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हल्द्वानी उत्तराखंड यदि सुप्रीम कोर्ट न लगाता कार्यवाही पर रोंक तो होता भीषण खून खराबा।

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उत्तराखंड। हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर हजारों लोगों ने अवैध कब्जा किया हुआ है। इसमें से कई अवैध घुसपैठिए भी बताए जाते हैं। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अवैध बस्ती को सात दिन के अंदर हटाने के हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। हल्द्वानी में जो कुछ भी हो रहा है। आखिरी सच वह सब आप तक ग्राउंड जीरो से पहुँचाने में जुटा हुआ है।

इसी कड़ी में, ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान, हमने स्थानीय लोगों से बातचीत की। इस बातचीत में कई ऐसे पहलू सामने आए हैं जो हैरान करने वाले हैं। हमने एक व्यक्ति से पूछा कि क्या आपको रेलवे लाइन वाली घटना का पता है, वहाँ से लोग हटाए जा रहे हैं? इस पर उस व्यक्ति ने कहा, “हाँ, मैं उधर ही रहता हूँ, रेलवे बाजार में।”



हमने उससे आगे पूछा, जो लोग वहाँ पर भीड़-भाड़ में दिखाई दे रहे थे और हंगामा कर रहे थे वे लोग लोकल थे या बाहरी? इस पर उसने कहा, “लोग यहाँ के भी हैं और बाहरी लोग भी आ जाते हैं। हालाँकि, मैं अपना अंदाजा बता रहा हूँ कि जब 10 तारीख से जब से ये काम शुरू होगा (अवैध बस्ती हटाने का काम) तो बिना कर्फ्यू के ये लोग काबू में नहीं आएँगे।”

हम जिस स्थानीय व्यक्ति से बात कर रहे थे वह बिना कुछ पूछे ही लगातार हल्द्वानी के हालात बताता जा रहा था, उसने आगे कहा, “कल मैं मुस्लिम भाई की एक दुकान पर बैठा था। दुकान में मैनें बच्चों से बात करते हुए कहा कि आपके बाप- दादाओं ने जमीन पर कब्जा किया और इतने सालों तक लगातार रहे। समझ लो किराए पर गुजारा कर लिया। लेकिन वहाँ बैठे लोगों ने कहा ऐसा है चाहे जान चली जाए लेकिन ऐसा नहीं होने देंगे।”

उसने कहा, “मैंने उन लोगों से पूछा कि ऐसा करने से आपको मिलेगा क्या? मान लिया कि आपका ये जा रहा है लेकिन रोजी- रोटी तो बची हुई है। उससे आप सब कुछ खरीद सकते हैं। हालाँकि, प्रशासन सतर्क है। लेकिन, राजनेता जो भी हैं, मतीन सिद्दकी हो या कोई भी नेता, कार्यकर्ता या मुस्लिम सब लाशों पर रोटी सेंकने वाले हैं।”
हमारे किसी भी सवाल का इंतजार किए बिना उसने कहा, “सब एक से बढ़कर एक दमदार हैं, समा वाले हों या ये लोग हों सबके पास हथियार हैं। हमारे हिंदू के पास एक चाकू नहीं होगा। इन सब के यहाँ इतना हथियार निकलेगा जिसकी हद नहीं। लाइन नंबर 17 से लेकर पूरे इलाके में इतना हथियार इकट्ठा हो चुका है, जिसकी कोई हद नहीं।”

हमसे बात करते हुए वह थोड़ा रुका। हम उससे कुछ पूछने वाले थे। लेकिन, तभी वह फिर बोल पड़ा। उसने कहा, एक छोटा बच्चा भी बड़ा हो चुका है। इसलिए, अगर प्रशासन इसमें लापरवाही कर गया तो खतरा भी हो सकता है।”



हमने उससे आगे पूछा, आप यहाँ कब से हैं? उसने कहा, मैं यहाँ 80 के दशक से रह रहा हूँ। हमारा अगला सवाल था कि क्या पहले यहाँ इतने ही मुस्लिम थे। उसने कहा, “नहीं- नहीं, भाईसाहब ये मुसलमान तो टोटल बाहर के हैं। ये लोग रामपुर, नजीमाबाद, बिजनौर के हैं। मेरे सामने ये लोग मजदूरी करते थे। अब इन्होंने उजाला नगर से लेकर न जाने कहाँ- कहाँ 3-3 मकान बना डाले। इनकी पूरी फैमिली, पूरे रिश्तेदार यहाँ शिफ्ट हो गए।”

हमारी बातचीत सुन रहे एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “इतने मुसलमान यहाँ पहले थोड़ी थे। पहले हिंदू ही ज्यादा थे। मेरी पैदाइश इंदिरा नगर की ही है।” हमने आगे पूछा, “इंदिरा नगर अवैध कॉलोनी है या नहीं” तब, जवाब मिला, “नहीं, ये सब वही अवैध बस्ती है।” हमने पूछा कि क्या इंदिरा नगर, इंदिरा गाँधी के नाम पर बसाया गया, तो उसने जवाब दिया, हाँ, हो सकता है, उन्हीं के नाम पर हो।”


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