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सूर्य ग्रहण का प्रभाव- जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से

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सूर्य ग्रहण का प्रभाव – जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से, सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता, इंटरनेशनल वास्तु अकादमी सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता।

श्रीमद्भागवतपुराण के दसवें स्कंध में उल्लेख किया गया है कि महाभारत-युद्ध से पूर्व सूर्यग्रहण के अवसर पर भगवान् श्रीकृष्ण सभी यदुवंशियों सहित द्वारका से कुरुक्षेत्र में आए थे।

ग्रहण और स्नान

सूर्य- ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में एक विशाल मेला लगता है, जिसमें सारे भारत से नर-नारी यहां आकर स्नान करते हैं। शास्त्रों में इसका बड़ा माहात्म्य बताया गया है। यह भी कहा जाता है कि काठियावाड़ के प्रभास तीर्थ में भगवान् श्रीकृष्ण सपरिवार स्नान करने गए थे। इसलिए सूर्यग्रहण के अवसर पर प्रभास में भी स्नान करने का बड़ा माहात्य है।

ग्रहण के समय खाना क्यों वर्जित है

हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य और चंद्रग्रहण लगने के समय भोजन करने के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय वातावरण में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों में कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं। वैज्ञानिको का कहना है की सूर्य-चंद्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुंचा सकता है।

ग्रहण के बाद स्नान क्यों करे?

ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और वे घुल कर बह जाएं।

ग्रहण का प्रभाव कितने घंटे रहता है?

भारतीय धर्म वक्ताओ विज्ञानवेत्ताओं का मानना है कि सूर्य और चंद्रग्रहण लगने के दस घंटे पूर्व से ही इसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है।

ग्रहण और सूतक

अंतरिक्षीय प्रदूषण के समय को सूतककाल कहा गया है। इसीलिए सूतककाल और ग्रहण के समय में भोजन तथा पेयपदार्थों के सेवन की मनाई की गई है।

तुलसी का क्या सम्बन्ध है ग्रहण से

ग्रहण से समय जीवनशक्ति का हास होता है और तुलसीदल में विद्युतशक्ति व प्राणशक्ति सबसे अधिक होती है, इसलिए सौरमंडलीय ग्रहणकाल में ग्रहण-प्रदूषण को समाप्त करने के लिए भोजन तथा पेयसामग्री में तुलसी पत्ता रखा जाता है । तुलसी के प्रभाव से न केवल भोज्यपदार्थ बल्कि अन्न, आटा आदि भी प्रदूषण से मुक्त बने रह सकते हैं। पत्ते डाल

सूर्य ग्रहण में क्या होता है?

पुराणों की मान्यता के अनुसार केतु सूर्य को ग्रसता है और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। सूर्यग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमजोर पड़ती है।

गर्भवती स्त्री सूर्यग्रहण के समय क्या करे और क्या न करे

गर्भवती स्त्री को सूर्य-चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहि। गर्भवती के उदरभाग में गीवर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि केतु उसका स्पर्श न करें। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और कुछ भी सिलाई करने से रोका जाता है।


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