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कार्तिक का महीना रोग विनाशक है जानते है- वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल से

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शरीर है तो दैहिक कष्ट है ही। कस्तो से निवृति के लिए कुछ लोग योग साधना करते है, कुछ खाने पिने का ख्याल रखते है, समय समय पर शारीरिक जाँच भी करते है और फल फूल वनस्पति का सहारा भी लेते है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पांचों तत्वों का संतुलन आवश्यक है।

स्कन्दा पुराण में बताया गया है कार्तिक के बारे में –

रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्।

मुक्तेर्निदानं नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।



इस मासको जहाँ रोगविनाशक कहा गया है, वहीं सद्बुद्धि प्रदान करनेवाला, लक्ष्मी का साधक तथा मुक्ति प्राप्त कराने में सहायक बताया गया है। कार्तिक में तुलसीवन-पालन की प्रमुख्यता बताई गई है। तुलसीका सेवन और कार्तिक में तुलसी आराधना की विशेष महिमा है। जब से संसार में संस्कृति का उदय हुआ, तभी से तुलसी को रोगनिवारक औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके आरोग्यप्रद गुणों के कारण इसकी लोकप्रियता इतनी अधिक है कि लोग इसे भक्ति भावना की दृष्टि से देखते हैं और इसकी पूजा करते हैं। तुलसी दो प्रकार की होती है! काली और सफेद। काली तुलसी अधिक गुणकारी है। इसके अतिशय गुणों के कारण इसे प्रत्येक घर में स्थान मिले इसीलिए हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इसे धार्मिक स्वरूप दिया है।

आयुर्वेद शास्त्र में तुलसी को रोग हर कहा गया है, शास्त्रीय भाषा में तुलसी को यमदूतों के भय से मुक्ति प्रदान करने वाला भी बताया गया है । कार्तिक के महीने में ऋतू परिवर्तन होता है। इस समय नाना प्रकार की बीमारिया मौसम के परिवर्तन से आती है, तुलसी का सेवन अत्यंत लाभ दायक होता है। अम्लता, पेचिश, कॉलाइटिस जैसी पाचनतंत्र की बीमारियों में तुलसी का रस निश्चय ही लाभ देता है। तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रस एक चम्मच शहद के साथ लेने से ज्वर, खाँसी और दमे में अच्छा लाभ होता है।बारिस के कारण मछरों का प्रकोप बढ़ जाता है और मलेरिया का खतरा रहता है। मलेरिया के ज्वर में तुलसी का रस अमोघ सिद्ध होता है। वातावरण सीत कल की तरफ अग्रसर होने के कारण सीत लहार चलने लगती है और सर्दी जुकाम और शिरोवेदना दूर करता है तुलसी का रस । तुलसी का रस मूत्र पिण्ड की कार्य शक्ति बढ़ाता है और रक्त के कॉलेस्टरोल का प्रमाण घटाता है।

कार्तिक के रोग विनाशक होने के पीछे तुलसी की महिमा छुपी है।


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