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भगवान श्री परशुराम के जन्मोत्सव पर, विशेष आलेख आखिरी सच के बिहार प्रभारी उज्ज्वल जी की कलम से।

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भगवान परशुराम की जन्मकथा (उज्ज्वल सिंह)। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। उन्हें 7 चिरंजीवियों में स्थान प्राप्त है। जानिए कैसे हुआ उनका जन्म।

पिता से सीख ली सारी विद्या

त्रेतायुग की शुरुआत में महर्षि जमदग्नि और उनके पत्नी रेणुका के घर पांचवें पुत्र के रूप में श्रीनारायण ने अवतार लिया। उनका नाम “राम” रखा गया। उन्होंने जल्द ही पिता से सारी विद्या सीख ली और शस्त्र की विद्या के लिए स्वयं महादेव की शरण में गए। भगवान भोलेनाथ ने उन्हें शस्त्र और शास्त्र दोनों की दीक्षा दी थी।

शिव जी ने दिया परशु वरदान

“राम” की निपुणता देख उन्होंने एक दिव्य परशु वरदान में दिया, जिसके कारण वह परशुराम कहलाए। इधर, राजा कार्तिवीर्य अर्जुन यानी सहस्त्र अर्जुन ऋषि आश्रम पहुंचा। ऋषि ने सेना सहित उनका सम्मान किया और नंदिनी गाय की कृपा से उन्हें भोजन कराया। सहस्त्र अर्जुन ने नंदिनी गाय को हथियाने के लिए ऋषि आश्रम पर हमला कर दिया और जमदग्नि की हत्या कर दी।



21 बार धरती हुई क्षत्रिय विहीन

क्रोधित परशुराम ने क्षत्रियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और अनाचारी हो चुके क्षत्रियों का भार पृथ्वी से कम कर दिया। परशुराम के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्होंने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। बाद में श्रीराम के अवतार के बाद वह सिर्फ तपस्या करने लगे थे। परशुराम अमर हैं। उनका वर्णन रामायण के बाद महाभारत में भी मिलता है। उन्होंने भीष्म और कर्ण को भी शस्त्र की शिक्षा दी थी।

ऐसे हुआ था भगवान परशुराम का जन्म

परशुराम का जन्म कैसे हुआ, इसकी भी एक रहस्य कथा है। इस कहानी में एक और किरदार आकर जुड़ जाता है, वह है महर्षि विश्वामित्र। वही विश्वामित्र जो श्रीराम के गुरु थे। इस तरह श्रीराम, परशुराम और महर्षि विश्वामित्र तीनों एक ही समय के हैं। खास तौर पर विश्वामित्र और परशुराम में एक खास संबंध है, जो इनके जन्म से जुड़ा हुआ है।



भगवान परशुराम की ये है कथा

कहानी कुछ ऐसी है कि त्रेतायुग की शुरुआत में एक चक्रवर्ती राजा थे महाराज गाधि। गाधि की एक पुत्री थी सत्यवती। सत्यवती का विवाह उस समय के तेजस्वी ऋषि ऋचीक से हुआ था। महाराज गाधि को अपने उत्तराधिकारी के लिए एक शौर्यवान पुत्र चाहिए था। इसलिए उन्होंने ऋचीक से पुत्रेष्ठी यज्ञ कराने की मांग की। दूसरी ओर खुद ऋचीक भी अपनी वंश परंपरा में एक जमदग्नि के बाद एक श्रेष्ठ महर्षि चाहते थे। इसलिए उन्होंने यज्ञ किया जिसके प्रभाव से खीर के दो पात्र प्रकट हुए। उन्होंने एक खीर का कटोरा अपनी सास के खाने के लिए रखा और दूसरा अपनी बहू के लिए। लेकिन बाद में खीर का कटोरा बदल गया, जो ब्राह्मण प्रभाव वाली खीर थी उसे महाराज गाधि की पत्नी ने खा लिया और क्षत्रिय प्रभाव वाली खीर रेणुका (जो कि परशुराम की मां थी) को मिली थी।

Lord Parshuram Birth Story

ब्राह्मण होते हुए भी रहे क्षत्रिय गुण

ऋषि ऋचीक ने कहा कि महाराज गाधि का पुत्र शूरवीर चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी त्रिकालदर्शी ब्रह्मर्षि बनेगा और रेणुका का पुत्र ब्राह्नण होते हुए भी क्षत्रियों को पराजित करेगा और सारी पृथ्वी जीत लेगा। बाद में यही हुआ भी। राजा विश्वामित्र सम्राट होने के बाद भी संन्यासी हो गए और ऋषि परशुराम ब्राह्मण होने के बाद युद्ध कौशल के लिए पहचाने गए।

पटना के बापू सभागार में हो रहा है भव्य आयोजन

आपको बताएं भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन द्वारा आज परशुराम जयंती पर भव्य परशुराम शोभा यात्रा का आयोजन किया गया है। पटना के बापू सभागार में मंच के संस्थापक तथा राजपा सुप्रिमों आशुतोष कुमार और मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक कुमार द्वारा विशाल कार्यक्रम तथा शक्ति प्रदर्शन का कार्य चल रही है। लाखों के तदात में पीले वस्त्र पहने तथा फरसा लिए परशुरामवंशी अर्थात भूमिहार ब्राह्मण आयोजन में पहुँच कर इसकी भव्यता को चार चाँद लगा रहें हैं।

उत्तर प्रदेश के कानपुर अलीगढ़ व हाथरस में भी हो रहा है भव्य आयोजन

दूसरी ओर कानपुर, अलीगढ़ व हाथरस में भी भव्य आयोजन विभिन्न ब्राह्मण संगठनों व सनातनी संगठनों के द्वारा किया जा रहा है। जिसपर एक विस्तृत रिपोर्ट शाम तक आखिरी सच समाचार वेब पोर्टल पर प्रसारित की जाएगी।


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