GA4

हीरा दे  मातृभूमि को समर्पित पाषाण हृदय क्षत्राणी को कोटिश: नमन।

Spread the love

संवत 1368 (सन 1311) वैशाख का महीना (April/ May) जबकि पत्थर भी पिघल रहे थे, दरवाज़े पर एक दस्तक हुई, हीरा- दे ने दरवाजा खोला। पसीने में नहाया उसका पति ‘विका दहिया’ एक पोटली उठाये उसके सामने खड़ा था।

उसका काँपता शरीर और लड़खड़ाता स्वर ये कहावत कह रहा था “चोर या तो नैण से पकड़ा जावे है या फिर वैण से” और उस पर हीरा- दे तो क्षत्राणी थी, वह पसीने की गंध से अनुमान लगा सकती थी, कि यह पसीना रण क्षेत्र में खपे पराक्रमी का है या भागे हुए गद्दार का।

“मैंने जालोर का सौदा कर दिया”- विका ने हीरा- दे की लाल होती आँखें देखकर सच बक दिया। उसका इतना कहना था और शेष बातों का अनुमान तो वो लगा ही सकती थी। वह जानती थी कि किले के निर्माण में रही कमी का राज केवल उसका पति जानता है। और आज उसका पति चंद स्वर्ण- मुद्राओं के बदले सोनगरा चौहानों की मान-मर्यादा और प्राण संकट में डाल आया।

अलाउद्दीन कितना बर्बर है, वह जानती थी। एकाएक उसकी आँखों के सामने जालोर दुर्ग के दृश्य तैरने लगे। एक तरफ़ कान्हड़देव और कुंवर वीरमदेव म्लेच्छ सेना से भीड़ रहे हैं तो दूजी तरफ़क्षत्रिय स्त्रियों ने जोहर की तैयारी कर ली है। तलवारों की टँकारों से व्योम प्रकम्पित और धरा रक्त से लाल।

हीरा- दे ने झटपट आँखें खोल स्वयं को दुः स्वप्न से बाहर लाया। उसके पास इतना समय नहीं था कि वह लाभ- हानि का गणित लगाती।उसने माँ चामुंडा का स्मरण किया और आगे बढ़ते हुए उसकी म्यान देखी, वह कटार दुर्भाग्यशालिनी जो शत्रु की छाती को छोड़ म्यान में सोती रहती है।क्षत्रिय के लिए कटार केवल शस्त्र नहीं, धर्म स्थापना की साधना में पवित्र आयुध है।

“यह तलवार आज यहाँ है; इसलिए हजारों- लाखों क्षत्राणियों के सुहाग उजड़े हैं, कई नवजात आंखें खोलने से पहले अनाथ हुए हैं- आज इसका ऋण चुकाने की बारी मेरी है। ” – रक्त भरी आँखों से हीरा-दे ललकार पड़ी।

ऐसा लगा जैसे हीरा दे ने म्यान से तलवार क्या खींची; धरा आशीर्वाद देने लगी, स्वर्गस्थ पूर्वजों ने दोनों हाथ उठाकर अपनी बेटी को आशीष दिया। अपने भीतर का सम्पूर्ण सामर्थ्य एकत्र कर वह अपने पति के सामनेएक वज्र की भाँति खड़ी हो गई।

” हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ ” हे विधाता ! कैसा समय दिखाया कि आज इस चंडाल का मुँह देखना पड़ रहा है। लेकिन नहीं, अब और नहीं – “जो चंद कौड़ियों में बिक जाये वो एक क्षत्राणी का पति नहीं हो सकता। ‘गद्दार’ पिता पति या पुत्र नहीं होता,गद्दार सिर्फ गद्दार होता है, देशद्रोही होता है ” –

यह कहते हुए उस पाषाण हृदया क्षत्राणी ने एक हाथ से अपनी सिंदूर रेख मिटायी और दूसरे हाथ से वह कटार निज पति की छाती में उतारकर इतिहास में एक नई रेख खींच दी। एक सच्ची क्षत्राणी कभी सोना-चांदी के प्रलोभन में नहीं झुकती,यह उसके लिए मैल से बढ़कर और कुछ नहीं। वह इतिहास में अमर होने की इच्छा नहीं पालती, वह तो स्वयं का इतिहास अपने महान कार्यों से रचती है क्षत्राणी विलाप नहीं करती, वह ललकारती है। क्षत्राणी सब क्षमा कर सकती है लेकिन कायरता और ग़द्दारी नहीं।

राज्य के प्रति ऐसी अनन्य निष्ठा जिसने अपने पति तक को मौत के घाट उतार दिया, विश्व इतिहास में ऐसा अनूठा उदाहरण मिलना अत्यंत कठिन है लेकिन फिर भी ये हमारा दुर्भाग्य है की हममें से बहुतों के पाठ्यक्रम इन शौर्य गाथाओं और देश के प्रति समर्पित इन प्रेरणा दायक कहानियों से वंचित रहे।

हमारे राष्ट्र पिता शिवाजी,महाराणा प्रताप या पृथ्वीराज जैसे वीर हैं।हम गांधी की अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत से बाहर आना होगा।

श्लोक :- “अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तदैव च” अर्थात – अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है।

अब समझें।

Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!