विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था, और इसे बनाने वाले भी भारतीय ही थे। आज से करीब 2 हजार वर्ष पूर्व भारत में कावेरी नदी पर कल्लनई बांध का निमार्ण कराया गया था, जो आज भी न केवल सही सलामत है, बल्कि सिंचाई का एक बहुत बड़ा साधन भी है।
भारत के इस गौरवशाली इतिहास को पहले अंग्रेज और बाद में वामपंथी इतिहासकारों ने जानबूझ कर लोगों से इस तथ्य को छुपाया, दक्षिण भारत में कावेरी नदी पर बना यह कल्लनई बांध वर्तमान में तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में है। इसका निमार्ण चोल राजवंश के शासन काल में हुआ था। राज्य में पड़ने वाले सूखे और बाढ़ से निपटने के लिए कावेरी नदी को Divert कर बनाया गया यह बांध प्राचीन भारतीयों की Engineering का उत्तम उदाहरण है।
कल्लनई बांध को चोल शासक करिकाल ने बनवाया था। यह बांध करीब एक हजार फीट लंबा और 60 फीट चौड़ा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बांध में जिस तकनीक का उपयोग किया गया है, वह वर्तमान में विश्व की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसकी भारतीयों को आज से करीब 2 हजार वर्ष पहले ही जानकारी थी।
कावेरी नदी की जलधारा बहुत तीव्र गति से बहती है, जिससे बरसात के मौसम में यह डेल्टाई क्षेत्र में भयंकर बाढ़ से तबाही मचाती है। पानी की तेज धार के कारण इस नदी पर किसी निर्माण या बांध का टिक पाना बहुत ही मुश्किल काम था। उस समय के भारतीय वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और और नदी की तेज धारा पर बांध बना दिया जो 2 हजार वर्ष बीत जाने के बाद, आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है।
इस बांध को आप कभी देखेंगे तो पाएंगे यह Zig Zag आकार का है। यह इस आकार का इस लिए बनाया गया था ताकि पानी के तेज बहाव से बांध की दीवारों पर पड़ने वाली Force को Divert कर उस पर दवाब को कम कर सके। देश ही नहीं दुनिया में बनने वाले सभी आधुनिक बांधों के लिए यह बांध आज प्रेरणा का स्रोत है।
यह कल्लनई बांध तमिलनाडू में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्रोत है। आज भी इससे करीब 10 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है। यदि आप भारत की इस अमूल्य तकनीकी विरासत कल्लनई बांध के दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में आना होगा। मुख्यालय तिरूचिरापल्ली से इसकी दूरी महज 19 किलोमीटर है।