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नीलांचल एक्स्प्रेस में हरिकेश दुबे की दर्दनाक मौत, परिवार का इकलौता कमाऊ पूत रेलवे की तथाकथित सुरक्षा संरक्षा की अनियमितता की चढ़ा भेंट।

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नीलांचल एक्सप्रेस में हुई घटना ने ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों को अंदर तक हिला दिया है। स्तब्ध कर दिया है। घटना के बाद उस कोच में सवार ज्यादातर मुसाफिर दहशत में थे। सुबह 8.50 बजे के करीब जब ये हादसा हुआ। उस वक्त ट्रेन 110 किमी की रफ्तार से दौड़ रही थी। उसके बाद ट्रेन के अलीगढ़ पहुंचने तक लगभग 32 मिनट लगे। ये 32 मिनट खौफ में गुजरे। यात्रियों को इस बात का डर लग रहा था कि कहीं आगे भी इस तरह की घटना न हो जाए। दहशत का आलम ये था कि खिड़की के पास बैठे यात्रियों ने सीट छोड़ दी। ज्यादातर लोग बीच की गैलरी में आ गए।

हर किसी सहयात्री के दिल में व्याप्त था भय

दरवाजे से बाहर का नजारा देखने के शौकीन भी सहम गए। उन्हें भी जान की चिंता सता रही थी। बच्चों के साथ सफर कर रहीं महिलाओं ने अपने नौनिहालों को गोद में समेट लिया। उन्हें कोच में फर्श पर खेलने से रोक दिया। यात्री बार बार हरिकेश की ओर देख कर सहम जाते। उनको समझ में नहीं आ रहा था.. आखिर ये कैसे हुआ। यात्री आपस में ये भी चर्चा कर रहे थे कि मौत ऐसे भी आ सकती है। ये किसी ने सोचा भी न होगा। कोच में हरिकेश की सीट खाली ही रही। दूसरे यात्री उस पर बैठने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे थे।



रेल इतिहास में यह ऐसी यह पहली घटना

हादसे के वक्त ट्रेन को चेन पुल कर रोका गया और पुलिस के साथ कंट्रोल रूम को इसकी खबर दी गई। पुलिस कर्मी भी घटना की जानकारी मिलने पर सन्न रह गए। कुछ देर तक उन्हें भी समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है। पुलिस ने मुसाफिरों को समझा बुझा कर शांत किया और ट्रेन के अलीगढ़ पहुंचने तक इंतजार करने को कहा। पुलिस वालों से बात करने के बाद यात्रियों को कुछ संतोष जरूर हुआ लेकिन उनके मन में दहशत बनी रही। हर कोई एक दूसरे से इसी की बात कर रहा था। पुलिस कर्मियों को इस घटना पर तब यकीन हुआ जब उन्होंने अलीगढ़ में हरिकेश की गर्दन में घुसी रॉड को आंखों से देखा। ये देख पुलिस और रेलवे के अधिकारी भी सहम गए। किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था। साक्ष्य के तौर पर फोटो और वीडियो बनाने के बाद उसका शव नीचे उतारा गया। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया।

अलीगढ़ स्टेशन पर उतारा गया शव

अलीगढ़ पहुंचने के बाद ट्रेन में सवार और स्टेशन पर मौजूद यात्रियों को हादसे की जानकारी हुई तो बड़ी संख्या में लोग उस कोच में पहुंचने लगे। ये लोग तकनीशियन के शव को देखने पहुंचे थे। जिन्हें आरपीएफ एवं जीआरपी के जवानों ने बमुश्किल रोंका। शहर भर में इस घटना को लेकर चर्चा का दौर रहा। रेलवे के सेवानिवृत्त कर्मियों के अनुसार यह रेलवे के इतिहास में इस तरह का पहला मामला है जब सीट पर बैठे यात्री के साथ इस तरह की घटना हुई है। वरना ऐसी किसी घटना का कोई जिक्र नहीं मिलता है। इससे पहले एक बार स्टेशन पर मालगाड़ी का डाला खुलने से चार प्लेटफार्म नंबर दो पर चार यात्रियों की मौत हो गई थी।

हादसा या लापरवाही, रेलवे ने जांच बैठाई

नीलांचल एक्सप्रेस ट्रेन में शुक्रवार को हुए हादसे में तकनीशियन की मौत ने रेलवे के सुरक्षा इंतजामों पर तमाम तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं। रेलवे कर्मचारियों की लापरवाही के चलते मोबाइल टॉवर से जुड़ी एक कंपनी में तकनीशियन को अपनी जान गंवानी पड़ गई। सवाल उठता है कि जब रेलवे सुरक्षा एवं संरक्षा की बात करता है, तो शुक्रवार को ट्रेन गुजरने के समय लापरवाही क्यों बरती गई? जब चलती ट्रेन में इस तरह का हादसा हो सकता है, तो सफर करने वाले यात्री कितने सुरक्षित होंगे? समझा जा सकता है। हादसे के वक्त ट्रेन 110 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ रही थी। उत्तर- मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हिमांशु शेखर उपाध्याय के अनुसार हादसे को लेकर रेलवे ने जांच बैठा दी है। पता कराया जा रहा कि यह हादसा किसकी लापरवाही से हुआ है।



गोली की रफ्तार से घुसी थी लोहे की रॉड

नीलांचल एक्सप्रेस ट्रेन के जनरल कोच में यात्रा कर रहे विनय सरोज और शैलेंद्र मिश्र के अनुसार ट्रेन डाबर स्टेशन के पास से गुजर रही थी, तभी अचानक जोरदार आवाज के साथ एक लोहे की रॉड खिड़की के लगे शीशे को तोड़ते हुए सीधे सीट संख्या 15 पर सवार यात्री की गर्दन एवं कान के बीच से सिर से पार होकर प्लाईबोर्ड में जा घुसी। जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गया। यात्री का काफी खून बह गया। गनीमत रही कि हादसे के वक्त पास में ही बैठी दूसरी महिला यात्री बाल-बाल बच गई। उन्होंने बताया कि ट्रेन को चेन पुलिंग कर रोका गया और स्टाफ को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी। यह गंभीर मामला है, इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। यह रेलवे कर्मचारियों की लापरवाही है। दोषियों को इसकी सजा मिलनी चाहिए। यात्रियों की सुरक्षा पर भी रेलवे को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।

किनुहा के पास हुआ हादसा

पुलिस और रेलवे अधिकारियों की संयुक्त जांच टीम को रेलवे ट्रैक की जांच के दौरान जानकारी मिली कि घटना के समय डाबर और किनुहा के बीच कुछ रेलवे कर्मी ट्रैक पर काम कर रहे थे। किसी तरह लोहे की रॉड ट्रैक पर ही छूट गई और वह ट्रेन के किसी पार्ट्स से टकराकर सीधे जनरल कोच में खिड़की के सहारे बैठे यात्री हरिकेश कुमार दुबे की गर्दन को भेदते हुए आर- पार निकल गई। इस बीच वहां काम कर रहे रेलवे मजदूर काम छोड़ कर चले गए। अफसरों को घटनास्थल के पास रेलवे ट्रैक के किनारे लोहे की अन्य कई रॉड पड़ी हुई मिलीं है। हालांकि हादसा कैसे हुआ? इस बारे में रेलवे के अफसर अभी कुछ नहीं बोल रहे हैं, और जांच करने की बात कर रहे हैं। रेलवे अफसरों के अनुसार ट्रैक पर काम करने वाले मजदूरों की तलाश की जा रही है, जिनकी लापरवाही के चलते यह हादसा होने की आशंका जताई जा रही है।

घटनास्थल डाबर- सोमना स्टेशन के बीच रहा

आरपीएफ पोस्ट कमांडर राजीव वर्मा एवं जीआरपी के प्रभारी निरीक्षक सुबोध कुमार यादव के अनुसार ट्रेन में सवार यात्रियों के अनुसार घटनास्थल डाबर- सोमना स्टेशन के बीच का था। अब तक मिली जानकारी के अनुसार ये जगह किनुहा हो सकती है। इसकी गहन जांच अभी जारी है। ट्रेन में सवार सहयात्रियों के बयान भी दर्ज किए गए हैं। उधर, हादसे के बाद रेलवे अफसरों की संयुक्त टीम संभावित घटनास्थल सोमना- डाबर रेलवे ट्रैक का कई घंटे तक निरीक्षण किया। यहां तक की डाबर रेलवे स्टेशन के पास चल रहे रेलवे के काम के बारे में जानकारी लेने के साथ ही सोमना स्टेशन के पास एक सीमेंट के कारखाने में काम करने वाले मजदूरों से भी जानकारी ली गई है। जांच दल के अधिकारियों ने बताया कि प्रथम दृष्टया पीडब्लयूआई विभाग की लापरवाही मानी जा रही है, लेकिन अभी जांच जारी है।



परिवार का मुख्य कमाऊ पूत का अंत हुआ रेलवे की गलती

हरिकेश की मौत की खबर उनके गांव गोपीनाथ पुर के निवासी थे। हरिकेश दुबे जी के दो बच्चे हैं। एक लड़का व एक लड़की है। इनके पिताजी श्री संतराम दुबे सेक्टर संयोजक भाजपा हैं। इनके पिताजी श्री संतराम दुबे की पारिवारिक आर्थिक स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं थी, जैसे तैसे परिवार का काम चल रहा था, इसी बीच में हरिकेश दुबे का चयन एक सेलुलर कंपनी में तकनीकी सहायक के रूप में होता है। जिससे परिवार को एक उजाले  की किरण जगी लेकिन होनी को कुछ ही और मंजूर था, जिसनें हंसता खेलता परिवार एक बार फिर अंधेरे मे चला गया।


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