जगत जननी वैष्णवी सार्वजनिक दुर्गा मंदिर सुपौल, 1880 से होती आ रही है लगातार पूजार्चना।
प्रतापगंज (सुपौल) | Durga Puja 2021: सुपौल जिले के प्रखंड मुख्यालय बाजार स्थित जगत जननी वैष्णवी सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में सच्चे मन से पूजा अर्चना करने पर श्रद्धालुओं की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है, इतिहास साक्षी है, कि यह क्रम लगातार 1880 ई. से लगातार चलती आ रही है मां वैष्णवी की पूजा।
मां की भव्य पूजा मंदिर में प्रत्येक वर्ष जन सहयोग से मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा की स्थापना की जाती है तथा लोग धूम धाम से दुर्गा पूजा मानते हैं। मां दुर्गा का यह मंदिर न सिर्फ प्रतापगंज बल्कि आसपास के कई गांवों के श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। यहां मन्नत पूरी होती आ रही है।
प्रतापगंज प्रखंड क्षेत्र के अलावा छातापुर, राघोपुर, त्रिवेणीगंज, बसंतपुर तथा कई सीमावर्ती क्षेत्र नेपाल सहित अन्य जगहों के भी लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर सपरिवार पूजा-अर्चना के लिए यहां आते हैं।
यहां आए सभी श्रद्धालु पे मां दया दिखाती है तथा ऐसा मान्यता है की यहां सच्चे भाव से पूजा करने पर सभी तरह के कष्ट दूर होती है। आपको बताएं यहां पर दूर दराज से लोग आकर पूजा अर्चना करते हैं।
क्या है मंदिर का इतिहास?
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि हरावत स्टेट (Harawat State) गणपतगंज के राजा चंद्रपत्र कोठारी के द्वारा इस सार्वजनिक दुर्गा मंदिर की स्थापना लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व 1860 ई. में की गई थी।
कहा जाता है कि हरावत स्टेट के उस वक्त के राजा को स्वप्न में आया था कि मंदिर के उक्त स्थान पर मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना करने से उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। तब से अभी तक माता का दर्शन कर लोग अपने श्रद्धा अर्पण करते हैं।
तब उन्होंने एक झोपड़ीनुमा घर बनवा कर माता की प्रतिमा की स्थापना कर पूजा अर्चना आरंभ करवाया। तब से यह सिलसिला निरंतर चली आ रही है। अब माता का भव्य मंदिर सबके सामने है तथा सभी का आस्था का केंद्र बना हुआ है।
मंदिर की विशेषताऐं
- श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है यह मंदिर।
- यहां नवरात्री के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना होती है।
- लोग यहां अपनी मन्नतें रखते हैं, माता किसी को खाली नहीं लौटने देती हैं ऐसी मान्यता है।
- मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु अगले वर्ष नवरात्र पर चढ़ावा चढ़ाते हैं।
- कोसी क्षेत्र व नेपाल से भी यहां श्रद्धालु पहंचते हैं।
वैष्णवी पद्धति से होती है यहां माता की अराधना।
‘यहां सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं माता। यहां मन्नतें पूरी होने पर अगले वर्ष भक्तों द्वारा चढ़ावा चढ़ाए जाने की परंपरा कायम है।’ -प्रमोद झा, पुजारी
‘मंदिर में पारंपरिक पूजा पं. भरोसी झा के वंशज प्रमोद झा करते आ रहे हैं। वर्तमान दौर में मंदिर के पूजा-अर्चना के साथ-साथ मेला आदि की वृहद व्यवस्था भी की जाने लगी है।
उन्होंने कहा “लेकिन इसबार के पूजा- अर्चना व आयोजित मेला में कोरोना गाइडलाइन के अनुपालन की दिशा में पहल किए जाने का प्रावधान किया गया है। जिसके कारण आयोजित मेले पर थोड़ा-बहुत प्रभाव तो पड़ेगा ही।”
यदुनंदन लहोटिया, अध्यक्ष मेला कमेटी।
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