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11 जनवरी 1966, उजबेकिस्तान के ताशकंद पर आखिरी सच की पहली नजर, कुलदीप नय्यर व तत्कालीन पेपर की दृष्टि।

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लालबहादुर शास्त्री, भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी।

लाल बहादुर शास्त्री की 11 जनवरी 1966 की रात ताशकंद में अचानक मृत्यु आज भी रहस्य के घेरे में है। उसे लेकर तमाम सवाल आज भी पूछे जाते हैं। आज भी ज्यादातर लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी वो मृत्यु स्वाभाविक तौर पर दिल के दौरे से हुई थी। आखिर क्या हुआ था उस रात उनके साथ आखिरी 03- 04 घंटों में। उनके साथ के लोग उस दौरान घटी घटनाओं के बारे में क्या बताते हैं।

दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद समझौते के लिए सोवियत संघ के शहर ताशकंद गए हुए थे। वहां उन्होंने 10 जनवरी 1966 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को लेकर उन पर काफी दबाव भी था।



समझौते के बाद रात में 1.32 बजे दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। देश के बहुत से अखबार इस घटना को नहीं छाप पाए लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने रात के सिटी संस्करण को रोककर इस खबर को छापा था।खबर को आठ कॉलम में इस हेडिंग के साथ बैनर बनाया गया…

“शास्त्री डाइज आफ्टर ए हर्ट अटैक।”

हालांकि ये खबर ऐतिहासिक समझौते की बड़ी खबरों के बीच लंबी सिंगल कॉलम में आई। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस पर जो रिपोर्ट छापी, वो ज्यों की त्यों हिंदू अनुवाद के साथ पेश है।



ताशकंद, 11 जनवरी। ताशकंद में आज रात 1.32 बजे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का हृदय गति रुकने से निधन हो गया।

पीटीआई की इस खबर में कहा गया, उनका पार्थिव शरीर आज सुबह वहां से विमान के जरिए दिल्ली लाया जा रहा है।

श्री शास्त्री ने रात 1.25 बजे सीने में दर्द की शिकायत की। इसके बाद वो अचेत हो गए। सात मिनट के अंदर ही उनकी मृत्यु हो गई।

ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर के बाद रात में सोवियत संघ के प्रमुख अलेक्सी कोशिगिन ने भोज दिया था, जिसमें शास्त्री स्वस्थ और बेहतर लग रहे थे।

उनके साथ दौरे पर गए मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह ने बताया, जब शास्त्री ने हर्ट अटैक की शिकायत की तो कुछ ही मिनट में भारतीय डॉक्टर वहां पहुंच गया था।

इसके बाद एक रूसी डॉक्टर भी वहां आ गया। उसके बाद दोनों नें मिलकर काफी समय तक उन्हें ठीक करने की कोशिश की लेकिन हृदय ने जवाब देना बंद कर दिया था।

इस समय सोवियत संघ के प्रमुख कोशिगिन उसी जगह हैं, जहां शास्त्री का देहांत हुआ, उनकी आंखों में आंसू हैं।



तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन की खबर जो 11 जनवरी 1966 के अंक में प्रकाशित हुई। अखबार ने मशीन रोककर अपने सिटी एडीशन में इस खबर को प्रकाशित किया था।

इस खबर में नीचे एएफपी के हवाले से कहा गया, निधन की आधिकारिक पुष्टि यहां के स्थानीय समय के अनुसार रात 03.00 बजे की गई जबकि आईएसटी के अनुसार रात 02.00 बजे।

शास्त्री का पार्थिव शरीर विमान से सुबह 09.00 बजे दिल्ली पहुंचेगा। रात्रि भोज के बाद उन्होंने आखिरी बार सार्वजनिक तौर पर इस समझौते पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था। पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के साथ उनका ये एक अच्छा समझौता हो गया।

पाकिस्तान राष्ट्रपति अय़ूब ने इसके जवाब में कहा, अल्लाह सब कुछ सही कर देगा।

इसी खबर में नई दिल्ली से पीटीआई के हवाले से एक खबर जोड़ी गई, राष्ट्रपति ने केंद्रीय गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी है।



उस रात के बारे में साथ गए कुलदीप नैयर ने जो लिखा

उस यात्रा में जाने-माने पत्रकार कुलदीप नैयर भी शा्स्त्री के साथ गए थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा  “बियांड द लाइंस – एन आटोबॉयोग्राफी” में लिखा, उस रात न जाने क्यों मुझे शास्त्री की मौत का पूर्वाभास हो गया था। किसी ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी तो मैं शास्त्री की मौत का ही सपना देख रहा था। मैं हड़बड़ाकर उठा और दरवाजे की ओर भागा। बाहर कॉरिडोर में खड़ी एक महिला ने मुझे बताया, आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं। मैने झट कपड़े पहने और भारतीय अधिकारी के साथ कार में शास्त्री जहां ठहरे थे, उस पर चल पड़ा, जो कुछ ही दूर पर था।

शास्त्री विशाल पलंग में निर्जीव पड़े थे

किताब में आगे लिखा, “मुझे बरामदे में कोशिगिन खड़े दिखाई दिए। उन्होंने अपने हाथ खड़े करके शास्त्री के नहीं रहने का संकेत दिया। शास्त्री विशाल पलंग पर निर्जीव थे। पास ही कालीन पर बड़ी तरतीब से उनके स्लीपर पड़े हुए थे। कमरे के एक कोने में पड़ी ड्रेसिंग टेबल पर एक थर्मस लुढ़का पड़ा था। ऐसा लगता था कि शास्त्री ने इसे खोलने की कोशिश की थी। कमरे में कोई घंटी नहीं थी। इस चूक को लेकर जब संसद में सरकार पर हमला किया गया था तो सरकार साफ झठ बोल गई थी।”


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वर्ष 1966 में ताशकंद समझौते के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान, सोवियत संघ के प्रमुख अलेक्सी कोशिगिन के साथ भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री।


उनके घर से रात में क्या फोन आया था

“रात में दिल्ली से उनके एक अन्य् निजी सचिव वेंकटरमन का फोन आया। जिसमें उन्हें बताया गया कि शास्त्री के घर के लोग खुश नहीं थे। उन्होंने ये भी बताया कि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सुरेंद्र नाथ द्विवेदी और जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी ने हाजी पीर और टिथवाल से भारतीय सेनाओं को पीछे हटाने की आलोचना की थी। जब शास्त्री को ये बात रात में भोज से वापस लौटने के बाद बताई गई तो उन्होंने कहा कि विपक्ष तो समझौते की आलोचना करेगा ही। फिर भी शास्त्री सचमुच इन प्रतिक्रियाओं को लेकर काफी चिंतित थे।”

बेटी ने फोन पर क्या बातचीत की थी

नैयर की किताब के अनुसार, ”रात करीब 11 बजे उनके सचिव जगन्नाथ सहाय ने शास्त्री से पूछा कि क्या वो अपने घर पर बात करना चाहेंगे, क्योंकि पिछले दो दिनों से उनकी अपने परिवार से बात नहीं हो पाई थी। शास्त्री ने पहले तो ना कहा, फिर इरादा बदलकर नंबर मिलाने के लिए कहा। ये भी हाटलाइन थी, इसलिए नंबर तुरंत मिल गया।

“सबसे पहले शास्त्री की दामाद वीएन सिंह से बात हुई। उन्होने कुछ खास नहीं कहा। इसके बाद शास्त्री की सबसे बड़ी और चहेती बेटी कुसुम फोन पर आई। शास्त्री ने उनसे पूछा, तुमको कैसा लगा। कुसुम ने जवाब दिया, बाबू जी हमें अच्छा नहीं लगा। शास्त्री ने अम्मा के बारे में पूछा। यानि शास्त्री जी की पत्नी ललिता जी के बारे में, तब कुसुम ने कहा, उन्हें भी अच्छा नहीं लगा। इस पर शास्त्री जी ने उदास होकर अपने सहयोगियों से कहा, अगर घरवालों को अच्छा नहीं लगा तो बाहर वाले क्या कहेंगे।”


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रात 01:20 बजे शास्त्री ने अपने सहायकों से कहा, डॉक्टर को बुलाओ। आनन-फानन में जब तक भारतीय डॉक्टर चुग वहां पहुंचे, तब तक शास्त्री जी का निधन हो चुका था। उसके बाद रूसी डॉक्टर भी वहां आए। डॉक्टरों के अनुसार उन्हें हर्ट अटैक हुआ था।

क्यों विचलित हो गए थे शास्त्री जी

शास्त्री ने जब कुसुम से अम्मा को फोन देने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि अम्मा बात नहीं करना चाहतीं। शास्त्री जी के बार- बार कहने के बाद भी ललिता जी फोन पर नहीं आईं। इसके बाद शास्त्री जी बहुत ज्यादा विचलित हो गए थे।

सोने से पहले किसने दिया था दूध

इसके बाद रात में सोने के पहले उनके सहायक रामनाथ ने उन्हें दूध दिया, जो हमेशा सोने से पहले लेते थे। इसके बाद शास्त्री जी चहलकदमी करने लगे। इसके बाद उन्होने पानी मांगा। आधी रात से कुछ पहले उन्होंने रामनाथ को अपने कमरे में जाकर सोने के लिए कहा, क्योंकि सुबह जल्दी उठकर काबुल के लिए विमान पकड़ना था। जब रामनाथ ने उन्हीं के कमरे में फर्श पर सोने की इच्छा जताई तो शास्त्री ने ऊपर उन्हें अपने कमरे में जाने को कहा।

रात 01.20 बजे डॉक्टर को बुलाने के लिए कहा

रात 01.20 मिनट पर जब भारतीय प्रधानमंत्री का दल सुबह जाने के लिए अपना सामान बांध रहा थो तो सचिव जगन्नाथ के दरवाजे पर शास्त्री जी दिखाई दिए। उन्होंने बहुत मुश्किल से कहा, डॉक्टर साहब कहां हैं। फिर बैठक में लौटते ही वो बुरी तरह खांसने लगे। उन्होंने सहयोगियों ने बिस्तर तक पहुंचाया। जगन्नाथ ने पानी पिलाया। शास्त्री ने अपनी छाती को छुआ और बेहोश हो गए।

तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था

डॉक्टर चुग तब तक पहुंच चुके थे। उन्होंने जब शास्त्री की कलाई देखी तो उनकी रूलाई छूट गई, उन्होंने फटाफट इंजेक्शन लगाया। कोई प्रतिक्रिया नहीं होने पर मुंह से मुंह की श्वांस प्रक्रिया की। फिर एक लेडी रूसी डॉक्टर भी आ पहुंची।फिर कुछ और डॉक्टर। लेकिन शास्त्री दम तोड़ चुके थे।

परिवार ने उठाये थे मौत पर सवाल

सोवियत संघ के ताश्कंद में 10 जनवरी 1966 को भारत-पाक ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, उसी रात ताश्कंद में ही तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था, उनके परिजनों ने इस पर सवाल खड़े किये थे।

उनके बेटे अनिल शास्त्री के अनुसार उनके पिता की मौत के बाद उनका चेहरा नीला हो गया था, उनके मुंह पर सफेद धब्बे थे, उन्होने कहा था कि उनके पिता हमेशा एक डायरी रखते थे, लेकिन तब वो डायरी नहीं मिली थी, इसके अलावा उनके पास हमेशा एक थर्मस रहता था, वो भी गायब था, इसके अलावा पोस्टमॉर्टम भी नहीं हुआ, उनकी मौत को संदेहजनक मानी जाती है।

वरिष्ठ पत्रकार ने बताया था क्या हुआ था

पीएम की मौत के समय उनके होटल में ही मौजूद रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा और इंटरव्यू में उनकी मौत और उनसे जुड़े कुछ किस्सों के बारे में बताया था, उन्होने कहा कि तब भारत-पाक समझौते की खुशी में होटल में पार्टी थी।



उनकी नींद दरवाजे की दस्तक से खुली, सामने एक रुसी औरत खड़ी थी, जो उनसे कही, यॉर प्राइम मिनिस्टर इज दाइंग। जिसके बाद वो तुरंत कोट पहन नीचे आये, जहां पर रुसी पीएम कोसिगिन खड़े थे, एक पलंग पर शास्त्री का छोटा सा शरीर सिमटा हुआ था, कुलदीप नैयर ने कहा कि वहां जनरल अयूब भी पहुंचे

एक मात्र दौरा जिस पर पत्नी नहीं गई साथ

शास्त्री जी के बेटे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि लंबे समय तक उनकी मां कहती रहती थी कि अगर वो शास्त्री जी के साथ ताशकंद गई होती, तो शायद पिता जी जिंदा होते, उन्होने बताया कि वैसे ये अकेला दौरा था, जब वो अपने साथ पत्नी को नहीं ले गये थे, ये बहुत ही कूटनीतिक दौरा माना जा रहा था, विदेश मंत्रालय ने उन्हें ना जाने का सुझाव दिया है, लाल बहादुर शास्त्री जी के गुजर जाने के बाद उनकी पत्नी ने उनकी अस्थियों को काफी समय तक संभालकर रखा था, जिसे बाद में उन्होने इलाहाबाद के संगम में प्रवाहित किया गया।


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