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परिषदीय विद्यालयों की सफाई एवं स्वच्छता एक विशिष्ट व्यक्ति का कार्य नहीं है, बल्कि यह छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, समुदाय का भी नैतिक दायित्व है।

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लखनऊ। बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों के बीच इन दिनों एक आर्डर चर्चा का विषय बना हुआ है। इस आदेश में साफतौर पर लिखा हुआ है कि परिषदीय विद्यालयों की साफ-सफाई एवं स्वच्छता केवल एक विशिष्ट व्यक्ति का कार्य नहीं है। बल्कि यह छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, समुदाय का भी नैतिक दायित्व है। विद्यालयों में इस प्रकार की सृजनात्मक पहल के लिए 6 प्रमुख रणनीतियां निर्धारित की गई हैं। इसी के साथ इस आदेश में 6 रणनीतियों का भी जिक्र किया गया है।



हालांकि पांच पन्नों का ये आदेश 9 फरवरी 2021 का है, लेकिन इस वक्त सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। इस आदेश में “मेरा विद्यालय स्वच्छ विद्यालय” की अवधारणा को लागू किए जाने की बात कही गई है। यह पत्र अपर मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन रेणुका कुमार के स्तर से जारी हुआ था और इस आदेश में प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों, एवं अध्यक्ष, जिला शिक्षा परियोजना समिति उत्तर प्रदेश, सभी मुख्य विकास अधिकारियों एवं उपाध्यक्ष, जिला शिक्षा परियोजना समिति उत्तर प्रदेश को सम्बोधित किया गया है।



इसका विरोध करते हुए शिक्षक कर्मचारी एवं अधिकारी कल्याण समिति उत्तर प्रदेश ने बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह को सम्बोधित ज्ञापन उनके कार्यालय में पहुंचाया है और सवाल किया है कि “आखिर स्कूलों के शौचालय और बच्चों के मल-मूत्र कौन साफ करेगा।” समिति के जिलाध्याक्ष मो. परवेज आलम ने कहा कि विद्यालय परिसर तो शिक्षक व बच्चे साफ कर लेंगे, लेकिन शौचालय और बच्चों के मल-मूत्र कौन साफ करेगा। इस तरह की गंदगी किसके स्तर से साफ की जाएगी, इसका उल्लेख शासनादेश में नहीं है। इसी के साथ मांग की गई है कि पूर्व की भांति स्कूलों में अंशकालिक सफाई कर्मियों को नियुक्त करें। इसी के साथ मोहम्मद परवेज आलम में महानिदेशक विजय किरन आनन्द से मांग की है कि स्कूलों में अंशकालिक सफाई कर्मियों को नियुक्त करें।


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