क्या हमारे देश से आरक्षण कभी खत्म होगा, यह सवाल उतना ही ज्वलन्त है जितना, देश की आजादी का प्रश्न था!
हलाकि देश आजाद होने मे कामयाब हुआ पर कुछ अन्य बुराइयों ने जकड़ लिया एक प्रकार से कहें तो आजाद होकर भी गुलाम रह गया।
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, जब दुनिया के तरक्की पसन्द देश अपने युवाओं के प्रतिभा के बल पर तरक्की की उचाइयां छू रहे हैं, तो हमारा देश प्रतिभा का गला घोट रहा है।
सोचिए यदि हमारे युवाओं को प्रतिभा के आधार पर अवसर मिले तो देश इस प्रतिस्पर्द्धा के युग में दुनियाँ को चुनौती देते हुए विकसित राष्ट्र बन सकता है। जिसका फायदा देश में रहने वाले सभी वर्ग को मिलेगा।
क्यों हमारा देश सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर इंजीनियर नौकरशाह इत्यादि नही चाहता?
सबको पता है विकसित देशों के तरक्की में हमारे देश के प्रतिभावान लोगों का बडा़ हाथ व साथ है। वह प्रतिभाएं अपने ही देश में अवसर नही पाने के कारण विदेशों में अवसर तलाशती हैं। और अवसर मिलते ही पूरी लगन से उस देश की तरक्की में जुट जाती हैं।
आरक्षण का कोई स्थाई हल निकालने के बजाय हमारे देश में इसे और ज्यादा बढा़ने की होड़ खत्म होने का नाम ही नही ले रही जिसका गंभीर असर एक वर्ग के मानसिक स्थिति पर पड़ता है। जो आनें वाले कल में सामाजिक विघटन व गृह युद्ध व आन्तरिक कलह का कारण होगा।
आप एक होटल में खाना खाने जाएं और आपसे कहा जाए यहाँ से बाहर निकलिए आप फलां वजह से यहाँ बैठने की स्थिति में नही हैं। उसी प्रकार सामान्य वर्ग में पैदा होने के साथ एक बच्चा प्राइमरी पढा़ई से ग्रेजुएसन तक,छात्रवृत्ति से नौकरी का फार्म भरने तक हर कदम उसकी जाति उसके रास्ते का बाधा बनती है। युवा होते होते वह टूट चुका होता है माता पिता के सपनों को पूरा करने और भविष्य की चिन्ता अन्दर से उसे खोखला बना चुकी होती है।
75 साल आरक्षण और जातिगत तुष्टिकर का मार झेलता यह सवर्ण वर्ग आर्थिक और मानसिक रूप से कमजोर होता जा रहा जिसकी जिम्मेदार हमारे देश की राजनीति नीति नियंता व हमारे समुदाय के दलाल नेतृत्व कर्ता हैं।
शायद हम अपने ही देश और देश के लोगों के प्रति ईमानदार नही हैं। तभी तो आजादी के 75 साल में एक सार्थक बहस तक नही हो सकी इस विषय पर, जबकि समाजिक न्याय की बात करें तो इस देश के 97% संपत्ति पर मात्र 3% लोगों का कब्जा है और सवर्ण आबादी 31% के आसपास है, वह 3% वह हैं जिनका सरकार बैंक लोन माफ करती हैं सब्सिडी देती है।
और समाजिक न्याय का नामपर सामान्य जाति को उनके शिक्षा और नौकरी का अधिकार से भी वंचित किया जाता है।
हर नेता उद्योगपति धनाड्य व्यक्ति को अपने इलाज के लिए एक सर्वश्रेष्ठ डाक्टर चाहिए लेकिन NEET परीक्षा में 60% योग्य प्रतिभागी नये आरक्षण नियम के आधार पर बाहर हो जाएंगे और हमें 60% कम योग्य डाक्टर मिलेंगे।
इस फैसले से सभी आरक्षित वर्ग की बेरोजगारी तो नही दूर होने वाली पर सभी वर्ग को भविष्य में कभी न कभी डाक्टर और इलाज की आवश्यकता होगी, क्या मरीज और उसके परिजन नही चाहेंगे उनका इलाज सबसे अच्छा डाक्टर करे?
उसी प्रकार सभी क्षेत्र मे हम सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं और आरक्षण का समर्थन भी करते हैं क्या यह उचित है?
वही नेता जो आरक्षण के घोर समर्थक हैं पर आरक्षित श्रेणी के शिक्षक से अपने बच्चों को नही पढा़ना चाहते हैं।अपना औद्योगिक संस्थान होटल घर इत्यादि अरक्षित इंजीनियर से नही डिजाइन कराते, अपना इलाज आरक्षण कोटे के डाक्टर से नही कराते हैं?
देश में प्रतिभा के आधार पर अवसर देने की शुरूआत करो समाजिक न्याय खुद बखुद हो जाएगा जब देश बढे़गा तरक्की करेगा तो सभी को रोजगार के पर्याप्त अवसर मिलेंगे !!
आरक्षण नही अमीरों को संरक्षण सभी गरीबों को।
धन्यवाद
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10 अप्रैल से आज तक कई ऐसे जमीनी मुद्दे समाज के समक्ष रखे हैं जो।
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