हरिकेश दुबे काण्ड में राष्ट्रीय सवर्ण परिषद, राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी व जस्टिस फार ब्राह्मण संगठनों नें पांच लाख के मुआवजे को पांच करोड़ व एक नौकरी के लिये हुए लामबंद, मांग पूरी न होनें तक होगा संघर्ष।
माननीय रेल मंत्री भारत सरकार अश्विनी वैष्णों द्वारा दिनांक 3 दिसंबर को अपने ही कही गई बातों से दो बार पलटना इनकी सोच और समझ को कितना बेहतर प्रदर्शित करता है। व कितना हास्यास्पद है, इसकी परिकल्पना कोई भी आखिरी सच की इस रिपोर्ट को पढ़कर देख व समझ सकता है। वैसे अश्विनी वैष्णव जी शायद इनको किसी के दर्द से कोई मतलब नहीं है। इनको मात्र मतलब है वोट बैंक की राजनीति से।
हम आपको बताते चलें कि दिनांक 2 दिसंबर को दिल्ली से नीलांचल एक्सप्रेस से सुल्तानपुर जाने के लिए हरिकेश दुबे पुत्र संतराम दुबे निकले थे। जिनकी मौत अलीगढ़ के पहले रेलवे की सुरक्षा और संरक्षा की अधिकता के चलते हो गई जिसमें बड़ा ही हास्यास्पद बयान माननीय रेल मंत्री द्वारा मुआवजे के रूप में 15000 दिए जाने का ऐलान दिनांक 3 दिसम्बर को किया गया। कितना दरियादिली दिखाई माननीय रेलमंत्री नें इसका जीता जागता मामला यह मुवावजा की राशि थी।
क्योंकि इनकी सवर्ण व ब्राह्मण विरोधी नीतियों को प्रदर्शित करता है। क्या माननीय महोदय को यह भी भान नहीं है, कि एक प्राइवेट सेक्टर का तकनीकी योग्यता धारक जिसकी मेहनताना मासिक ₹50000 कंपनी दे रही थी। जिसकी मौत रेलवे की गलती से हुआ और उसे 15000 का मुआवजा दिया गया, यह कितना शर्मनाक है जो हमारी व्यवस्था व्यवस्था की सवर्ण विरोधी होनें की पराकाष्ठा को दिखाता है।
वही जब इस मुद्दे पर माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्वीटर पर सवर्ण समाज व ब्राह्मण समाज द्वारा लगातार शर्म करो अश्वनी वैष्णव शर्म करो अश्वनी वैष्णव की ट्वीट चलने लगी। वहीं आखिरी सच समाचार में 5:20 पर अपना समाचार में सवर्णो की आत्मा को धिक्कारते हुए लिखा इसके लगभग तीन घंटे बाद डॉक्टर विजय नाथ मिश्रा की ₹51000 की सहायता परिवार को दिए जाने की घोषणा का समाचार चलाया गया जो कि रेलवे की मुआवजा व्यवस्था के मुंह पर एक करारा तमाचा था।
जिसको देखते हुए मात्र 10 मिनट की अंतर पर रेलवे की ट्वीटर हैंडल से उक्त मुआवजा राशि को 500000 किया गया, लेकिन रेलवे की इन कर्मठ योद्धाओं द्वारा एक भी बार यह नहीं सोचा गया कि उक्त परिवार के जिस सदस्य की मृत्यु हुई थी उसको पारिश्रमिक के रूप में उसकी कम्पनी की ओर से मासिक ₹50000 मिलता था। यह सरकार की मुआवजा नीति है जो उक्त मृतक की 10 महीनों की पारिश्रमिक के बराबर मात्र है, यह कैसी मुआवजा नीति है।
क्या सरकार की इतनी दरियादिली दिखाया जाना व मुआवजे के रुप में सवर्णों को भीख देनें की प्रक्रिया सार्थक निर्णय हो सकती है। वहीं सवर्ण व ब्राह्मण संगठनों द्वारा उक्त दोनों बार के मुआवजों का विरोध किया गया है, वही सवर्ण संगठनों नें मुआवजे के रूप में पांच करोड़ व एक नौकरी की मांग की गयी है। इससे कम पर न माननें की बात की गयी है। जिसके लिये देश के सभी सवर्ण व ब्राह्मण संगठन लामबंद हो रहें हैं।
सरकार द्वारा प्रदत्त उक्त मुआवजे के विरोध में राष्ट्रीय सवर्ण परिषद के प्रमुख पंकज धवरय्या व राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी प्रमुख रूमित ठाकुर व जस्टिस फार ब्राह्मण के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनू शर्मा नें जमीनी युद्ध की घोषणा की है, दोनों संगठन के प्रमुखों नें आखिरी सच से बात करते हुए कहा सरकार व रेल मंत्री मुआवजे की राशि को पांच करोड़ करें व मृतक की विधवा हमारे समाज की उक्त बेटी को रेलवे में उसकी योग्यता के आधार पर एक नौकरी प्रदान करे। अन्यथा हमें बाध्य होकर प्रदर्शन का रास्ता देखना होगा, यदि सरकार शीघ्र इस मुद्दे पर ध्यान देकर सार्थक निर्णय नही लेती है तो हम सरकार की चूलें हिलानें में कोई कसर नही छोड़ेंगे।