GA4

ओबीसी आरक्षण पर समीक्षा क्यों नहीं?, 97% ओबीसी आरक्षण पर समृद्ध जातियों का कब्जा, ट्रेंड हुआ #यादव_कुर्मी_को_जनरल_में_डालो।

Spread the love

लखनऊ (अंकित तिवारी)। ओबीसी और एससी/एसटी समुदाय के जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ न मिलने की चिंताओं की ओर इशारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वे समय-समय पर इसकी समीक्षा करें ताकि इस वर्ग के जरूरतमंद लोगों को आरक्षण का लाभ मिले और संपन्न या सक्षम लोग इसे न हड़पें।

https://twitter.com/indiaagainstR/status/1419146102373113861?s=19

साल 2000 के जनवरी महीने में पूर्ववर्ती आंध्र प्रदेश के राज्यपाल द्वारा जारी किए गए एक आदेश को असंवैधानिक ठहराते हुए पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘अब आरक्षित वर्ग के भीतर चिंताएं हैं। इस समय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर संपन्न और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उच्च श्रेणी के वर्ग हैं। अनुसूचित जातियों/जनजातियों में से कुछ के सामाजिक उत्थान से वंचित व्यक्तियों द्वारा आवाज उठाई गई है, लेकिन वे अभी भी जरूरतमंदों तक लाभ नहीं पहुंचने देते हैं।

इस प्रकार, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षित वर्गों के भीतर पात्रता को लेकर संघर्ष चल रहा है।’

राज्यपाल के इस आदेश के तहत आंध्र प्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों के स्कूलों में टीचर की नियुक्ति में एसटी उम्मीदरवार को 100 फीसदी आरक्षण दिया गया था।

इसका मतलब है कि इस क्षेत्रों में सिर्फ अनुसूचित जनजाति वर्ग के टीचर की ही नियुक्ति होनी थी।

कोर्ट ने कहा कि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है कि 100 फीसदी आरक्षण दिया जाए। साल 1992 में इंदिरा साहनी फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि अधिकतम आरक्षण 50 फीसदी तक ही हो सकता है।

जस्टिस अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के साथ सहमति व्यक्त की कि आरक्षण के हकदार लोगों की सूचियों को समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिए।

एक अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार ओबीसी वर्ग में “यादव, कुर्मी सहित 11 जातियां ऐसीं पाईं गईं जो ओबीसी आरक्षण का 97 फीसदी हिस्से पर कब्जा जमाए हैं। चूंकि इन जातियों का राजनीतिक वर्चस्व है इसलिए ओबीसी वर्ग को ही गुमराह करके पदों पर कब्जा जमा चुकीं हैं। मंडल कमीशन लागू होने के बाद से अब तक कोई समीक्षा नहीं की गई है। न ही scst आरक्षण की समीक्षा की गई है। माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार इस विषय को लेकर केंद्र को फटकार लगाई गई है। परंतु वोट बैंक की राजनीति के चलते आरक्षण के मूल उद्देश्य और उसकी निम्नतम स्तर के लाभार्थी तक पहुंच का रास्ता राजनीति ने बन्द कर दिया है।

अधिवक्ताओं और बुद्धिजीवियों की माने तो ओबीसी आरक्षण का मौजूदा स्वरूप अवैध है क्योंकि यह मंडल कमीशन में दिए गए प्रावधानों और पात्रता के विपरीत है। मंडल कमीशन सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की बात करता है परंतु मौजूदा हालात में यह केवल पिछड़ी जाति के लिए सुलभ है। जबकि मंडल कमीशन के अनुसार वह वर्ग जिसके अधितर लोग प्राथमिक स्तर अथवा प्राथमिक स्तर से नीचे शिक्षा प्राप्त हों, जिन्हें घर से 5 किमी तक पानी लेने जाना पड़ता हो और जिनको अन्य जातियां नीची जाति मानतीं हों। लेकिन संकुचित राजनीतिक मानसिकता और वोट बैंक के फेर में मंडल का मूल स्वरूप कहीं खो गया है। अन्य पिछड़ा वर्ग की जगह अब अन्य पिछड़ी जाति ने ले ली है। उसमें भी राजनीतिक वर्चस्व वालीं मुख्य 11 जातियों ने पूरे आरक्षण पर कब्जा जमा लिया है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति जनजाति आरक्षण में भी कुछ मुख्य जातियां आरक्षण का 90% लाभ ले रहीं हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में वर्ष 2013 में इसके खिलाफ अभ्यर्थी सुमित कुमार शुक्ला रिट याचिका (दायर की गई थी। जिसमें यादव कुर्मी जाट समेत 11 जातियों को ओबीसी आरक्षण दायरे से बाहर करने का आदेश माननीय न्यायालय द्वारा पारित किया गया। उस समय अखिलेश यादव सरकार इस फैसले के विरोध में माननीय सुपीम कोर्ट की शरण मे गयी।

आगे सुमित कुमार शुक्ला के साथ क्या हुआ यह तो शोध का विषय है परंतु सुप्रीम कोर्ट से सुमित कुमार शुक्ला द्वारा अपना दावा वापस ले लिया गया और यह आदेश ठंडे बस्ते में चला गया।

इन जातियों को आरक्षण दायरे से बाहर करने के लिए सोशल मीडिया पर मांग लंबे समय से उठ रही है। इसी कड़ी में 25 जुलाई 2021 को ट्विटर पर #यादव_कुर्मी_को_जनरल_में_डालो ट्रेंड करने लगा। पूरे दिन सोशल मीडिया पर बुद्धिजीवियों द्वारा मोदी सरकार को इस मसले पर स्टैंड लेने के लिए कैम्पेन किया गया।

जनसंख्या विस्फोट और संकुचित संसाधनो की वजह से आरक्षण पर घमासान मचा हुआ है। हर कोई अपनी गिरती साख और प्रतिनिधित्व पर अड़ा हुआ है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा ओबीसी जातिवार जनगणना की मांग पर लोगों ने ट्रोल जमकर ट्रोल किया।

पढ़ें : *Sumit Kumar Shukla and 3 ors Petitioner v. State of UP & 2 Ors.* *Case No – Stay application no – 247959 of 2013 In civil misc Writ Petition – 46249 of 2013*

Advocate – Agnihotri Kumar Tripathi
Anil Bisen Singh for the petitioner CSC.

Hon’ble Sudhir Agrawal J.

https://www.casemine.com/judgement/in/56b492fe607dba348f003a14?utm_source=amp&target=amp_references#

Please Save

www.aakhirisach.com

आज एक मात्र ऐसा न्यूज़ पोर्टल है जोकि “जथा नामे तथा गुणे के साथ” पीड़ित के मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठा कर उनकी आवाज मुख्य धारा तक ले जा रहा है।

हाथरस केस से लेकर विष्णु तिवारी के मामले पर निष्पक्ष पत्रकारिता से आखिरी सच टीम के दिशा निर्देशक ने अपना लोहा फलाना दिखाना समाचार पोर्टल पर मनवाया है। सवर्ण, पिछड़ी एवं अल्पसंख्यक जातियों का फर्जी SC-ST एक्ट के मामलों से हो रहे लगातार शोषण को ये कुछ जमीन के आखिरी व्यक्ति प्रकाश में लाए हैं।

यह पोर्टल प्रबुद्ध व समाज के प्रति स्वयंमेव जिम्मेदारों के द्वारा चलाया जा रहा है जिसमे आने वाले आर्थिक भार को सहने के लिए इन्हे आज समाज की आवश्यकता है। इस पोर्टल को चलाये रखने व गुणवत्ता को उत्तम रखने में हर माह टीम को लाखों रूपए की आवश्यकता पड़ती है। हमें मिलकर इनकी सहायता करनी है वर्ना हमारी आवाज उठाने वाला कल कोई मीडिया पोर्टल नहीं होगा। कुछ रूपए की सहायता अवश्य करे व इसे जरूर फॉरवर्ड करे अन्यथा सहायता के अभाव में यह पोर्टल अगस्त से काम करना बंद कर देगा। क्योंकि वेतन के अभाव में समाचार-दाता दूसरे मीडिया प्रतिष्ठानों में चले जाएंगे। व जरूरी खर्च के आभाव में हम अपना काम बेहतर तरीके से नही कर पायेंगे।

UPI : aakhirisach@postbank

Paytm : 8090511743

Share
error: Content is protected !!