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बृजेश व धनंजय ने ही करवाया नितेश सिंह का काम तमाम, सीबीसीआईडी जांच में भी जारी रहेगा तीन पांच।

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वाराणसी (अमित मौर्य)। समरथ के न दोष गोसाई, कोई भी आये कुछ बिगाड़ न पाई, कानून सिर्फ कमजोरों के लिए होते है ताकतवर के आगे कानून व उसके रखवाले नतमस्तक रहते है जिसका उदाहरण ये रहा आप के सामने वाराणसी में 3 साल पहले दिनदहाड़े मर्डर हुआ था। इस चर्चित हत्याकांड के मामले में सत्ता पक्ष के सफेदपोशों पर भी अंगुली उठी थी, मामले की जांच में लगे तेज तर्रार पुलिस अधिकारी विक्रम सिंह जैसे ही हत्यारों के करीब पहुंचनें वाले थे, कि तभी उनका स्थानांतरण पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ओर करते हुए जांच पूर्ण होने से पहले ही हटा दिया गया। पूरे पुलिस विभाग को पता है की माफिया एमएलसी ब्रजेश सिंह व माफिया पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने ही नितेश सिंह को मरवाया लेकिन पुलिस सब कुछ जानते हुए भी मौन है कारण ये भी है, कि केन्द्रीय रक्षा मंत्री के परिवार से इन दोनों के कथित रूप से व्यापारिक सम्बन्ध है। जिस दिन पुलिस राजनैतिक दबाव से मुक्त हो जाएगी तो कोई बचेगा नही।



ज्ञात हो कि वाराणसी में ठेकेदार नितेश सिंह उर्फ बबलू की हत्या सदर तहसील परिसर में 30 सितंबर 2019 को दिनदहाड़े गोली मारकर की गई थी। वाराणसी के 3 साल पुराने नितेश सिंह बबलू हत्याकांड की जांच से, जांच अधिकारी विक्रम सिंह को हटाकर मामले को सीबीसीआईडी को सौप दी गई थी। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सुरेंद्र सिंह की बेंच ने दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि जांच अधिकारी नियुक्त कर संबंधित मजिस्ट्रेट को सूचना दी जाए और कानून के अनुसार विवेचना की जाए।

कौन था नितेश सिंह बबलू जिनकी सदर तहसील में दिनदहाड़े हत्या की गई?

वाराणसी की सदर तहसील में अपने बुलेट प्रूफ वाहन में बैठने जा रहे नितेश सिंह बबलू की अंधाधुंध फायरिंग कर हत्या कर दी गई थी।
ठेकेदारी करने वाले नितेश सिंह बबलू का घर सारनाथ क्षेत्र के मवइयां में स्थित है। नितेश सारनाथ थाने का हिस्ट्रीशीटर भी था। विगत वर्ष 2019 की 30 सितंबर की दोपहर लाइसेंसी असलहे से लैस नितेश सदर तहसील में अपनी बुलेट प्रूफ गाड़ी में बैठने ही जा रहा थे, तभी उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर उसकी हत्या कर दी गई थी।

पुलिस ने प्रारंभिक छानबीन में यह स्पष्ट कर दिया था कि वारदात को अंजाम देने में शूटर गिरधारी विश्वकर्मा उर्फ डॉक्टर और उसके साथी बदमाशों की अहम भूमिका रही है। मगर, जौनपुर, चंदौली और वाराणसी के सत्ता पक्ष के सफेदपोशों के प्रभाव में गिरधारी की ओर पुलिस ने ध्यान ही नहीं दिया। इस मामले में लगभग 6 माह बाद गिरधारी का नाम वारदात में प्रकाश में आया। 11 जनवरी 2021 को गिरधारी नाटकीय तरीके से दिल्ली में गिरफ्तार हुआ। 14 फरवरी 2021 की रात लखनऊ में पुलिस कस्टडी से भागने के दौरान मुठभेड़ में गिरधारी मारा गया।

मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद हुआ था मनमुटाव

9 जुलाई 2018 को बागपत जेल में माफिया डॉन प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ ​​मुन्ना बजरंगी की हत्या की गई थी। इस हत्याकांड के बाद जौनपुर के एक पूर्व सांसद और लखनऊ में रहने वाले गाजीपुर के एक रसूखदार के बीच अनबन हो गई थी। शुरू से ही रसूखदारों की संगत में रहने वाले नितेश सिंह बबलू ने मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद लखनऊ में रहने वाले रसूखदार से अपनी करीबी बढ़ा ली।
नितेश सिंह बबलू हत्याकांड की जांच में शामिल रहे पुलिस कर्मियों के अनुसार, जौनपुर के पूर्व सांसद को यह अच्छा नहीं लगा कि नितेश अब लखनऊ में रहने वाला रसूखदार के करीब हो गया है। इस पर पूर्व सांसद ने चंदौली जिले के एक विधायक को राजनीतिक संरक्षण के लिए साथ लिया। इसके साथ ही वर्चस्व की लड़ाई में नितेश सिंह बबलू की हत्या की गई।

वाराणसी शहर में रह कर 7 दिन तक शूटर करते रहे थे रेकी

नितेश सिंह बबलू के त्रयोदशाह में पूर्वांचल से लेकर लखनऊ तक के कई सफेदपोश और रसूखदार लोग शामिल हुए थे। नितेश सिंह बबलू की हत्या करने वाले शूटरों को जौनपुर के पूर्व सांसद ने शिवपुर क्षेत्र निवासी अपने एक करीबी के यहां ठहाराया था। जिसके फ्लैट में गिरधारी सहित अन्य शूटर ठहरे हुए थे, उसकी भी पूर्वांचल से लेकर लखनऊ तक अच्छी हनक है। शूटरों ने सात दिन तक शहर में नितेश सिंह बबलू के मूवमेंट की रेकी की थी। 30 सितंबर 2019 को सदर तहसील में उचित जगह और ठीक समय देख कर नितेश सिंह बबलू पर ऐसे ताबड़तोड़ गोली बरसाई गई कि उसे अपना लाइसेंसी असलहा निकालने तक का मौका भी नहीं मिल पाया था।



पूर्व सांसद और विधायक से होनी थी पूछताछ

वाराणसी के चर्चित नितेश सिंह हत्याकांड की जांच सीबीसीआईडी को सौंपे जाते ही एक बार फिर पूर्वांचल के सफेदपोशों और रसूखदारों के बीच सरगर्मी बढ़ गई थी। हालांकि वादी पक्ष ने हाईकोर्ट में कहा था कि इस वारदात में जौनपुर , चंदौली और वाराणसी के प्रभावशाली और सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों का हाथ है, वह जांच को प्रभावित कर रहे हैं। इसी वजह से पुलिस निष्पक्ष तरीके से जांच नहीं कर रही है। कानून के जानकारों का कहना है कि जौनपुर के पूर्व सांसद और चंदौली जिले के विधायक की मुश्किलें अब बढ़ेंगीं और पूछताछ के दायरे में वह दोनों भी आएंगे। साथ ही, साक्ष्य के आधार पर दोनों कार्रवाई की जद में भी आ सकते हैं। लेकिन सत्ता से नजदीकियां होने के कारण पुलिस इस हत्याकांड के राज को खोल नही पाई, जिसका नतीजा यह निकलकर सामने आया कि पुलिस इन सफेदपोशों के ऊपर हाथ नही डाल पाई।

चंदौली से जुड़ा था नितेश सिंह ‘बबलू’ का नाता

नितेश सिंह उर्फ बबलू मूल रूप से चंदौली जिले के धानापुर के निवासी थे। तीन भाइयों में सबसे बड़े नितेश सिंह ठेकेदार और बस मालिक थे। रोजा और सहेली नाम से 8 बस गाजीपुर- बनारस रोड पर चलती हैं। इसके साथ ही कुछ बस बनारस- मध्य प्रदेश रोड पर चलती हैं।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, नितेश सिंह ‘बबलू’ सारनाथ थाने का हिस्ट्रीशीटर था।

एनसीएल में ठेकेदारी के साथ ही बस- ट्रक संचालन और प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते थे। बसपा सरकार में नितेश सिंह का डॉ. वी.पी. सिंह हत्याकांड में भी नाम शामिल था।

खुलासे के करीब पहुंचने वाले क्राइम ब्रांच के प्रभारी विक्रम सिंह का कर दिया गया तबादला

नितेश सिंह बबलू हत्याकांड के सफल खुलासे के लिए तत्कालीन कप्तान ने कई टीम बनाया था। हत्याकांड के कारण थाना प्रभारी शिवपुर पर कार्यवाही हुई और घटना का खुलासा करने के लिए शिवपुर थाना क्राइम एक्सपर्ट के हवाले किया गया। इस घटना के सफल खुलासे के लिए जहा एक तरफ क्राइम ब्रांच टीम तत्कालीन प्रभारी विक्रम सिंह के नेतृत्व में काम कर रही थी। तो शिवपुर पुलिस टीम भी अपना काम कर रही थी। वही क्राइम पर बढ़िया पकड़ रखने वाले तत्कालीन थाना प्रभारी लंका भारत भूषण तिवारी भी अपनी टीम के साथ काम कर रहे थे। घटना के खुलासे के लिए सभी टीम लगी हुई थी। इसके साथ ही यह सवाल था कि इन सफेदपोशो पर हाथ डालने के लिए “लोड कौन लेगा?” जैसे शब्दों का सामना करना आम बात है।

वही दूसरी तरफ घटना में जौनपुर के सफेदपोश से लेकर लखनऊ के सफेदपोशो तक की कड़ियाँ जुड़ रही थी। इस क्रम में घटना के नज़दीक तक दो टीम पहुंच रही थी कि तभी भारत भूषण तिवारी को इस घटना से अलग करके दूसरा टास्क दे देने की चर्चाएं विभाग के सूत्रों से प्राप्त हुई थी, दूसरी तरफ तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह ने अपनी जी जान लगा दिया था।

विक्रम सिंह का हुआ ट्रांसफर और ठन्डे बस्ते में गया केस

इस दरमियान सफेदपोशों का बोलबाला काम करता हुआ दिखाई दिया। तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह और तत्कालीन लंका थाना प्रभारी भारत भूषण तिवारी ने जी जान लगा रखा था। भारत भूषण तिवारी की सुई शूटर के नाम पर आजमगढ़ के एक अपराधी और दुसरे चोलापुर के मूलनिवासी गिरधारी लोहार पर जाकर रुकी थी। सूत्र बताते है कि इस दरमियान भारत भूषण को केस से अलग किया गया था। दूसरी तरफ तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह ने अपनी जी जान इस केस के खुलासे को झोक रखा था।

विक्रम सिंह ने मामले के सफल खुलासा अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया हुआ था। सूत्र बताते है कि विक्रम सिंह ने एक लम्बी जद्दोजेहद के बाद गिरधारी लोहार का नाम घटना में खोल दिया था।
जिसके बाद विक्रम सिंह का वाराणसी से ट्रांसफर अन्य जनपद कर दिया गया और उनको भी केस से अलग कर दिया गया।


कहाँ से आया दुबारा केस चर्चा में

एक बड़े अपराधिक इतिहास रखने वाले गिरधारी लोहार पर इनाम घोषित होने के बाद मामला दुबारा चर्चा में आया था। गिरधारी के गिरफ़्तारी के लिए कुछ प्रयास शुरू भी थे मगर टीम वर्क की एक बड़ी कमी नज़र आई थी। गिरधारी के उस समय बनारस में होने की संभावना थी। पुलिस उसकी गिरफ़्तारी के लिए प्रयासरत थी। दूसरी तरफ अपने मामूर के हिसाब से गिरधारी सरेडर करने की कोशिश में था।

इस दरमियान चली जद्दोजहद में गिरधारी पुलिस के हाथो में आने के पहले ही रेत की तरह फिसल गया और उसकी हत्या हो गई वापस केस ठन्डे बस्ते में चला गया। तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह का ट्रांसफर गैर जनपद हो चुका था, और शब्द वही “लोड कौन लेगा” का उत्तर नही मिल रहा था। गिरधारी वापस फरार हो चूका है और पुलिस एक बार फिर से हाथ मल रही है। अपराध के इतने साल गुज़र जाने के बाद भी पुलिस के हाथ पूरी तरह खाली है।


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