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जलियांवाला बाग कांड, 103वीं सालगिरह, पर आखिरी सच परिवार की शहीदों को श्रद्धांजलि।

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गुलाम भारत की कई दास्तां हैं, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। आज की पीढ़ी जब उन कहानियों को सुनती है तो कभी रगो में खून दौड़ जाता है तो कभी गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। कभी आंखों में आंसू आ जाते हैं, तो कभी क्रोध से भर जाते हैं। गुलाम भारत के इतिहास में एक ऐसी खूनी दास्तां भी है, जिसमें अंग्रेजो के अत्याचार और भारतीयों के नरसंहार की दर्दनाक घटना है। हर साल वह दिन जब भी आता है, उस नरसंहार की यादें ताजा हो जाती हैं।

आज ही के दिन (13 अप्रैल) वर्ष 1919 को जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। रॉलेट एक्ट के विरोध में बैठे लोगों पर जनरल डायर के आदेश पर गोलियां चलाई गई थीं। इसमें कई मासूमों सहित 350 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए थे। आज इस नरसंहार की घटना को 103 साल पूरे हुए है। पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग नाम के इस बगीचे में अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं। निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए।



रॉलेट एक्ट रहा कांड का मुख्य कारण

अंग्रेजी हुकूमत ने 10 मार्च, 1919 को रॉलेट एक्ट (ब्लैक एक्ट) पारित किया गया था। जिसमें सरकार को बिना किसी मुकदमे के देशद्रोही गतिविधियों से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कैद करने के लिए अधिकृत किया गया था। इससे देशव्यापी अशांति फैल गई थी। इस रॉलेट एक्ट के विरोध में गांधी ने सत्याग्रह की शुरुआत की थी। ब्रिटिश अधिकारियों ने गांधी को पंजाब में प्रवेश करने से रोकने और आदेशों की अवहेलना करने पर उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश जारी किए गए थे। पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओ डायर (1912-1919) नें सुझाव दिया कि गांधी को बर्मा निर्वासित कर दिया जाए, लेकिन उनके साथी अधिकारियों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि यह जनता को उकसा सकता है। डॉ सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल, दो प्रमुख नेताओं, जो हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्होंने अमृतसर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। 9 अप्रैल, 1919 को ओ डायर ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश जारी किया था।

जलियांवाला बाग नरसंहार कब हुआ था?

पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह है। 13 अप्रैल 1919 के दिन इसी जगह पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थीं। उस कांड में कई परिवार खत्म हो गए। बच्चे, महिला, बूढ़े तक को अंग्रेजो ने नहीं छोड़ा। उन्हें बंद करके गोलियों से छलनी कर दिया।

https://twitter.com/vinitgurjar744/status/1514072754173140996?t=nE4UYbMHKQZj2WnDa8d0Kw&s=19

क्यों हुआ था जलियांवाला बाग नरसंहार?

दरअसल, उस दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था। हालांकि इस दौरान शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था। लेकिन कर्फ्यू के बीच हजारों लोग सभा में शामिल होने पहुंचे थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे।



क्यों हुई थी लोगों की हत्या 

पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर जलियांवाला बाग नाम से एक स्थान है। इसी जगह पर आज ही के दिन अंग्रेजी हुक्कुमत के खिलाफ रॉलेट एक्ट के विरोध में हजारों सिख यहाँ पर एकसाथ आए थे। कहा जाता है कि अंग्रेजों की दमनकारी नीति, और सत्यपाल और सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ भी लोग इस सभा में एकजुट हुए थे। शहर में कर्फ्यू था और हजारों की संख्या में लोग बैठक में पहुंचे थे। बाग में चल रही सभा में जनरल रेजिनाल्ड डायर पहुंचा और उसने सैनिकों को फायरिंग का आदेश दिया। ऐसा बताया जाता है कि, इस जगह पर 5 हजार लोग मौजूद थे। यहां जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ घेर लिया और यह नरसंहार किया।  इस प्रदर्शन को दबाने के लिए जनरल डायर ने जो अपराध किया, उसने ब्रिटिश साम्राज्य को कुछ सालों तक भारत पर शासन करने की ताकत भले दे दी, लेकिन भारत की जनता इस जख्म को भूल नहीं सकी। जलियांवाला बाग नरसंहार में बहे खून ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन को नई दिशा दे दी।

जलियांवाला बाग का दोषी कौन?

जब ब्रिटिश हुकूमत ने जलियांवाला बाग पर इतने लोगों की भीड़ देखी, तो वह बौखला गए। उनको लगा कि कहीं भारतीय 1857 की क्रांति को दोबारा दोहराने की ताक में तो नहीं। ऐसी नौबत आने से पहले ही वह भारतीयों की आवाज कुचलना चाहते थे और उस दिन अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। सभा में शामिल नेता जब भाषण दे रहे थे, तब ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर वहां पहुंच गए। कहा जाता है कि इस दौरान वहां 5000 लोग पहुंचे थे। वहीं जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ बाग को घेर लिया। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को चेतावनी दिए बिना ही गोलियां चलानी शुरू कर दी।



जलियांवाला बाग नरसंहार के 10 मिनट

ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं। इस दौरान जलियांवाला बाग में मौजूद लोग उस मैदान से बाहर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि बाग के चारों तरफ मकान बने थे। बाहर निकलने के लिए बस एक संकरा रास्ता था। भागने का कोई रास्ता न होने के कारण लोग वहां फंस कर रह गए थे।

https://twitter.com/SherlynChopra/status/1514099177936257027?t=-5AVfWhXEu6QUscWyVhrXg&s=19

लाशों से पट गया कुआँ

अंग्रेजों की गोलियों से बचने के लिए लोग वहां स्थित एकमात्र कुए में कूद गए। कुछ देर में कुआं भी लाशों से भर गया। जलियांवाला बाग में शहीद होने वालो का सही आंकड़ा आज भी पता न चल सका लेकिन डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, तो जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है। ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया। हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे और लगभग 2000 से अधिक भारतीय घायल हुए थे।



जलियांवाला बाग के दोषी से लिया बदला 

इस हत्या कांड के दोषी जनरल डायर की हत्या भी 21 साल बाद एक हिंदुस्तानी के हाथों हुई थी। जिन्हें सरदार उधम सिंह के नाम से जाता जाता है। जलियांवाला बाग में हुए इस नरसंहार का बदला लेने के लिए हिंदुस्तान का शेर सरदार उधम सिंह लंदन पहुंचे थे। उन्होंने कई सालों की योजनाओं के बाद आखिरकार 13 मार्च 1940 को डायर को एक बैठक में स्पीच देते वक्त गोलियों से भून दिया था। भलेही इसके बाद सरदार उधम सिंह सजा मिली लेकिन उन्होंने अपना बदला ले लिया था।


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