एक ही कुल के निःशंतान मृतक लोगो के लिए आवला नवमी में क्या विशेष करे , जानते है लक्ष्मीजी को कैसे बांधे सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से
२ नवंबर को है आवला नवमी।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी ‘अक्षयनवमी’, ‘आवलानवमी’ और ‘कूष्माण्डनवमी’ भी कहलाती है।
पूजा के दिन के विषय में ब्रह्मवैवर्तपुराण में क्या बताया गया है? यदि दो दिन नवमी पड़ रही हो तो क्या करे?
देवी को प्रणाम जो ब्रह्मांड की माता हैं और जो ब्रह्मा के स्तंभ तक भगवान दामोदर के निवास में निवास करती हैं। हे देवी, माता, मैं आपको इस धागे से बांधती हूं, मैं आपको प्रणाम करती हूं।
इसके बाद कर्पूर या घृत पूर्ण दीप से आँवले के वृक्षकी आरती करे। आरती के बाद प्रदक्षिणा करे और हर प्रदक्षिणा में ये मंत्र बोले-
अर्थात– मैं अपने सभी पापों के विनाश के लिए, सुख, भाग्य और वृद्धि के लिए कुष्मांडा (कुम्हड़ा) दे रही हु। ऐसा कह कर किसी विद्वान् तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दे और निम्न प्रार्थना करे।
कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितॄणां तारणाय च ॥
अर्थात– अतीत में, भगवान ब्रह्मा ने कुष्मांडा वृक्ष का निर्माण किया, जो कई बीजों से समृद्ध है। अब मैं इसे पितरों के निमित्त भगवान विष्णु को अर्पित करती हु।
पितरों के शीत निवारण के लिये यथाशक्ति कम्बल आदि ऊर्ण वस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिये।