दशहरे में रावण का पुतला दहन करके आखिर लोग क्या साबित करना चाहते हैं, हर वह आयोजक मंडल जो इस कार्यक्रम का आयोजन करता है, उसे रावण के चरित्र के बारे में क्या पता है, एक दिन पुतला दहन करते हो बाकी 364 दिन खुद रावण से भी गिरी सोंच लेकर समाज का विभिन्न प्रकार से बलात्कार करते हो। आइये जानते हैं जैन मतावलंबियों के नजर में रावण का चित्र और चरित्र।रावण तो आगामी भव में तीर्थकर बनेंगे।
दशहरा! अगर आप जैन होकर उनका पुतला दहन देखते है। तो कितना दोष लगेगा आपको ये तो भगवान ही जाने।
लेकिन उससे भी कही अधिक दोष तो मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले के दहन देखने में लगेगा। क्योंकि जैनागमनुसार रावण पुत्र इंद्रजीत और रावण अनुज कुंभकरण ने उसी भव में जैनेश्वरी दीक्षा लेकर मोक्ष पद प्राप्त किया था।
आज हम जो णमोकार महामंत्र का जाप करते है। उसमे जो दूसरे पद में सिद्ध भगवान का ध्यान किया गया है। वो दोनों भी उसी में आते हैं।
अर्थात सिद्ध भगवान है।
इसलिए हे! महानुभावों मिथ्यात्व को छोड़कर सम्यक्दृष्टि बने।
और जिनेंद्र भगवान के बताए मार्ग का ही अनुसरण करे। तभी हमारा दशहरा उत्सव मनाना सार्थक होगा।
दशहरा में रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतलों के दहन की जगह अपने मन के भीतर के बैर भाव, अज्ञान भाव, और अनाचार के भाव का त्याग करे और उसका दहन करे।
ये ही होगा दशहरा अर्थात विजयदशमी मनाने का सही अर्थ ।