शिनाख्त उन लड़कियों की, जिनकी लाशें उन्हीं के घर के आंगन में गड़ी हैं।
मनीषा पांडेय का यथार्थवादी लेख
इस समाज में औरत इंसान नहीं, मर्द की निजी संपत्ति है। न उसकी जिंदगी कीमती है, न उसकी मौत। उसे कभी भी, कहीं भी, कितनी भी मामूली सी बात के लिए जान से मार डाला जा सकता है। घर की सो कॉल्ड इज्जत बचाने का ठेका सिर्फ और सिर्फ उसके कंधों पर है। मर्द के सिर पर ऐसा कोई बोझ नहीं।
लोगों ने जब उसे देखा तो उसकी लाश एक नदी की पुलिया पर लोहे के गर्डर्स के बीच झूल रही थी। सिर नीचे की ओर लटका हुआ था। नदी के मुहाने पर झूल रहा था और पैर लोहे के दो सरियों के बीच फंस गए थे। चेहरा नीला पड़ चुका था, पूरी देह अकड़ गई थी। पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उसकी लाश वहां से निकाला। लड़की ने नीले रंग का ट्राउजर पहन रखा था, जिस पर लंबी-लंबी सफेद धारियां थीं. ऊपर गुलाबी रंग का टॉप था।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने बताया कि लाश मिलने के कुछ ही घंटे पहले उसकी मौत हुई थी। थोड़ी देर पहले वो हंसती-मुस्कुराती 17 साल की लड़की थी, जो पलक-झपकते लाश में तब्दील हो गई।
यह घटना है उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के एक गांव संवरेजी खर्ग की, जो महुआडीह थाना क्षेत्र में पड़ता है। लड़की का नाम है नेहा पासवान, उम्र 17 साल। नेहा अपने माता-पिता के साथ लुधियाना में रहती थी और छुट्टियों में गांव आई हुई थी। शहर की तरह यहां गांव में भी वो जींस पहनती थी। उसके चाचा और दादा को ये बात नागवारा गुजरी तो विरोध करने पर उन्होंने लड़की को इतनी बुरी तरह पीटा कि उसकी मौत हो गई।
ऐसा भी नहीं कि लड़की को मारकर उन्हें कोई दुख, पश्चाताप, अपराध-बोध कुछ भी हुआ हो। दीवार से सिर पटक-पटककर, हाथ और डंडे से उस पर वार कर उसे जान से मारने के बाद चाचा और दादा की अगली योजना उसकी लाश को ठिकाने लगाने की थी। अपनी पोती और अपनी भतीजी की लाश को ठिकाने लगाने निकले दादा और चाचा को रास्ते में एक नदी दिखी तो उन्होंने उसी नदी में लाश बहाने की सोची। वे लाश को लेकर देवरिया के कसरा रोड स्थित पटनवा पुल पर पहुंचे, लेकिन उसे नदी में फेंक नहीं पाए। फेंकने की कोशिश में पैर लोहे के पुल के दो गर्डर्स के बीच फंस गया। लाश उल्टी झूलने लगी। दादा-चाचा वहां से भाग खड़े हुए, लेकिन पुलिस ने उनकी शिनाख्त भी कर ली है और उन्हें धर दबोचा है।
हत्या का मुकदमा लगा है। मान लेते हैं सजा भी हो जाएगी। इसलिए इस अपराध की शिनाख्त करने के बजाय थोड़ा पीछे लौटते हैं और उन लड़कियों की शिनाख्त करते हैं, जिनकी लाशें उनके अपने घर के आंगन में काटकर गाड़ दी गई हैं। जो अपने पिता, पति, भाई, चाचा, दादा के हाथों मौत के घाट उतार दी गई हैं। जिनको जान से मार डालना इतना आसान, इतना मामूली सा काम है, मानो इमली की डाल तोड़ना। और सबसे कमाल की बात तो ये है कि हर साल परिवार की इज्जत के नाम पर मौत के घाट उतारी जा रही 20,000 लड़कियों की ऑनर किलिंग के लिए कुल 576 धाराओं वाली इस देश की दंड संहिता में अलग से एक भी कानून नहीं है। कानून वही लागू होता है यहां भी, हत्या का। इज्जत के नाम पर हत्या का नहीं।
पिछले साल की शुरुआत की बात है। उत्तर प्रदेश के जनपद हाथरस के बूलगढी़ गांव की राष्ट्रीय सुर्खिंयों में रहने वाली मनीषा बाल्मीकी जो कि मुद्दा 14 सितम्बर से 1 अक्टूबर तक इसमें तरह तरह के उतार चढ़ाव देखनें को मिले, लेकिन फलाना दिखाना समाचार पोर्टल पर जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई, उसने यह साबित किया कि किस प्रकार परिवार नें अपने द्वारा किये गये आँनर किलिंग के केस में अपने द्वारा किये केस में पहले मनीषा के प्रेमी संदीप सिंह को फँसाना तीसरे दिन मंजु दलेर सांसद पुत्री के द्वारा डीजीपी को लिखे गये पत्र से तीन नाम और बढ़ाना, चारों से य उनके परिवार य स्थानीय समाज से वास्तविक सच्चाई को नही समझकर नियोजित षडयंत्र प्रसारित करना। दूसरा केस शहर मैनपुरी में एक लड़की थी चांदनी। उसने घरवालों की मर्जी के खिलाफ प्रतापगढ़ के एक लड़के अर्जुन से शादी कर ली। घरवालों ने चांदनी को प्यार से बहला-फुसलाकर अपने घर बुलाया। कुछ दिन बाद उसकी लाश उन्हीें के घर के खेत में गड़ी मिली। खेत में गाड़ने से पहले पिता, चाचा, भाईयों ने चांदनी को लाठियों से पीटा था। उसकी हड्डियां तोड़ दी थीं।
ऐसे ही एक और लड़की की कहानी है। यूपी के चंदौली में रहने वाली 21 बरस की प्रीती। उसे भी उसके घरवालों ने जान से मार डाला। उसका अपराध सिर्फ इतना था कि उसने अपनी मर्जी से शादी की थी।
ऐसे जाने कितनी लड़कियां हैं, जिन्हें कभी जींस पहनने तो कभी अपनी मर्जी से किसी से प्रेम करने, शादी करने के लिए मौत के घाट उतार दिया गया। मारने वाले भी कोई और नहीं थे। उनके अपने ही सगे माता-पिता, भाई, घर के लोग, वो सब जो उससे प्यार करने का दावा करते थे।
पिछले साल नवंबर में तमिलनाडु के नागपट्टिनम में एक 17 साल की लड़की को उसके घरवालों ने जिंदा जला दिया क्योंकि उसने अपनी मर्जी से एक दलित लड़के से शादी कर ली थी।
घरवालों ने लड़की पर पेट्रोल डालकर उसे आग लगा दी और अपनी आंखों के सामने उसकी चीखें सुनते रहे। कोई मदद के लिए नहीं आया। लड़की जलकर लाश हो गई।
पिछले ही साल अक्तूबर में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में एक बाप ने अपनी 14 साल की बेटी की हत्या कर दी क्योंकि बेटी प्रेग्नेंट हो गई थी। किसी के साथ उसका प्रेम था। इस काम में बाप की मदद की उसके बेटे और लड़की के भाई ने, कई दिनों बाद जब लड़की की सिर कटी लाश दूर के गांव के नाले में मिली, तब जाकर यह मामला खुला। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में पता चला कि लड़की प्रेग्नेंट थी।
लेकिन अगर आप ठीक-ठीक ये जानना चाहते हैं कि ऐसी कितनी प्रीती, कितनी नेहा, कितनी चांदनी हैं तो इस देश में तो आपको इससे जुड़ा आंकड़ा कहीं नहीं मिलेगा। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने आखिरी बार 2016 में ऑनर किलिंग के आंकड़े बताए थे। उसके बाद उनकी सालाना रिपोर्ट में से ऑनर किलिंग की कैटेगरी ही हटा दी गई। अब घर की इज्जत के नाम पर की जा रही हत्याओं का आंकड़ा भी सामान्य हत्याओं के आंकड़े में ही शुमार होता है। इतना जरूर है कि इंटीमेट पार्टनर किलिंग नाम की एक कैटेगरी में वो ये बता रहे होते हैं कि कितनी लड़कियों और औरतों को उनके पति, प्रेमी, बॉयफ्रेंड और इंटीमेट पार्टनर ने मौत के घाट उतार दिया।
एक गैर सरकारी संगठन ‘ऑनर बेस्ट वॉयलेंस अवेयरनेस नेटवर्क’ के आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर साल 1000 ऑनर किलिंग की घटनाएं होती हैं, जिसमें से 900 अकेले उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में होती हैं। दक्षिण भारत में काम कर रहे एक एनजीओ ‘एविडेंस’ की रिपोर्ट कहती है कि अकेले तमिलनाडु में 2019 में ऑनर किलिंग की 195 घटनाएं हुईं, जिसमें से एक भी केस एनसीआरबी के आंकड़े में दर्ज नहीं है।
साल 2012 की बात है। तमिलनाडु राज्य लॉ कमीशन ने एक बिल पेश किया। ये बिल इस बारे में विस्तार से बता रहा था कि क्यों हमें आईपीसी की धारा 300 से इतर ऑनर किलिंग के मामलों के लिए अलग से एक कानून की जरूरत है।
अलग से जो कानून बनाया जाएगा, उसका प्रारूप कैसा होगा? उसमें किन-किन बातों पर विशेष जोर होगा?
किस तरह ये कानून ऑनर किलिंग को सिर्फ किलिंग से इतर ज्यादा गंभीर और जघन्य अपराध मानने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करेगा कि अपनी मर्जी से प्रेम और विवाह करने वाले कपल्स को कानूनी सहायता, सुरक्षा और काउंसलिंग की मदद मिले।
लेकिन आपको पता है कि उस प्रस्ताव का हुआ क्या?
हमारी संसद में जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने उस प्रस्तावित बिल पर बात तक करने से इनकार कर दिया। 7 साल गुजर गए। प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। उस पर किसी ने चूं तक नहीं की।
2019 में जब एक दिन तमिलनाडु से चुने हुए सांसद थोल थिरुमावलवन ने लोकसभा में इस प्रस्ताव पर बात करना चाहा और इस मुद्दे को उठाना चाहा मिनिस्टर ऑफ स्टेट नित्यानंद राय जी ने उसी एनसीआरबी के हवाले से जवाब दिया, जो 2016 के बाद से ऑनर किलिंग के आंकड़े दर्ज करना ही बंद कर चुकी थी।
नित्यानंद राय बोले-
ऑनर किलिंग के तो ज्यादा मामले हैं ही नहीं देश में?
फिर अलग से कानून की क्या जरूरत है?
आईपीसी की मौजूदा धाराएं काफी हैं?”
इसका मतलब ये नहीं है कि लड़की को जान से मारने वाले पिता को जेल नहीं होगी, जरूर होगी, लेकिन इस बात को अलग से रेखांकित नहीं किया जाएगा कि इस हत्या की वजह सिर्फ इतनी थी कि लड़की ने अपने मन से प्रेम कर लिया था।
ऐसा नहीं है कि नेहा को मारने वाला दादा और चाचा को सजा नहीं होगी, लेकिन वहां भी इस बात को अलग से रेखांकित नहीं किया जाएगा कि उस 17 साल की लड़की की हत्या सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि उसने जींस पहनी थी?
इसमें से किसी भी मामले में इस बात को कभी रेखांकित नहीं किया जाएगा कि ये सारे मर्द अपनी बेटियों, बहनों पत्नियों को इसलिए जान से मार डालते हैं क्योंकि आज भी इस समाज में औरत इंसान नहीं, मर्द की निजी संपत्ति है!
न उसकी जिंदगी कीमती है, न उसकी मौत का समय ही निर्धारित है, उसे कभी भी, कहीं भी, कितनी भी मामूली सी बात के लिए जान से मार डाला जा सकता है।
घर की सो कॉल्ड इज्जत बचाने का ठेका सिर्फ और सिर्फ उसके कंधों पर है। मर्द के सिर पर ऐसा कोई बोझ नहीं. उसका काम सिर्फ मां, बहन, बेटी, पत्नी को नियंत्रण में रखना है, और उनके नियंत्रण से बाहर चले जाने पर उन्हें जान से मार डालना मात्र।
हम भी दो दिन नेहा के लिए शोक मनाएंगे, फिर उसी पितृसत्ता को बचाएंगे।
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