सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया सर्वाधिक सर्व सिद्धि योग वाली तिथि है। इस दिन किए जाने वाले सभी अच्छे कर्मों का अच्छा परिणाम प्राप्त होता है, और उसका लाभांश कभी नष्ट नहीं होता, इसलिए इसे अक्षय कहा जाता है। इसी दिन वसंत ऋतु का समापन और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है। अक्षय तृतीया का व्रत 3 मई दिन मंगलवार को रखा जायेगा। इस दिन सुहागिन महिलायें अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। सनातन धर्म शास्त्र में वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही बेहद खास माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन किए गए शुभ कामों का अक्षय परिणाम प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि आप जो भी सत्कर्म अक्षय तृतीया के दिन करते हैं उसका लाभांश कभी नष्ट नहीं होता है। वह कई गुना होकर आपको प्राप्त होता है। इसीलिए इसे अक्षय कहा जाता है। आइये जानें यह इतना ख़ास क्यों होता है?
अक्षय वरदान देने वाली अक्षय तृतीया का सनातनी और जैन धर्म दोनों में विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया को आखातीज या अक्षय तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन किसी भी नए काम को करने के लिए किसी भी पंचांग को देखने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। अक्षय तृतीया का पूरा दिन शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम हो। हिंदू पंचांग के मुताबिक अक्षय तृतीया व्रत आज 3 मई को रखा जाएगा। मान्यता है कि अक्षय तीज के दिन मां लक्ष्मी अपने सभी भक्तों पर मेहरबान रहती हैं।
इस बार अक्षय तृतीया के दिन ग्रहों का विशेष योग बन रहा है। इस कारण से अक्षय तृतीया के अवसर पर इन 4 राशियों पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा रहेगी।
धनु राशि, कर्क राशि, वृषभ राशि व मकर राशि।
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इन 4 राशि वाले लोगों पर मां लक्ष्मी की बेहद कृपा होने के कारण धन धान्य में वृद्धि की संभावना है।
कोई भी बड़ी उपलब्धि इनके पास आ सकती है।
नए काम की शुरुआत के लिए समय अच्छा है।
धन पक्ष मजबूत रहेगा।
कोर्ट कचहरी के मामलों में भी सफलता मिलेगी।
घर परिवार के लोगों का हर काम में साथ मिलेगा।
भाग्य का हर काम में साथ मिलता रहेगा।
मकान या वाहन के सुख की प्राप्ति भी हो सकता है।
माता लक्ष्मी की विशेष कृपा इन चार राशि वाले लोगों पर रहेगी।
अक्षयतृतीयापरविशिष्टयोग
अक्षय तृतीया के दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में, शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में, शनि अपनी स्वराशि कुंभ में और बृहस्पति अपनी स्वराशि मीन में मौजूद रहेंगे। अक्षय तृतीया को बन रहे इन बेहद शुभ योगों से इसका महत्व अति विशिष्ट हो गया है।
अक्षय तृतीया का महत्व क्यों है जानिए कुछ महत्वपुर्ण जानकारी।
आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था। महर्षि परशुराम का जन्म आज ही के दिन हुआ था। माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था, द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज ही के दिन बचाया था।
कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था, कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था। सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है।
बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है अन्यथा साल भर वो बस्त्र से ढके रहते है। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ आज बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है।
अक्षयतृतीयाकापौराणिकमहत्व
इसका अपना पौराणिक महत्व भी है। मान्यता है कि इसी दिन सतयुग और त्रेता युग का आरंभ हुआ था। द्वापर युग का समापन और महाभारत युद्ध का समापन भी इसी तिथि को हुआ था। भगवान विष्णु के नर नारायण अवतार, हयग्रीव, परशुराम जी का धरा अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।
अक्षय तृतीया के दिन बनने वाले तीन बेहद शुभ योग इस प्रकार हैं।
रोहिणी नक्षत्र और शोभन योग की वजह से मंगल रोहिणी योग बन रहा है। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में, शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में, शनि अपनी स्वराशि कुंभ में और बृहस्पति अपनी स्वराशि मीन में मौजूद होंगे। मंगलवार को तृतीया तिथि होने से सर्वसिद्धि योग बन रहा है।
अक्षयतृतीयाकीपूजनविधि
अक्षय तृतीया के दिन सुहागिन महिलायें सुबह- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में गंगा जल डाल स्नान करें। उसके बाद पीले वस्त्र पहन कर पीले आसन पर बैठकर श्री विष्णु जी और माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ायें। इस दिन दो कलश की स्थापना उत्तम माना जाता है। एक कलश में जल भरकर पंच पल्लव डालकर उसके बाद उसके ऊपर किसी पात्र में अनाज रखकर स्वास्तिक का चिन्ह बनाए और इस दौरान कलश स्थापना मंत्र का जाप करें।
कलशस्थापनामंत्र
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता: मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:
अब शुद्ध मन से सफेद कमल के फूल या सफेद गुलाब के फूल से पूजा-अर्चना करें। सफेद फूल के उपलब्ध ना होने पर पीले फूलों से भी पूजा की जा सकती है। धूप, अगरबत्ती, चंदन इत्यादि से पूजा- अर्चना करनी चाहिए। प्रसाद में जौ या गेहूं का सत्तू आदि का चढ़ावा चढ़ाना चाहिए।
अक्षयतृतीयापरयेचीजेंकरें
पूजन के बाद ब्रह्मणों को भोजन कराएं तथा वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें और उनका आशीर्वाद लें। इस दिन फल- फूल, वस्त्र, गौ, भूमि, जल से भरे घड़े, कुल्हड़, पंखे, खड़ाऊं, चावल, नमक, ककडी, खरबूजा, चीनी, साग आदि का दान शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन दान अवश्य करना चाहिए। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया को दिया हुआ दान अगले जन्म में हमें कई गुना अधिक हो करके प्राप्त होता है, और इस जन्म में हमारा मन शांत और शुद्ध बनता है, और हमें अगले जन्म में इसका परिणाम सुखद प्राप्त होता है।