बढ़ती शक्ति का संकेतक है।

कुछ समय पूर्व 2016 में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में से करीब दो दर्जन से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में, जीत का अंतर नोटा वोट की कुल संख्या से कम था। गोधरा में, जहां भाजपा ने 15 वर्षों में पहली बार कांग्रेस से सत्ता जीत ली थी, नोटा वोटों की संख्या 3,050 थी, जबकि प्रत्याशी केवल 258 वोटों से जीता था। 2015 में बिहार में हुए विधानसभा चुनावों में नोटा के तहत मिले 2.49% वोटों को देखा गया था, जो अब तक की किसी भी विधानसभा चुनाव में अब तक का सबसे बड़ा हिस्सा है।
उपरोक्त आंकड़े ये दर्शाते हैं कि जब नोटा विकल्प नहीं था तब इन मतदाताओं ने या तो मतदान नहीं किया होगा या फिर खुद को मजबूर किया होगा उम्मीदवारों में से एक के पक्ष में अपनी मतपत्र डालें। अभी नोटा की शुरूआत के बाद से केवल चार साल हुए हैं, और इसकी वैधता के लिए यानि लोकतंत्र में नोटा की क्या भूमिका हो सकती है ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जिस तरह मतदाता नोटा का प्रयोग कर रहे हैं उससे लगता है कि आम जनता राजनैतक पार्टियो के उमीदवारों के प्रति अपना हार्दिक आक्रोश व्यक्त कर रही है, और क्यों न करे क्योंकि –
1) पिछले तीन-चार दशकों में धनबलियों, बाहुबलियों और आपराधिक छबि वालों की राजनीति में तादाद बढ़ती गयी है। सांसंदों या विधायकों में उनकी दागदार छवि वालों की संख्या 40% के आसपास बतायी जाती है।
2) वर्तमान समय में राजनैतिक दलों और उनके सदस्यों का एक ही सिद्धान्त रह गया है कि कोई सिद्धांत नहीं है केवल और केवल मौकापरस्ती है, जहां लाभ उधर चलो की नीति है। इसलिए सभी दलों में दलबदलुओं की भरमार है, जिसे भी जिताऊ समझते हैं उसे अपनी ओर खींच लेते हैं। मेरी राय में, सिद्धांतहीनता व्यक्तियों में ही नहीं दलों में होती है जो सिद्धांतहीनों का बढ़चढ़कर स्वागत करते हैं, बेशर्मी से अपने कदम सही ठहराते हुए।
3) आज की राजनीति में परिवारवाद चरम पर है। राजनेता कहते हैं, डाक्टर का बेटा डाक्टर, वकील का बेटा वकील, उद्यमी का बेटा उद्यमी तो राजनेता का बेटा क्यों नहीं राजनेता हो सकता है? मेरा यहाँ, सवाल है कि क्या राजनीति भी डाक्टरी, वकालत, उद्यमिता इत्यादि की तरह का ही धंधा है? जीवन-यापन और धन कमाने का व्यवसाय है क्या राजनीति? जिन व्यवसायों से तुलना की जाती हैं उसमें समाजसेवा या सामाजिक व्यवस्था को सुचारु और कुशल बनाने का ध्येय नहीं होता है।
अब पुनः मुद्दे की बात करते हैं, वोटिंग निर्वाचन प्रक्रिया में एक इच्छा या राय की औपचारिक अभिव्यक्ति है। अस्वीकार करने का अधिकार यह दर्शाता है कि मतदाता मतदाता के पास चुनाव के दौरान किसी भी उम्मीदवार के लिए विकल्प चुनने का मन नहीं है। यह तब हो सकता है जब एक मतदाता यह महसूस करता है कि उम्मीदवारों में से कोई भी निर्वाचित होने के योग्य नहीं है। यह उसकी पसंद, विश्वास, सोच और अभिव्यक्ति के माध्यम से होता है, यानि अस्वीकार करने का अधिकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित है। यह मतदाता भागीदारी का भी एक प्रश्न है, राजनीतिक दलों के खिलाफ स्तरहीन उम्मीदवार खड़ा करने से हुई हताशा का संकेत है। यहाँ मेरा विस्वास है एक दिन जब राजनीतिक दल यह जब यह महसूस करेंगे कि बड़ी संख्या में लोग उनके द्वारा खड़े किये उम्मीदवारों के नाम को अस्वीकार कर रहे हैं, तो धीरे-धीरे नोटा एक प्रणालीगत विकल्प में परिवर्तित हो जाएगा, और राजनीतिक दलों को क्षेत्रीय लोगों और उम्मीदवारों की इच्छा को स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यदि नोटा वोट के रुझानों का विश्लेषण किया जाये तो इसमें एक खास बात स्पष्ट होती है, भविष्य में यदि कभी नोटा को बहुमत मिलता है तो विशेष निर्वाचन क्षेत्र में हुए चुनाव को निरर्थक और शून्य भी घोषित किया जाना चाहिए हालाँकि ये प्रावधान अभी लागू नहीं है और निर्वाचन आयोग को ऐसे नियमों को लागू करना चाहिए कि यदि नोटा को बहुमत मिलता है तो ये नियम होना चाहिए कि जो उम्मीदवार पहले मैदान में लड़े थे उन्हें फिर से कभी भी या कुछ समय के लिये चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
यदि किसी भी उम्मीदवार के लिए वोट किए गए मतों से नोटा वोट ज्यादा हैं तो नए उम्मीदवारों के साथ दूसरे दौर का चुनाव होना चाहिए। वैधानिक प्रतिबंधों के बिना, यह राजनीतिक दलों को योग्यता पर उम्मीदवारों को नामांकित करने की आवश्यकता को सिखाता है, न कि जाति, धर्म या भाषा के हिसाब से। वर्तमान परिवेश में ये निश्चित नहीं है कि राजनीतिक दल इस विशेष प्रस्ताव का पालन करेंगे लेकिन ऐसे नियम तैयार करने से निश्चित रूप से मतदाताओं को अपने नोटा वोट का इस्तेमाल करने के लिए बेहतर प्रोत्साहन मिलेगा। मेरी राय में, लोकतंत्र को जीवित रहने के लिए, यह जरूरी है कि देश के उचित शासन के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध उम्मीदवार का चयन होना चाहिए और यह केवल उच्च नैतिक और नैतिक मूल्यों के उम्मीदवारों के चयन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, शायद सच ही कहा है किसी ने –
सच के खातिर बस जूनून चाहिए, जिसमे उबाल हो ऐसा खून चाहिए।
यह आसमान भी आएगा जमीं पर,
बस इरादों में सच्चाई की गूंज चाहिए।
शैलेन्द्र भट्ट
जयपुर, २ फरवरी २०१८
मेरे आसपास हो रही बहुत सी बातें मेरे मन में बहुत सारे विचारों को जन्म देती हैं, मेरे विचारों से लोग सहमत होंगे मैं इस भ्रम में कभी नहीं रहता।
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