कैमूर- जनपद कैमूर में छठ महापर्व के शुभ घड़ी में व्रत धारियों द्वारा, श्रद्धा पूर्वक डूबते सूर्य को अर्घ्य दें रात्रि जागरण के उपरांत श्रद्धा भक्ति से उगते सूर्य को अर्घ्य देते हुए व्रत का किया गया समापन।
जनपद के नगर, मोहल्ला, गांव में नदी व तालाब के घाटों पर छठ महापूजा के पावन अवसर पर व्रत धारियों द्वारा रविवार शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर छठ पूजा घाट पर रात्रि जागरण करते हुए, अखंड सौभाग्यवती के अभिलाषा के साथ महिलाओं ने अखंड दीप प्रज्वलित कर सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन किया गया।
भभुआँ प्रखंड के मरीचांव गांव निवासी राजेश सिंह के 16 वर्षीय पुत्र अंकित कुमार का रविवार को छठ पूजा घाट पर गन्ना लगाने के बाद साथियों संग तालाब स्नान करने के क्रम में पानी अधिक होने की वजह से तालाब के अंदर डूब गया। ग्रामीणों द्वारा काफी खोज बीन किया गया, पर कहीं पता नहीं लगा।
सुबह अंकित का लाश तालाब में तैरते नजर आया। जिससे कि पूरा गांव में मातम का माहोल बना हुआ है। परिजनों का रो रो कर बुरा हाल है।
थाना प्रशासन द्वारा शव को कब्जे में लेते हुए अंतिम परीक्षण के उपरांत शव को परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया।
वही नुआंव प्रखंड अंतर्गत तरैथा ग्रामवासी 25 वर्षीय अभिषेक कुमार उर्फ दुर्गेश की नदी में डूबने की आशंका व्यक्त किया जा रहा है स्थानीय शासनिक प्रशासनिक पदाधिकारियों के साथ ही ग्रामीणों द्वारा खोजबीन जारी है।
छठ पूजा बिहार का मुख्य त्योहार माना जाता है, वर्तमान समय में देश के कोने कोने में मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य में वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया है। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया का पूजा अर्चना किया जाता है। जिससे कि बच्चे का ग्रह गोचर शांत हो जाता है। और जिंदगी में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं आए इस मान्यता के तहत ही षष्ठी देवी का व्रत होने लगा।
त्रेता युग में श्री राम चंद्र द्वारा लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटने के उपरांत ब्रह्म हत्या की पाप से मुक्ति हेतु मुग्दल ऋषि के निर्देशानुसार सीता सहित 6 दिनों का व्रत रहकर कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना करते हुए इस व्रत को किया गया था।
मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में पांडवों द्वारा यूथ क्रीडा में राजपाट हारने के बाद अपने पुत्रों को राज पाठ पुनः मिलने हेतु द्रौपदी द्वारा सूर्य देव की उपासना करते हुए इस व्रत को किया गया था। इसके साथ ही द्वापर में कर्ण द्वारा अपने पिता की ख्याति प्राप्ति के उद्देश्य से इस व्रत को किया गया था।
पौराणिक कथाओं की मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से संतान पर किसी भी तरह की कोई हानी नहीं पहुंचता है। छठ व्रत सभी व्रतों से कठिन व्रत माना जाता है, पुरुष और स्त्रियां दोनों ही इस व्रत को करते हैं। यह व्रत नहाए खाए से चालू होता है और डूबते सूर्य से उगते सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत समापन होता है। इस व्रत में अमीर गरीब ऊंच- नीच किसी भी तरह का कोई भेदभाव किसी के द्वारा नहीं किया जाता है। सभी को सामान्य मान्यताएं दिया जाता है।
“उदय और अस्त यही सत्य है”
सत्य का प्रतीक सनातन धर्म के तहत इस पर्व त्योहार को स्वच्छ मानसिकता के तहत श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुलिस अधीक्षक राकेश कुमार के निर्देश में प्रशासनिक पदाधिकारियों द्वारा जगह जगह सुरक्षा का व्यवस्था सुचारू रूप से चलाया गया।