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एससी एसटी एक्ट के मुआवजे से कंगाल हो रहा देश, टैक्स दाताओं के टैक्स का हो रहा दुर्पयोग, अकेले मध्यप्रदेश में बटें 490 करोड़, 90% वाद निकले झूठे।

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मध्यप्रदेश। अनुसूचित जाति व जनजाति से समाज के गैर अनुसूचित जातियों व जनजातियों पर सरकारी मुआवजा प्राप्त करने के लिए रेप केस के कई मामले दर्ज कराए गए है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि अधिकतर केस झूठे और सरकारी मुआवजा लेने के लिए किए गए हैं। दरअसल, MP में राज्य सरकार SC- ST एट्रोसिटी एक्ट के तहत पीड़ित महिला को 4 लाख रुपए का मुआवजा देती है। इस विषय में काफी चौका देने वाली रिपोर्ट सामने आई है जो आपको हैरान कर देगी। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं….

सरकारी मुआवजे के गणित को समझिए

अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की महिला से रेप होने पर राज्य सरकार 4 लाख रुपए का मुआवजा देती है। मामले में FIR दर्ज होने पर एक लाख और कोर्ट में चार्ज शीट पेश होने पर 2 लाख रुपए दिए जाते हैं। यानी 3 लाख रुपए तो सजा होने से पहले ही दे दिए जाते हैं।
अगर आरोपी को सजा होती है, तो पीड़ित को एक लाख रुपए और दिए जाते हैं। सजा न भी हो, तब भी पहले दिया गया मुआवजा वापस नहीं मांगा जाता। यह प्रावधान केवल SC- ST वर्ग के लिए ही है, अन्य को नहीं।

आखिर क्यों उठ रही झूठे रेप केस की बात?

सागर की रहने वाली एक महिला ने एक व्यक्ति पर अपनी बेटी के बलात्कार का मामला दर्ज कराया। जब आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और जब कोर्ट में मामले की सुनवाई के लिए ले जाया गया और सुनवाई शुरू हुई तब दलित महिला ने ट्रायल कोर्ट में कबूला, ‘साधारण झगड़े में उसने आरोपी पर अपनी नाबालिग बेटी से रेप का झूठा केस दर्ज करा दिया था।’ जब मामला जबलपुर हाईकोर्ट में पहुंचा, तो 17 मई 2022 को हाईकोर्ट ने आरोपी को न सिर्फ जमानत दे दी, बल्कि कहा कि ट्रायल कोर्ट रेप विक्टिम को राज्य सरकार से मिला मुआवजा वापस करने के लिए कहे।

सरकारी मुआवजा लेकर बयाना से मुकर जाती है महिलाएं

रिपोर्ट बताती है कि SC- ST एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज रेप के मामलों में हर 10 में से 9 आरोपी बरी हो रहे हैं। 100 प्रतिशत मामलो में मुआवजा दिया जाता है, लेकिन 20 प्रतिशत मामलो में ही सजा सुनाई जाती है। केवल सरकारी मुआवजा प्राप्त करने के लिए रेप पीड़ित अपने बयान से यह कह कर मुकर जाती है की उन पर दबाब बनया गया था या कोई रेप हुआ ही नहीं। मुआवजे का लालच इस वर्ग में इस हद तक बढ़ चुका है कि झूठे आरोप लगा कर सरकारी मुआवजा हासिल किया जा रहा है।

लिव- इन में भी रेप केस के मामले सामने आ रहे है

ADG राजेश गुप्ता ने बताया कि जबलपुर क्षेत्र में एक महिला और पुरुष साथ लिव इन में रह रहे थे। जिनके दो बच्चे भी थे। महिला को पुरुष ने शादी से इंकार कर दिया तो महिला ने दुष्कर्म का केस दर्ज करवाया। महिला की शिकायत पर पुलिस को FIR दर्ज करनी पड़ी। 2016 में पारित कानून के कारण युवा जागरुक होने लगे।

छह साल में 490 करोड़ का मुआवजा

एट्रोसिटी एक्ट में 47 कैटेगरी में मुआवजे का प्रावधान है। MP में पिछले छह साल में सभी कैटेगरी को मिलाकर 43 हजार 560 मामलों में 490 करोड़ रुपए से ज्यादा का मुआवजा बांटा गया। इस दौरान सजा सिर्फ 5 हजार 710 मामलों में ही हुई। अकेले रेप केसेस की बात करें तो 5 हजार 225 मामलों में 96 करोड़ रुपए की मदद की गई, लेकिन सजा 21% केस में ही हुई। पिछले साल तो सजा का एवरेज 12% ही था।
मुआवजे के लिए केस की घटनाएं पूरे देश व प्रदेश में होतीं ही रहती हैं।

इस मामले में मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य प्रवीण अहिरवार का कहना है, ‘मुआवजा तो पीड़ित परिवार के लिए जरूरी है। मुझे नहीं लगता कि मुआवजे के लिए किसी को फंसाने की घटनाएं पूरे प्रदेश में होती हैं। 99% ऐसे केस आते हैं, जिसमें वाकई अनूसुचित जाति के लोगों को सताया जाता है, उन्हें अपमानित किया जाता है, उनका शोषण होता है। अगर ऐसा मामला आता भी है तो ऐसे लोगों को कानून सजा देता है। कानून के दुरुपयोग की हम भी निंदा करते हैं।’

सरकार की तरफ से बेहतर पैरवी नहीं की जाती

आदिवासी नेता और कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा का कहना है कि कोर्ट में आदिवासी महिलाओ का पक्ष रखने के लिए बेहतर पैरवी नहीं की जाती है। दूसरी बात एट्रोसिटी एक्ट लगने के बाद जांच प्रक्रिया इतनी लंबी कर दी गई है कि पीड़ित महिला को बहला-फुसलाकर या प्रलोभन देकर मना लिया जाता है। इसीलिए केस में सजा नहीं होती। दरअसल, सरकार की मंशा आदिवासियों को न्याय दिलाने की नहीं है।

आबादी के मान से SC- ST के खिलाफ कम अपराध

मध्य प्रदेश में 53 हजार गांव हैं। इनमें से 45 हजार गांवों में SC- ST वर्ग की कोई FIR नहीं है। एक्सपर्ट कहते हैं कि यदि आप SC- ST के अपराधों को देखते हैं, तो आपको ये भी देखना होगा कि प्रदेश में इनकी जनसंख्या भी अन्य प्रदेशों से ज्यादा है। प्रदेश में इनके खिलाफ हुए अपराध इनकी आबादी के अनुपात में काफी कम हैं।

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