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एक गांव जहां हुऐ तो ग्यारह स्वतंत्रता सेनानी, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान को नही सरकार के पास इमदाद।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का एक इण्टरव्यूव टीवी पर आ रहा था, जिसमें स्थानीय विकास में जनमानस का सहयोग, जिसके क्रम में सुनील कुमार सुमन जी जो कि उक्त कार्यक्रम को झारसुगुड़ा उड़ीसा में आवास पर देख रहे थे, जो कि मूल रूप से बिहार के सीतामढी़ जनपद के गांव माधोपुर तुरकौलिया प्रखंड बखनहा के मूल निवासी हैं, जो इलेक्ट्रिकल विभाग में एक निजी कम्पनी में कार्यरत हैं।

जिनकी अपनी सोंच में यह आया कि आखिर कैसे हम अपनें गांव को लेकर विकास की नई ईबारत लिख सकते हैं, जिस गांव में बीचो- बीच काफी पुराना तालाब है जिसमें आजतक पक्का घाट नही है, बरसात के जलभराव की समुचित व्यवस्था आज भी नही है। तत्कालीन दौरान  सोंच गांव में विद्युत की भी सुचारू व्यवस्था नही थी, सुनील सुमन जी की सोंच व गांव वालो के सहयोग से सन् 2016 में पहला पत्र प्रधान मंत्री कार्यालय के आनलाइन सुझाव / शिकायत पत्र लिखा, जिसमें सुमन जी द्वारा 6 बिंदुओं को सुझावित करते हुए मांगग किया गया, जिसके बिंदु निम्नवार हैं।


सुमन जी का प्रयास उपराष्ट्रपति को ई- मेल


1. स्वतंत्रता सेनानी स्मारक का निर्माण गांव में करवाया जाय कारण गांव में कुल 11 स्वतंत्रता सेनानी थे।

2. गांव के मुख्य मार्गों चारो दिशाओं की शुरूआत में स्वतंत्रता सेनानी स्वागत द्वार बनवाया जाय।

3. सुव्यवस्थित व सुचारू विद्युत के वितरण की समुचित व्यवस्था की जाय।

4. किसी भी बैंक की एक शाखा खोली जाय।

5. गांव के प्रखंड मुख्यालय से ग्राम पंचायत मुख्यालय की सड़क पक्की बनवायी जाय।

6. गांव के वर्षा जल निकासी की समुचित व्यवस्था करवाई जाय।

उपरोक्त पत्रक के जवाब में प्रधानमंत्री मंत्री कार्यालय द्वारा विद्युत विभाग के लिये मात्र फार्वर्ड किया गया, जिसके सापेक्ष लगभग एक वर्ष इंतजार के बाद सुमन जी नें पीएमो को फोन कर पत्र के क्रम में जानकारी चाही जिस पर विभागीय जिम्मेदार द्वारा जानकारी दी गयी की आपका पत्र विद्युत विभाग को भेज दिया गया है पर सुमन जी नें जब यह कहा की महोदया हमनें छः बिंदु डाले हैं, पर जवाब यह मिला कि एक पत्र एक जगह ही भेजा जाता है।

तब से आज तक उक्त जिम्मेदार द्वार फोन द्वारा वार्ता पर मात्र एक जवाब दिया जाता है कि हम पत्र फार्वर्ड करते हैं। हम रिमाइंडर भेज देते हैं बोलते थे। एक के पश्चात एक अन्य मांगों के साथ अन्य विभाग से संबंधित करीब 20 पत्र भेजा गया लेकिन PMO के द्वारा जिस विभाग को पत्र भेजा हरेक विभाग जवाब दिया हमसे संबंधित नहीं है, या हमारे पास इस कार्य के लिए कोई वित्तीय व्यवस्था नहीं है।


शहरी विकास मंत्रालय भारत सरकार के लिये पीएमओ का आदेश


स्वतंत्रता सेनानी स्मारक निर्माण और स्वागत द्वार से सम्बन्धित गृह मंत्रालय के अधीन स्वतंत्रता सेनानी विभाग बोला भी और लिखित दिया कि हमारे पास सिर्फ पेंशन देने की व्यवस्था है।
PMO और HMO पत्र को बिहार मे मुख्य सचिव कार्यालय को भेजता था। CS बिहार पत्र को DM कार्यालय या BDO सब मिलकर पत्र- पत्र खेलते रहे।

एक बार तो PMO मे फोन करने से स्मारक संबन्धित एक अधिकारी ने दशरथ मांझी का उदाहरण देकर बहस किया, उस रोज बहुत दुःखी हुआ था PMO के व्यवहार से कि, सुमन जी बोले कि सर हम स्थानीय नहीं रहते हैं। कई बार वर्तमान सांसद श्री राम कुमार शर्मा से बात हुई, निजी तौर पर निवेदन पत्र भी दिया बोलते रहे लेकिन फ़ंड नहीं दिए स्थानीय सांसद महोदय।


1945 का यह FIR लिस्ट है जब मुजफ्फरपुर जिला था, क्रांतिकारियों नें डाक लुटा था अंग्रेजों के।


PM बोलते हैं जो मुझे पत्र लिखिए लेकिन बारंबार पत्र लिखने के पश्चात भी सुमन जी के पत्रों को PM के सामने नहीं पहुँचाया गया, जबकि सुमन जी नें आदरणीय प्रधानमंत्री जी के पास पत्र पहुँचाने के लिए, अलग अलग माध्यम से पत्र भेजा ताकि अधिकारी बदलने से हमारे पत्र पहुँच जायेगा जैसे उनके आवास के पता पर रजिस्ट्री पोस्ट किए, ट्विटर पर सीधे टैग कर 100 बार लिखा, फ़ेसबुक पर लिखा, Intract With PM पर तो 20 बार लिखा।

अभी भी फीडबैक के लिए फोन आता है तो बोलते हैं, कि PMO के व्यवहार से खुश नहीं हूँ, कोई कार्य नहीं होता लिखने से सिर्फ राज्य सरकार को भेजने की जिम्मेवारी है PMO की।
इस 6 वर्षों के सफर मे कुच्छ ईमानदार अधिकारी भी मिले बिहार सरकार के जिससे कुछ कार्य भी हुआ जिनको भूल नहीं सकता और वो अधिकारी सुमन जी की दिल से प्रसंसा भी करते थे, क्योंकि जब भी समय देते थे अगले दिन या तारीख मैं ठीक उसी समय उनको याद दिलाता था, वो लोग बोलते थे सुमन जी आप काफी समय के पाबंद है, और आप अपने से इतना समय निकालते हो गाँव के लिए बड़ी बात है। जिस गाँव मे आप 1993 से यानी 25 वर्षों से नहीं रहते हैं, कभी- कभी पर्व त्यौहार मे आते हैं फिर भी। सुमन जी नें कहा जहाँ भी हैं, रहते हैं वह हमारा जन्मभूमि नहीं है, इतनी बड़े संसार में जन्म उस गाँव मे हुआ तो प्रभु कुच्छ सोच कर ही किया होगा।


होम मिनिस्ट्री का बिहार सरकार को आदेश


जैसे विद्युत विभाग (NBPDCL) के निदेशक महोदय श्री SKP सिंह जी, कार्यपालक अभियंता दीपक कुमार जी इस से ग्रामीण विद्युतीकरण मे 2 वर्ष लगा परंतु संपन्न हो गया। आजादी सामय से। निदेशक महोदय को चाहे जितना बार भी फोन किया कभी भी प्यार से बात किए एक साधारण आदमी से।

हमारे गाँव के मुख्य सड़क बनाने मे तो ग्रामीण कार्य विभाग लिख कर ऊपर रिपोर्ट कर दिया हमारा सड़क नहीं है, PWD बोला हमारा सड़क नहीं है लेकिन इस मोबाईल के युग मे बहुत सहयोग मिला फोटो खींच कर जब तत्कालीन सचिव RW विनय सर को भेजे तो बात को समझे और मुझे सुझाव दिए EX Engineer RW से मीटिंग करने को कहा।


बाबा रामदेव उर्फ व्यापारी बाबा को भेजा गया पत्र


फिर संपर्क बना विभागीय मंत्री शैलेश कुमार जी के निजी सचिव मुकेश अग्रवाल जी से उन्होंने Whatsapp के माध्यम से जो पत्र भेजा उसी पर मंत्री जी से आदेश करा दिया कि सड़क की रिपोर्ट बना कर भेजें लेकिन कार्यपालक अभियंता रिपोर्ट महिनों नहीं भेजे मंत्री जी के आदेश पर बोलते थे हमारा बॉस सचिव है उनके लेटर का प्रतीक्षा है। महिनों निकाल दिए, फिर फोन किया मुकेश सर वो पटना मे मीटिंग मे ही बोले रिपोर्ट क्यों नहीं भेजते हैं।

फिर सड़क का रिपोर्ट गया DPR बना टेंडर हुआ ठेकेदार नियुक्त हुआ सारी प्रक्रिया होने मे 2/3 वर्ष लग गया, लेकिन फिर इधर गाँव के ही कुच्छ लोग मनरेगा से सड़क मे हाथ लगा दिया, मना करने और समझाने से झगड़ा करने के लिए तैयार होता था, इधर सारे वर्षों के मेहनत पर पानी फिरता दिख रहा था उधर चिंता थी कि मुख्य सड़क RW बनायेगा तो मजबूती, गारंटी 5 वर्ष और चौड़ा भी मनरेगा से बनेगा तो घटिया कम बजट के कम चौड़ा लेकिन काफी परेसानी मे था लेकिन SDO श्री राजेश कुमार जी एवं कार्यपालक अभियंता श्री परवेज आलम जी का बहुत ही सहयोग मिला और मनरेगा के काम को रोका गया अंततः सड़क बना ग्रामीण कार्य विभाग के द्वारा।


विद्युतीकरण के लिये किये गये प्रयासों की फाईल


जबकि मुखिया को पूर्णरूपेण जानकारी थी कि सड़क पास है, ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा
फिर भी जो ग्रामीण मिलकर मनरेगा से बना रहे थे। सब यह जानते थे, लेकिन मुखिया और कुछ ग्रामीणों की पूरी ताकत एवं पैरवी के पश्चात भी विभागीय अधिकारियों के तत्परता से नहीं बना पाया और जब उस सड़क पर चलता हूँ तो आत्मसंतुष्टि मिलता है। अपने मेहनत की है सड़क।

जब भी 10 दिन के छुट्टी मे गाँव जाता तो अपना सारा निजी कार्य छोड़कर मैं जिला स्तर के अधिकारी से लेकर प्रखंड स्तर तक मिलता, छुट्टी के ज्यादा समय इसी कार्य की खोजबीन मे चला जाता है। यहां तक माँ और पिताजी बोलते हैं जो छुट्टी मे आता है, इसलिए हमलोगों के लिए नहीं, दुःख होता है, परंतु नशा है गाँव के लिए, गाँव वाले बोलते हैं जब यह (सुमन) आता तभी क्यों कुछ होता है।


रेलवे स्टेशन बनाये जानें के प्रयासों की फाइल


इधर स्मारक नहीं बन पा रहा था गेट भी नहीं बन रहा था, गाँव के पोखर घाट नहीं बन पा रहा था कोई रास्ता नहीं दिखा तो विधायक जी के आदमियों से संपर्क किया और पोखर घाट पास कराया गया, विधायक निधि से लेकिन सीतामढ़ी जिला योजना विभाग और LAEO स्थानीय इंजीनियरिंग विभाग के मिलीभगत एवं घूसखोरी के भेट चढ़ गया पोखर घाट 55 फिट पास घाट विभागीय लापरवाही और घूसखोरी के कारण नहीं बना और भूत पूर्व विधायक स्वर्गीय दिनकर राम स्वर्गवासी हो गये।

दूसरा स्वागत द्वार भी विधायक जी से अनुशंसा कराया था, लेकिन बिहार सरकार के नियम के भेट चढ़ गया और जिला योजना विभाग नें उक्त अनुशंसा को रोक दिया। 2 वर्षों के संघर्ष के उपरांत भी दोनों कार्य नहीं हो पाया, नहीं पोखर घाट बना और नहीं स्वागत द्वार ही।


गांव के डाकघर अपग्रेडेशन के लिये प्रयासों की फाइल


इधर स्मारक का भी कोई रास्ता नहीं निकल रहा था, दशरथ मांझी का उदाहरण हमारे सामने था दूसरा चुनाव भी हमलोगों ने जीता दिया मोदी जी को लेकिन एक भी परिणाम नहीं मिलता देख फिर अपने हम उम्र ग्रामीणों, रिश्तेदारों और व्यवसायिक साथियों से “स्वतंत्रता सेनानी स्मारक” के अपनी योजना का आशंकित मन से चर्चा किया कि लोग सहयोग करेंगे कि नहीं, पैसा मांगना भी लोगों को अच्छा लगेगा कि नहीं परिवार वाले क्या बोलेंगे पैसा मांग रहा है।

इन सभी सोच के साथ लोगों ने काफी उत्साह दिखाया और हमारे मन को हिम्मत मिला फिर हमने लगभग 300 लोगों (रिश्तेदार, कार्य क्षेत्र के साथी, ग्रामीण नवयुवक जो बाहर नौकरी मे थे) से संपर्क किया फ़ेसबुक, व्हाइटसऐप और ट्विटर के माध्यम से काफी अच्छा माहौल उत्साहपूर्वक बन रहा था, सहयोग राशी भी प्राप्त हो रही थी, उम्मीद था 3/4 लाख जो लक्ष्य था पहुँच जायेंगे लेकिन किसी की बुरी नजर लग गई और कोरोना महाराज नें जोर पकड़ लिया 2 वर्ष तक उसमे किसी से सहयोग मांगना मुस्किल था हो गया।


रायसेन हिल को 2016 में भेजा गया स्पीडपोस्ट


लोग जान बचाने के सोच रहे थे, साथ ही हमारे शुभचिंतक जो हमारे काम के चर्चा और किए जा रहे प्रयास से काफी परेशान थे। उन लोगों ने सहयोगियों को भड़काने के कार्य कर रहे थे, जिससे लोगों ने या तो सहयोग नहीं किया या कुछ लोग सहयोग किये भी वो गुप्त सहयोगी मे नाम लिखाए जिस दोनों कारण से हम अपने लक्ष्य के आधे भी नहीं पहुँच पाया परंतु जो भी सहयोग राशी प्राप्त हुआ उस पैसों से “स्वतंत्रता सेनानी स्मारक का निर्माण प्रथम भाग हुआ 12 फरवरी 2022 को सुभाषचंद्र बोस जी की मूर्ती के साथ-साथ स्मारक की रूपरेखा बन गयी। जिसमें हमारे परिवार के लोगों ने हमारा काफी सहयोग किये और बीच गाँव मे चौराहा पर सामुहिक जमीन दिए जो जमीन श्री राजेश्वर सदन परिसर मे है, स्मारक निर्माण के लिए दिए।

यह स्मारक निर्माण जो देश के बलिदानियों के लिए बन रहा था गाँव के सम्मान, प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला था इसके लिए भी कुछ लोग जिनके पुरखों के नाम नहीं था थाना, पुलिस सब किए यहाँ तक की उसमे पत्रकारिता करने वाले लोग भी थे जो स्थानीय रहते हैं, मुझे उतना संपर्क नहीं है इसलिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ा लेकिन अंतत: आप सभी के सामने स्मारक खड़ा है बिना किसी भी राजनेताओं और सरकारों के सहयोग से।


पत्रों का जखीरा है सुमन के पास पर सरकार का एक जवाब यह सब स्वतंत्रता सेनानी नही


लोगों ने सुमन जी द्वारा पैसा मांगने से नाराज होकर उनके Whatsapp को ब्लॉक कर दिया, फोन नहीं उठाते थे, उल्टा सीधा जबाव देते थे, कोई लिखता था और कोई काम नहीं है। कोई पिताजी और माता जी को बोलते थे, कि आपका बेटा (सुमन) क्या नौकरी कर रहा सबसे पैसा मांगता है, उनको भी बुरा लगता था बहुत कुछ सुनना पड़ता था घर मे। बहुत कुछ झेला हूँ, अपने मान सम्मान को साइड मे रख दिया तभी उक्त स्वप्न मूर्त रूप दिया जा सका। लेकिन इस सब में सरकार का कोई रोल नही है।

द्वितीय भाग स्मारक मे स्मारक का छत और कुछ महापुरुषों के मूर्ती लगेंगे जिसमें चन्द्रशेखर आजाद जी की मूर्ती बन रही है और आगे जैसे जैसे धन की व्यवस्था होगा स्मारक को भव्य एवं विराट बनाया जायेगा जो प्रयास निरंतर जारी है।
जय हिंद

🇮🇳जय भारत 🇮🇳


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