सनातन। आपाधापी के दौर में न ही लोंगो के पास इतना समय है, और न ही अधिकतर लोग वेद- पुराणों का अध्ययन करते हैं, और लोंगो की प्रारम्भिक शिक्षा न ही गुरुकुल आधारित है, और न ही उच्च शिक्षा लोंगो ने वैदिक विद्यालय या महाविद्यालय से ग्रहण की है। क्योंकि मुगल दासता काल और अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों के संस्कार एवं संस्कृति को पूरी तरह से धूल- धूसरित करने का भरपूर प्रयास किया है। लेकिन अपने यहां के कुछ ऋषि- मुनियों, संतों सहित धार्मिक व आध्यात्मिक चिंतकों ने बहुत हद तक वैदिक ज्ञानों को बचाकर एवं संजोकर रखा है।
इसलिये वैसे विद्वानों की संगति से और स्व अध्ययन से लोंगो को अपने सनातन धर्म के पौराणिक ग्रंथों का ज्ञान कुछ पता है। लेकिन सनातन शोधक की मेहनत से गडी हुई ज्ञान हम सभी के बीच विभिन्न स्रोतों से जगजाहिर होते रहती है। इसलिये मैंने कहा कि विद्वानों की संगति से वेद- पुराणों की बातें जानें और श्री चित्रगुप्त को श्रेष्ठों की पंक्ति में रखें और यहां पर यह भी जानना जरूरी है, कि कौन- कौन से देवी- देवता श्रेष्ठ हैं और सर्वश्रेष्ठ कौन हैं? निराकार पर ब्रह्म सदाशिव के साकार रूप नारायण श्री हरि विष्णु सनातन धर्म के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ हैं, और वही अखिल ब्रह्मांड के मालिक हैं। और ब्रह्मा- शिव (शंकर) सह श्री चित्रगुप्त श्रेष्ठ हैं। और देवियों में माता लक्ष्मी जो विष्णु की अर्धांगिनी हैं और उनके नौ रूप और माता पार्वती श्रेष्ठ देवियाँ हैं। क्योंकि इन देव- देवियों का प्रकटीकरण होता है न कि ये किसी मानव के उदर (पेट) से जन्म लेते हैं, पेट से जन्म लेने वाले मानव या महामानव होते हैं या जीव- जंतु या जानवर होते हैं।
सभी देवी- देव साकार रूप में ब्रह्मांड में विचरण करते हैं। और समय- समय पर अपने परम भक्तों को दर्शन देते हैं या दुष्ट व राक्षस की समाप्ति के लिए उनका प्रकटीकरण होता है, चूँकि मानव को उन्हें देखने की शक्ति नहीं मिली हुई है। इसलिये हमलोग उन्हें निराकार स्वरूप ब्रह्म के रूप में भी मानते हैं। जिसे सदाशिव के नाम से नामित किया गया है। सनातन धर्म में कुल तैतीस प्रकार (कोटि) के देवता हैं जिसे लोग अपने कम ज्ञान और भ्रांत होने के कारण 33 करोड़ बताते हैं जो कि सर्वथा गलत है।
श्री हरि विष्णु नारायण के नाभि- कमल से ब्रह्मा जी की प्रकटीकरण हुई है। और ब्रह्मा जी के रौद्र (क्रोध) से रुद्र (शिव – शंकर) की प्रकटीकरण हुई है, और ब्रह्मा जी के 1000 बर्षों की अनवरत तपस्या से श्री चित्रगुप्त की प्रकटीकरण हुई है, ब्रह्मा जी को सृजन करने की शक्ति मिली हुई है और शिव- शंकर को संहार करने की शक्ति और श्री हरि विष्णु नारायण ने अपने पास पालन- पोषण करने की शक्ति को रखा है, लेकिन श्री चित्रगुप्त को सृजन- पालन- पोषण, संहार के साथ प्रलय करने की शक्ति भी मिली हुई है। और यहां पर यह भी विदित हो कि संहार प्रलय की एक भाग होती है, न कि पूर्ण प्रलय क्योंकि श्री चित्रगुप्त ब्रह्मा- विष्णु महेश की केंद्रीय एंव संयुक्त शक्ति हैं, और इनके अंर्तगत अखिल ब्रह्मांड का विधान (कानून) भी है। इसलिये ये अखिल ब्रह्मांड के विधाता भी कहे जाते हैं। और साथ में अखिल ब्रह्मांड के न्यायाधीश भी।
जिसका प्रमाण वेद- पुराणों में वर्णित है। यदि देवों के पारिवारिक रिश्तों पर नजर डाली जाये श्री हरि नारायण विष्णु के पुत्र ब्रह्मा जी है। जिनकी उत्पत्ति या सृजन नारायण से हुई है। और ब्रह्मा जी से शिव- शंकर एवं श्री चित्रगुप्त की इसलिये ब्रह्मा जी शिव- शंकर और श्री चित्रगुप्त के पिता हुये और ये दोनों ब्रह्मा जी के पुत्र। माँ पार्वती श्री चित्रगुप्त के बड़े भाई शिव- शंकर की पत्नी हुई अर्थात् माँ पार्वती श्री चित्रगुप्त के भाभी और शिव- शंकर बड़े भाई हुये। लेकिन देवी- देवों के बीच रिश्ते की बात करना ठीक नहीं, केवल जानकारी हेतु यहां पर बताई गई है। क्योंकि देवी- देव अखिल ब्रह्मांड के होते हैं, और उनकी कृपा- दयादृष्टि सभी पर रहती है।
श्री चित्रगुप्त को यहां पर श्रेष्ठ इसलिये बताया गया है कि किसको किस गति इस दुनिया से जाना है, और जाने के बाद 84 लाख योनियों में किन- किन योनियों में आगे सभी को जन्म लेना है, या उसे बैकुंठ लोक, शिव लोक, यम लोक सहित अन्य लोकों में जीवों व मानवो के कर्मों के अनुसार उन्हें जाना है, या किसे मुक्ति मिलनी है, या किसको कैसी सुविधा अपने जीवन में मिलनी है, किसको कैसी रोग- दोष, मान- सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, यश- अपयश इत्यादि मिलनी है। यहां तक कि सब कुछ श्री चित्रगुप्त के न्याय पर ही निर्भर है जो कि अपने 14 यमों के माध्यम से पूरे ब्रह्माण्ड पर नजर रखते हैं।
और इनके अंतर्गत देवी- देव, ऋषि- मुनि, संत- महात्मा, अवतारी, मानव- महामानव, जीव- जंतु, जानवर इत्यादि सभी आते हैं। इसलिये श्री चित्रगुप्त श्रेष्ठ कहे जाते हैं, और प्रमाण प्राप्ति हेतु लोग वेद- पुराणों के स्व अध्ययन या सनातन धर्म ट्रस्ट, गोरखपुर के सानिध्य या संसर्ग में जाएं। जय सनातन।