भारत। सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व का समय होता है तो आदिशक्ति के मंदिरों में जयकारे गूंजते हैं। श्रद्धालु सुबह से ही मंदिरों में पूजन की थाली लेकर माता के दर्शन कर अर्चना करते हैं। ऐसे ही कुछ विख्यात मंदिर भी हैं, जहां मान्यताओं के चलते भक्त पहुंचते हैं और मनौती पूरी होने पर घंटे चढ़ाते हैं। कुछ श्रद्धालु हवन पूजन कर मां की आराधना करते हैं। ऐसा ही एक कात्यायनी देवी का मंदिर कानपुर देहात के कथरी गांव में स्थित है।
कथरी गांव में स्थित होने के चलते इसे कथरी देवी का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर की अलग- अलग मान्यताएँ हैं। यहां वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं। यहां मुंडन संस्कार की परंपरा है। इस मंदिर का बहुत प्राचीन इतिहास है। लोगों की मनौतियां पूर्ण होने की वजह से यहां सैलाब उमड़ता है। ऐसे में यहां हुई स्थापित कानपुर जिले के अमरौधा ब्लाक क्षेत्र के कथरी गांव में विख्यात कथरी माता का मंदिर स्थापित है।
बुजुर्ग के अनुसार करीब 5 शताब्दी पूर्व एक राजा हुआ करते थे। एक दिन वह मूर्ति को रथ पर रखकर ले जा रहे थे। तभी कथरी गांव के समीप पहुंचने पर अचानक उनका रथ सुनाव नाले में फंस गया। काफी प्रयास के बावजूद रथ नही निकल सका। इस पर राजा ने मूर्ति को सुनाव नाले के पास करील के पेड़ के नीचे रख दिया। इसके बाद मूर्ति को देख लोग वहां पूजा करने लगे। एक दिन माता कथरी देवी ने गांव के रामादीन को सपना दिया कि वह मूर्ति को गांव के समीप स्थापित कराए।
रामादीन ने वैसा ही किया। गांव के लोगों के सहयोग से एक टीले पर स्थापित कराकर चाहरदीवारी बनवा दी गयी। जमींदार ने दिया मंदिर को भव्य रूप, अंग्रेजी शासनकाल के समय शाहजहांपुर के जमींदार पंडित गजाधार के कोई संतान नही थी। संपत्ति को लेकर काफी परेशान थे। जब उन्होंने मां कात्यायनी की महिमा के बारे में सुना तो उन्होंने माता से संतान की मनौतियां मांगी। कुछ दिन बाद उनकी मन्नत पूरी हुई तो उन्होंने माता के मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद में परिजनों ने मंदिर के निकट तालाब व बारादरी का निर्माण कराया। इसके बाद माता की महिमा दूर- दूर तक विख्यात हो गयी और लोग यहां आने लगे।
मंदिर के पुजारी श्रीबाबू भट्ट कहते हैं कि उनकी 8 पीढियां माता की सेवा करते चली आ रही हैं। माता की बहुत अनुकंपा है। वर्ष भर लोग आते हैं और मनौतियां पूरी होने पर चुनरी घंटे चढ़ाते हैं। यहां मुंडन संस्कार की भी प्राचीन परंपरा है।