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गुजरात मे बहार, आप को राष्ट्रीय का खिताब, तो रामपुर में चित्रांश नें किया नया आगाज, मैनपुरी नया इतिहास बना, तो खतौली में त्यागी का भाजपा विरोध रहा सफल, भाजपा करे स्वयं की समीक्षा, कांग्रेस को मिला हिमाचल नें जारी रखा अपना इतिहास।

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चुनावी समीक्षा पर एक नजर। आम आदमी पार्टी आज राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। इस बात की जानकारी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दी है। उन्होंने बोला कि गुजरात के लोगों ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बना दिया है। जितने वोट गुजरात में AAP को मिले हैं, उसके हिसाब से केजरीवाल की पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। महज 10 वर्षों में आम आदमी पार्टी राष्ट्र की चंद राष्ट्रीय पार्टियों में शामिल हो गई है। केजरीवाल ने गुजरात के लोगों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘मैं जितनी बार गुजरात गया, मुझे बहुत प्यार मिला। मैं आप सभी का आभारी रहूंगा। गुजरात भाजपा का गढ़ माना जाता है। हम उस किले को भेदने में सफल रहे। गुजरात में हमें 13 प्रतिशत वोट मिले हैं।’

केजरीवाल ने कहा, ‘लाखों की संख्या में गुजरात के लोगों ने हमें वोट किया है। आपके समर्थन से इस बार किला भेदने में सफल रहे हैं और अगली बार किला जीतने में कामयाबी प्राप्त करेंगे। हमने पूरा कैंपेन सकारात्मक ढंग से चलाया। किसी को गाली नहीं दी। केवल काम पर बात की। यही चीज हमे दूसरी पार्टियों से अगल करती है। अभी तक बाकी की पार्टियां धर्म, जाति की राजनीति करती रही हैं। यह पहली बार है जब कोई पार्टी काम की बात कर रही है।’

देश में कितनी राष्ट्रीय पार्टियां?

आम आदमी पार्टी राष्ट्र की 8वीं राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। इससे पहले राष्ट्र में 7 राष्ट्रीय पार्टियां थीं, जिसमें कांग्रेस, बीजेपी, बीएसपी, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी और टीएमसी का नाम शामिल था। राष्ट्रीय पार्टियों के अतिरिक्त राष्ट्र में राज्य स्तर की पार्टियां और क्षेत्रीय स्तर की पार्टियां होती हैं। सभी के पैमाने भी भिन्न- भिन्न होते हैं।

कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा?

किसी भी सियासी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए कई मानक पूरे करने होते हैं। हालांकि, इसके लिए दो ढंग हैं जिससे किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है। एक ये कि यदि किसी पार्टी की लोकसभा में 4 सदस्य हों और लोकसभा चुनाव में उसे 6 प्रतिशत वोट मिला हो तो वो राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त कर लेती है। वहीं, दूसरा उपाय ये है कि 4 राज्यों के विधानसभा चुनावों में 6 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर मिला हो।

आम आदमी पार्टी की कहां कितने वोट?

राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी AAP की दिल्ली, पंजाब और दिल्ली एमसीडी में गवर्नमेंट है। वहीं, गोवा में भी आम आदमी पार्टी के दो विधायक हैं। गोवा के विधानसभा चुनावों में AAP को दो सीटों पर जीत के साथ- साथ 6.77 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। अब गुजरात में भी आम आदमी पार्टी को करीब 13 प्रतिशत वोट मिल चुके हैं। इस तरह चार राज्यों में उसके 6 प्रतिशत से अधिक हो गए हैं और वो 8वीं राष्ट्रीय पार्टी बन गई है।

कांग्रेस खोती जा रही जमीन

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अब तक का अपना सबसे बेहतरीन और कांग्रेस ने खराब प्रदर्शन किया है। भाजपा ने यह करिश्मा उस वक्त करके दिखाया, जब वह पिछले 27 वर्षों से लगातार सत्ता में है। वहीं, सत्ता विरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा पाई। पार्टी लगातार अपनी जमीन खोती जा रही है। गुजरात की यह हार पार्टी के लिए सबक है। पूरे चुनाव में कांग्रेस हारी हुई लड़ाई लड़ती नजर आई। पार्टी के पास न कोई रणनीति थी और न आक्रामक प्रचार। इसका सीधा फायदा भाजपा और आम आदमी पार्टी को मिला। भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई चेहरा था, वहीं राहुल गांधी और सोनिया गांधी सहित तमाम बड़े नेता प्रचार से दूर रहे।

हिमाचल में मुद्दे अहम

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस ने आखिरकार भाजपा के हाथों से सत्ता छिन ली। चुनाव में कांग्रेस ने 40 सीटों पर जीतती दिख रही है। जो बहुमत के आंकड़े 35 से ज्यादा है। तीन सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी आगे हैं।

ऐसे में सवाल है कि आखिर कैसे भाजपा के हाथों से हिमाचल प्रदेश निकल गया? इसके क्या मायने हैं? क्या अब भी भाजपा सरकार पास सरकार बनाने का कोई विकल्प बचा है? आइए समझते हैं…

भाजपा की हार के पांच बड़े कारण क्या हैं?

इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषकों के अपने मत रहे उसमें वरिष्ठ पत्रकार/ राजनैतिक विश्लेषक रमेश श्रीवास्तव की समीक्षा यह है कि हिमाचल प्रदेश में भाजपा की हार के तीन बड़े कारण को बताया। साथ में ये भी बताया कि क्या चुनाव हारने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी सरकार बना सकती है?

बगावत ने छीन ली सत्ता

हिमाचल प्रदेश में प्रत्याशियों के एलान के बाद  सबसे ज्यादा बगावत भारतीय जनता पार्टी में दिखी। भाजपा के 21बागियों ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। कुछ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में भी चले गए। इसके चलते भाजपा के वोटों में बड़ी सेंधमारी हुई। इसका फायदा कांग्रेस को हुआ।



महंगाई-बेरोजगारी का मुद्दा भी रहा अहम

कोरोना के बाद पूरे देश की आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया। हिमाचल प्रदेश के आय का स्त्रोत पर्यटन है। कोरोनाकाल में ये पूरी तरह ठप पड़ गया था। इसके बावजूद यहां के लोगों को कुछ राहत नहीं मिली। इस बीच, महंगाई और बेरोजगारी भी काफी बढ़ गई। इसके चलते भी लोगों में सरकार के खिलाफ काफी नाराजगी दिखी।

सबकी रैलियों में जाएंगे, मगर वोट मन की आवाज पर …  
भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में डबल इंजन की सरकार की जमकर दुहाई दी थी। जिस तरह से बिलासपुर को एम्स की सौगात मिली है, वैसे ही दूसरे इलाकों में लोगों को कई बड़े प्रोजेक्ट लाने का भरोसा दिलाया गया। चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर स्थानीय नेताओं ने ‘रिवाज’ बदलने की बात कही। पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अनेक स्टार प्रचारकों ने पहाड़ी राज्य में जमकर प्रचार किया था।

चुनाव प्रचार के दौरान बिलासपुर के गांव मंडी मानवा में बोराराम, रमेश जिंदल व राम प्रकाश ने कहा था, देखिये जेपी नड्डा का बहुत लोग सम्मान करते हैं। प्रदेश की राजनीति में रहते हुए उन्होंने कई बार यहां से चुनाव लड़ा था। दो बार जीत दर्ज की। अब वे केंद्र में पार्टी के शीर्ष पद पर हैं। यहां के लोगों के मन में उनके प्रति सम्मान है। लोगों को मालूम है कि प्रदेश में भाजपा की जीत, नड्डा के कद को बढ़ा देगी। इसके साथ ही लोगों ने कहा, यह चुनाव बहुत अहम है। यहां के लोग जागरूक हैं। सबकी सुनतें हैं, सबकी रैलियों में जाते हैं, लेकिन वोट अपने मन की आवाज पर ही देते हैं।

‘डबल इंजन’ और ‘रिवाज’ के साथ भावनात्मक कार्ड भी …

हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में भावनात्मक कार्ड खेला गया। वोटरों को यह कह कर प्रभावित करने का प्रयास हुआ कि पहाड़ को ‘नड्डा’ के सम्मान का ध्यान रखना है। डबल इंजन में ही ‘पहाड़’ का बेहतर विकास संभव है। शिमला के रिज मैदान पर उमानंद का कहना था, हिमाचल की जनता समझदार है। अगर कोई डबल इंजन या रिवाज की बात करता है तो वह सब यहां नहीं चलेगा। लोगों में किसी पार्टी के प्रति कट्टरता का भाव नहीं है। हिमाचल की जनता पढ़ी- लिखी और जागरूक है। चुनाव में ‘पुरानी पेंशन बहाली’ का मुद्दा खूब गर्माया है। तकरीबन हर घर में कोई न कोई सरकारी कर्मचारी है। यूं भी कह सकते हैं कि हर चौथा व्यक्ति सरकारी विभाग, निगम या किसी सहयोगी संगठन में कार्यरत है। यहां पर गिनी चुनी सीट ही ऐसी होती हैं, जहां हार जीत का बड़ा फासला होता है। अधिकांश सीटों पर जीत- हार का अंतर बहुत छोटा होता है। कांग्रेस पार्टी ने सरकारी कर्मियों से वादा किया है कि वह सत्ता में आने पर पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करेगी। सरकारी कर्मी इस वादे को लेकर बहुत संजीदा हैं।

कांग्रेस पार्टी ने आंतरिक सर्वे के बाद लगाई बाजी …

भाजपा ने ‘ओपीएस’ को लेकर हिमाचल में कोई वादा नहीं किया था। पार्टी को यकीन था कि इससे पहले उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव में भी कांग्रेस ने यह मुद्दा उठाया था। वहां पर ओपीएस का मुद्दा उठाने से कांग्रेस को फायदा नहीं हुआ। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर आंतरिक सर्वे कराया था। उसमें कर्मचारियों की भारी नाराजगी सामने आई। हर विधानसभा क्षेत्र में सरकारी कर्मचारी, 15- 20 हजार से ज्यादा वोटों की ताकत रखते हैं। इसके बाद पार्टी ने जब अपना घोषणा पत्र जारी किया तो उसमें सरकारी कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन लागू करने का ऐलान कर दिया। 18 से 60 वर्ष की आयु की महिलाओं को हर माह 15 सौ रुपये देने और 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा कर दी गई। चुनाव में सरकारी कर्मियों की नाराजगी और भाजपा के बागियों का फायदा उठाने में कांग्रेस सफल रही।

संबित पात्रा का अचम्भित करता बयान

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने पार्टी की हार के लिए बागियों को जिम्मेदार ठहराया है। बता दें कि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने पुरानी पेंशन लागू करने को लेकर न तो कोई वादा किया और न ही इस बाबत विचार करने की बात कही। दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी ने इसी मुद्दे पर बाजी लगा दी। ओपीएस और बाग़ियों ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया। दोनों पार्टियों को मिले वोटों का अंतर बड़ा नहीं है। वोटों के महज एक फ़ीसदी के अंतर ने सीटों के मामले में बड़ा उलटफेर कर दिया।

उत्तर प्रदेश के रामपुर में कायस्थ नें रचा इतिहास

उत्तरप्रदेश का रामपुर सदर जो अब तक समाजवादी पार्टी के आजम खान का गढ़ कहा जाता था, वहाँ एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। खबर आ रही है कि 70 साल में हुए 20 विधानसभा चुनावों के बाद पहली बार इस क्षेत्र को एक हिंदू विधायक मिला है। रामपुर सदर जो अब तक समाजवादी पार्टी के आजम खान का गढ़ कहा जाता था, वहाँ एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। खबर आ रही है कि 70 साल में हुए 20 विधानसभा चुनावों के बाद पहली बार इस क्षेत्र को एक हिंदू विधायक मिला है।

सपा के असीम रजा का यह है कहना

असीम रजा ने कहा, “5 दिंसबर को रामपुर में चुनाव हुआ था और हमने पहले भी कहा था कि रामपुर में इलेक्शन हुआ ही नहीं है। शहर के अंदर 200 बूथों पर पुलिस ने रामपुर के शहरियों को वोट डालने ही नहीं दिया है। बूथों को लूट लिया है। 252 बूथों पर मात्र 20 फीसद वोटिंग हुई है। शहर और गाँव के बाहर जो बूथ थे वो सब कैप्चर कर लिए गए थे। वहाँ 50-70- 80 फीसद वोटिंग हुई है। सारे बूथ कैप्चर कर लिए गए। सवा दो लाख मतदाताओं को वोट नहीं डालने दिया गया। केवल 45 हजार वोट डाले गए और उसमें भी बहुत से बूथों पर पुलिस ने खुद ही वोट डाल दिए। अभी काउंटिंग हो रही है। लेकिव जो शहर में जहाँ सपा का गढ़ था, जहाँ टोटल वोट का 70% था वहाँ वोट नहीं डालने दिए गए।”



मैनपुरी उपचुनाव में भाजपा की लग गयी बाट तो नोटा बना सबका बाप

मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में जहां भाजपा के केशव मौर्य कमल खिला रहे थे, साइकिल पंचर करवानें के लिये कमर कस चुके केशव मौर्य शायद सिराथू की अपनी हार पचा नही पाये हैं, जिस कारण साइकिल पंचर करनें का उनका सूजे का नोंक कुंद हो गया था, फिर भी इतनें बड़े बड़े नेताओं को मात देते हुए, डिम्पल नें मैनपुरी में पहली महिला सांसद बननें का गौरव प्राप्त किया। वहीं नोटा नें भी किया जबरदस्त प्रदर्शन तीसरी पोजीशन बनाते हुए नोटा साबित हुआ शेष प्रत्याशियों का बाप।

खतौली त्यागियों नें श्रीकांत त्यागी मुहिम का दिया साथ भाजपा की बिगड़ गयी बात।

वही खतौली सीट पर श्रीकांत त्यागी के भाजपा विरोधी मुहिम के चलते भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। वहां पर भी योगी केशव व पाठक का जादू बेकार चला गया, श्रीकांत त्यागी वहां पर विधायक बनाने के सबसे बड़े मसीहा बनकर निकले।


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