कृतिम आंख लगाने से जुड़ी कई भ्रांतिया है। कृतिम आंख के विषय में काफी कम लोग जानते है। सबसे बड़ी भ्रान्ति जो न केवल मरीज बल्कि कई डॉक्टर और अस्पताल करते आ रहे है, कि कृतिम आंख बचपन में नहीं लगा कर १८ साल की उम्र के बाद लगेगी। ये बिलकुल ही गलत धारणा है। एक छोटे बच्चे का शरीर विकसित होता है १८ – २१ वर्ष तक इस समय अगर आंख नहीं लगाई जाती है, तो शरीर तो बढ़ता है। परन्तु जो आंख नहीं है, या कम विकसित है, या ऑपरेशन में निकाल दी गयी है, वो तुलनात्मक रूप से कम विकसित हो पाती है।
अब यही बच्चा जब बड़ा होकर आंख लगाने आता है, तब आंख के भीतर की जगह नहीं के सामान होने पर आंख या तो लग ही नहीं पाती है, या लगती तो है परन्तु काफी छोटी लगती है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि जिस तरफ की आंख बचपन में ख़राब हो चुकी है उस तरफ की हड्डी भी धीरे धीरे अंदर की ओर चली जाती है। चेहरे का आकर भी काफी बिगड़ जाता है।
इस समस्या का एक मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है- मैं पिछले २२ वर्षो से कृतिम आंख बना रही हूँ, मैंने देखा इन बच्चों में हीन भावनाये आ जाती है, जीवन में बहुत कुछ कर सकते है, परन्तु नहीं कर पाते है, लोगो से आंखे मिलाकर बात भी नहीं कर पाते है। घर की शादीयो में, सामाजिक आयोजनों में जाने से हीचकिचाते है, पढ़ाई में भी पिछड़ जाते है। स्कूल, कॉलेज, कार्य छेत्र में अवहेलना का शिकार होते है, मूलतः उनकी जीवन जीने की इच्छा कम होती जाती है। और अपने आप में एकाकी जीवन जीने लगते है।
मैंने कई मरीज़ो में देखा की वे इस कारण वस विवाह भी नहीं करते है। कई मरीजों की माताओ ने मुझे ये तक बताया है की आंख ठीक होने के पश्चात उनके बच्चे के स्वाभाव में एकाएक परिवर्तन आया, जो बच्चा घर से बहार निकलता ही नहीं था वो अब घर में टिकता ही नहीं है, बाहर ही बाहर घूमता रहता है। पहले जो शांत था, आंख लगने के बाद अब हॅसमुख हो गया है। ये मनोवैज्ञानिक बात सिर्फ हमारे देश के मरीज़ो में पायी जाती है ऐसा नहीं है। अंतराष्ट्रीय मरीज़ो में भी यही सारी समस्या और हीन भावना देखी गयी है।
मैं मेरे अनुभव के आधार पर एक बात बोल सकती हूँ कि अगर आंख ख़राब हो जाये, उससे दिखना बंद हो जाये, आंख छोटी होने लगे, आँखों में सफेदी आने लगे, दोनों आंख भिन्न दिखने लगे, तो एक बार कृतिम नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करे। कृतिम नेत्र विशेषज्ञ एक आम आंख का डॉक्टर नहीं होता है। आँखों में कई प्रकार के विशेषज्ञ है जैसे की कॉर्निया के विशेषज्ञ, रेटिना विशेषज्ञ, ग्लूकोमा विशेषज्ञ, लौ विज़न विशेषज्ञ। एक महत्वपूर्ण बात ये भी है, कि हर आंख के अस्पताल में कृतिम आंख के विशेषज्ञ नहीं बैठते है। कृतिम आंख के विशेषज्ञ की संख्या काफी सीमित है। पुरे देश में काफी कम कृतिम आंख के विशेषज्ञ है।
चेहरा सुन्दर और आकर्षक हो ये हर व्यक्ति चाहता है। चेहरे पर एक छोटी सी फुंसी ही व्यक्ति को अस्त व्यस्त कर देती है फिर एक ख़राब आंख तो व्यक्ति के पुरे अस्तित्व को ही हिला डालती है। आंख हमारे शरीर का सबसे सुन्दर और महत्वपूर्ण अंग है, इस में होने वाले समस्या को नजर अंदाज़ न करे, सही समय पर सही परामर्श के बाद सही इलाज करवायें।