कार्तिक मास सर्वश्रेष्ठ मास है। इस मास में तारा भोजन का विशेष महत्व है। स्कंध पुराण में बताया गया है कि-
न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम्।
अर्थात कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्य युग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
सृष्टि का मूल आधार ही सूर्य है और सूर्य की स्थितियों के आधार पर दक्षिणायन और उत्तरायणका विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य मकर से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तो इस अंतराल को उत्तरायण कहते हैं। सूर्य के उत्तरायण की यह अवधि ६ माह की होती है। वहीं जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है, तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं।
दक्षिणायन को नकारात्मकता और उत्तरायण को सकारात्मकता के साथ जोड़ा जाता है।
उत्तरायण को देव काल और दक्षिणायन को आसुरी काल माना गया है। दक्षिणायन में देवकाल न होने से सतगुणों के क्षरण से बचने और बचाने के लिये पुराणादि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्त्व निर्दिष्ट है। कर्क राशि पर सूर्य के आगमन के साथ ही दक्षिणायन काल का प्रारम्भ हो जाता है, और कार्तिक मास इसी दक्षिणायन और चातुर्मास्य की अवधिमें में होता है।
कार्तिक में करें तारा भोजन
पूर्णमासी से एक महीने तक होता है तारा भोजन का व्रत। रोज रात्रि में तारा को अर्घ देकर भोजन करने का विधान बताया गया है। व्रत के आखिरी दिन उजमन करे। उजमन में पाँच सीधा और पाँच सुराही ब्राह्मणो को दे। साडी व रुपये रख कर बइना निकल कर सासु माँ को दे या किसी ब्राह्मणी को दे।