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विश्वनाथ दरबार की बुनियाद ढुंढीराज मंदिर की समस्या पर विस्तृत जानकारी के साथ परम् पूज्य महंत शंकर पुरी जी से पत्र चर्चा, जिसे तथाकथित मीड़िया कर रही नजरंदाज।

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वाराणसी। परम् पूज्य महंत शंकर पुरी जी महन्त, श्रीअन्नपूर्णा मन्दिर काशी के लिये यह पत्र लिखा है श्री अजय शर्मा जी नें, जिसमें उन्होंनें बाबा विश्वनाथ दरबार के बुनियाद ढुंढीराज मंदिर पर आ रही समस्या पर विस्तृत जानकारी के साथ चर्चा की है। जिसे देश की तथाकथित मीड़िया नजरंदाज कर रही है, पत्र में श्री शर्मा नें लिखा है। उपाध्याय जी से यह जानकारी प्राप्त हुई कि आप द्वारा मंदिर जीर्णोधार एवं रास्ता चौड़ा करने हेतु विश्वनाथ धाम प्रशासन को अपनी सहमति प्रदान की गई है, जबकि आपको भलीभाँति ज्ञात है कि धाम में अनेक देवी- देवता के स्थान पर गेस्ट हाउस, शौचालय आदि का निर्माण हुआ, जो धर्म मर्यादा के विरुद्ध है।



काशी के पौराणिक प्रथम देवता ढुंढीराज विनायक (गणेश) का आप जीर्णोधार कराने में सक्षम नहीं है तो उनके जीर्णोधार का सौभाग्य हम काशीवासियों प्रदान करने की महती कृपा करें, हम काशीवासी शास्त्र विधि विधान अनुसार अपने देवता ढुंढीराज जी का जीर्णोधार कराकर आपके सुपुर्द कर देंगे।

श्रद्धेय, जैसा कि आप अवगत है काशी के प्रथम देवता ढुंढीराज विनायक जी है और पुनः काशी आगमन पर ढुंढिराज गणपति जी की महिमा महादेव स्वयं ऐसे कहते हैं –

यदहं प्राप्तवन्स्मि पुरीं वाराणसी शुभाम। मयाप्ति वदुस्प्राप्यं स प्रसादोष्य वै शिशोः॥

अर्थात, मुझे अपने लिए परम दुर्लभ बनी इस शुभा वाराणसी पुरी में जो मैं आ सका हूँ, यह सब इसी बालक (ढुंढिराज) का प्रसाद है।

यदुस्प्रसाध्यं हि पितुरपि त्रिजगति तले। तत्सुनुना सुसाध्यं स्यादत्र – ष्तान्तता मयि।।

अर्थात, त्र्लोक्य मण्डल में जो पिता का भी दुसाध्य है (पिता जिस कार्य को पूरा नहीं कर सकता) पुत्र से वही साध्य हो जाता है इसका उदाहरण मैं स्वयं ही हूँ।



अन्वेषणे ढुंढीरयं प्रथितोस्ति धातुः , सर्वार्थः ढुंढिततया तव दुढिनाम। काशी प्रवेशमपि को लभतेत्र देहि , तोषं विना तव विनायक दुढिराज॥

अर्थात, ढूंढि नाम तो ढूंढने के ही अर्थ में प्रसिद्ध है और समस्त अर्थो को ढूंढने के ही कारण तुम्हारा नाम ढूंढि हुआ है। इस लोक में तुम्हारे तोष कृपा के बिना काशी में कोई प्रवेश नही पा सकता।

ढूंढे प्रणम्य पुरस्त्वपाद पद्मं , यो मां नमस्यति पुमानिह काशीवाशी। तत्कर्णमूलमधिगम्य पुरा दिशामि , तत्किचिंदत्र न पुनः गर्भः तास्ति येन।।

अर्थात् हे, ढुंढिराज जो काशीवासी प्रथम ही तुम्हारे चरणविन्द में प्रणाम कर मुझे फिर से नमस्कार करता है, मैं उसके कान के पास पहुँचकर अंत समय मे कुछ ऐसा उपदेश देता हूं जिससे उसको दुबारा इस संसार मे जन्म नही लेना पड़ता।

प्रथमं ढुंढि रजोसि मं दक्षिणो मनाक आढुंढय सर्वभक्तेभ्यः सर्वार्थान् संप्रयच्छति। अङ्गारवासरवतिः मिह यै चतुर्थी संप्राप्य मोदकभरै प्रमोद वदभिः पूजा व्यधायि विविधा तव गन्ध माल्यैस्तानत्र पुत्र विदधामी गणान्गणेशः।।

अर्थात, प्रथम तो मेरे दक्षिण ओर समीप में ही तुम ढुंढिराज रूप से विराजमान हो, जो समस्त भक्तों को ढूंढ ढूंढ कर उनके सब कार्यो (अभिलाषा) को पूर्ण कर देते हो। हे सुपुत्र गणेश जो लोग मंगलवार की चतुर्थी को सुगंध युक्त लड्डुओं से तुम्हारी विधिवत पूजा करते है, उनको मैं अपना पार्षद बनाता हूँ। ढुंढी धातु तो ढूंढने ही के अर्थ में प्रसिद्ध है और समस्त अर्थों के ढूंढने के ही तुम्हारा नाम ढुंढी हुआ है।



इस लोक में तुम्हारी कृपा के बिना हे ढुंढीराज! विनायक! काशी पुरी में प्रवेश भी कौन पा सकता है। जिन परम् पुज्य ढुंढिंराज की महिमा का व्याख्यान स्वयं महादेव करते हों, उनको हम तुच्छ प्राणी प्रथम पुज्य व उनके स्थान को कैसे नष्ट होते देख सकते है? जबकि काशी में स्थान बलि है उसका महात्म कुछ इस प्रकार से विदित है

स्थानं प्रधानं न बलं प्रधानं, स्थाने स्थितः कापुरूषोऽपि शूरः।

अर्थात- स्थान प्रधान है, बल प्रधान नहीं है। स्थान के प्रभाव से कापुरूष भी- उनको हम मनुष्य शूर हो जाता है नुष्य कैसे भूल सकते है?

श्रद्धेय आज वर्तमान में इस पौराणिक मंदिर की पूजा, पाठ आदि व्यवस्था का सम्पूर्ण अधिकार आप और उपाध्याय परिवार के पास है। लेकिन आज उपाध्याय जी से यह जानकारी प्राप्त हुई कि आप द्वारा मंदिर जीर्णोधार एवं रास्ता चौड़ा करने हेतु विश्वनाथ धाम प्रशासन को अपनी सहमति प्रदान की गई है, जबकि आपको भलीभाँति ज्ञात है कि धाम में अनेक देवी- देवता के स्थान पर गेस्ट हाउस, शौचालय आदि का निर्माण हुआ, जो धर्म मर्यादा के विरुद्ध है।



फिर भी माँ अन्नपूर्णा के आप जैसे सेवक द्वारा ऐसी अनुमति देना अनर्थ को दावत देने सामान है। जबकि शास्त्रों में कहा गया है कलयुग में स्थान की पूजा होती है-  कलौ स्थानानि पूज्यन्ते।”  पुराणों में यह भी कहा गया है कि धार्मिक, आध्यात्मिक शक्ति के केन्द्र यदि उस रूप में नहीं हैं, तो भी उस स्थान को महत्व मिलना चाहिए, क्योंकि उसके पूजन व दर्शन से शक्ति मिलती है और जो मनुष्य उस स्थान का दर्शन या पूजन करेगा, उसे दिव्यधाम की प्राप्ति होगी।

उक्त सन्दर्भ में आपसे सविनय निवेदन है कि यदि काशी के पौराणिक प्रथम देवता ढुंढीराज विनायक (गणेश) का आप जीर्णोधार कराने में सक्षम नहीं है तो उनके जीर्णोधार का सौभाग्य हम काशीवासियों प्रदान करने की महती कृपा करें, हम काशीवासी शास्त्र विधि विधान अनुसार अपने देवता ढुंढीराज जी का जीर्णोधार कराकर आपके सुपुर्द कर देंगे।


                 समस्त                    सनातनियों से उनके यथासंभव सहयोग की आवश्कता है कृपया अपना श्रंखलाबद्ध सहयोग हमें प्रदान करें जिससे हम सनातन के खिलाफ षड़यंत्रों का पर्दाफाश कर सच आपके समक्ष ला सकें।

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