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उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के आरक्षण मुद्दे पर हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम रोंक, सरकार के निर्णय की पीठ थपथपाई।

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उत्तर प्रदेश। निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा दिए गए निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इस फैसले से योगी सरकार को राहत मिली है। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को निरस्त करते हुए सरकार को जल्द से जल्द चुनाव कराने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद से यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है और साथ ही दूसरे पक्ष को नोटिस जारी कर तीन हफ्तों के अंदर उनसे जवाब मांगा है।



मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उच्चतम न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई समय सीमा के अंतर्गत ओबीसी आरक्षण लागू करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार निकाय चुनाव संपन्न कराने में सहयोग करेगी। सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के लिए राहत भरी खबर आई। दरअसल, शीर्ष कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उत्तर प्रदेश को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के बिना शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार की ओर से नियुक्त पैनल को तीन महीने में राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर फैसला करना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस दौरान स्थानीय निकायों का प्रशासन बाधित न हो, यह  सुनिश्चित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार कार्यकाल समाप्त होने के बाद अधिकारों को प्रत्यायोजित करने के लिए स्वतंत्र होगी। 27 दिसंबर को हाई कोर्ट के निर्णय के बाद मचे राजनीतिक हंगामे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बयान जारी किया था और मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात कही थी। वहीं, मामले पर पांच सदस्यीय आयोग का भी गठन किया गया था।

गठित किए गए आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राम अवतार सिंह हैं। इसकी एक बैठक बीते दिनों लखनऊ में भी हो चुकी है। आयोग के चार अन्य सदस्य सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी चौब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, राज्य के पूर्व कानूनी सलाहकार संतोष कुमार विश्वकर्मा और ब्रजेश कुमार सोनी हैं। बैठक के बाद राम अवतार सिंह ने कहा था कि आयोग अपनी रिपोर्ट ढाई से तीन माह में सौंपेगा। हालांकि, उसके बाद होने वाली फॉलोअप की प्रक्रिया में दो-तीन माह का समय और लग सकता है। उन्होंने कहा कि आयोग कमोबेश हर दिन बैठक करेगा। प्रत्येक जिले में जाकर डीएम और राजस्व अधिकारियों की मदद से डाटा जुटाएगा। इस तरह से अपने सर्वे की प्रक्रिया को पूरा करेगा।



उन्होंने कहा था कि  सर्वे के लिए क्या प्रणाली अपनाई जाए, क्योंकि इसके लिए अभी तक कोई निश्चित गाइडलाइन या प्रक्रिया तय नहीं है, ऐसे में इस बाबत विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने कहा कि अधिकारियों के अलावा सर्वे के काम में जनप्रतिनिधियों की मदद भी लेंगे। अगर प्रशासनिक अधिकारी कोई गलत सूचना देते हैं तो जनप्रतिनिधि से बात करके उसे सुधार लेंगे। इस मामले में सर्वे के लिए बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अपनाई गई प्रक्रिया का भी अध्ययन किया जाएगा। जिस भी जिले में सर्वे के लिए आयोग के सदस्य जाएंगे, वहां के जनप्रतिनिधियों को पूर्व में सूचना दी जाएगी। आयोग के सदस्य सचिव की ओर से फोन नंबर भी जारी किए जा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश स्थानीय निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जिन प्रशासकों को उनकी शक्तियां सौंपी जाएंगी, वे बड़े नीतिगत फैसले नहीं लेंगे। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर संज्ञान लिया। पीठ ने निर्देश दिया कि आयोग को 31 मार्च तक स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर फैसला करना होगा।

इससे पहले स्थानीय निकाय चुनाव मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया था। मामले चार जनवरी को सुनवाई तय की गई थी। दरअसल, शहरी स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना रद्द करने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में निकाय चुनावों पर सरकार की मसौदा अधिसूचना को रद्द कर दिया था।

राज्य ने दी थी यह दलील

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि उच्च न्यायालय पांच दिसंबर की मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता है, जो अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए शहरी निकाय चुनावों में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है। एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड रुचिरा गोयल के माध्यम से दायर अपील में कहा गया था कि ओबीसी संवैधानिक रूप से संरक्षित वर्ग है और उच्च न्यायालय ने मसौदा अधिसूचना को रद्द करने में गलती की है। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण प्रदान करने के लिए सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए पांच सदस्यीय आयोग नियुक्त किया है।



क्या है पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश सरकार ने पांच दिसंबर को निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की अधिसूचना जारी की थी। इसके इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। कहा गया कि यूपी सरकार ने आरक्षण तय करने में सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले का पालन नहीं किया है। इस पर हाईकोर्ट ने आरक्षण की अधिसूचना रद्द करते हुए यूपी सरकार को तत्काल प्रभाव से बिना ओबीसी आरक्षण लागू किए नगर निकाय चुनाव कराने का फैसला दे दिया था।


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