श्रीरामचरित मानस। दुष्यन्त पुत्र राजा भरत की पवित्र भूमि भारत वर्ष सनातनियों के इस धरा पर पवित्रग्रन्थ श्रीरामचरित मानस हो या मनुस्मृति… का जलाया जाना ब्राह्मणों का ही नहीं बल्कि सर्वप्रथम क्षत्रियों का अपमान है, उनके विरुद्ध एक नियोजित षडयंत्र है।
और आश्चर्य यह कि समाज एवं धर्म की रक्षा और सुरक्षा का दम्भ भरने वाला क्षत्रिय समाज उक्त मामले पर मौन है…. भगवान श्रीराम के परम पावन और भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट राजा इक्ष्वाकु के कुल का अपमान है….
…………………………रामचरित मानस में हर जगह भगवान को राघव, रघुनंदन, रघुपति, भानुकुल, दिवाकर आदि उपनामों से अलंकृत किया गया है….. मानस में भगवान स्वयं परशुराम जी से कहते हैं।
छत्रिय तनु धरि समर सकाना। कुल कलंकु तेहिं पावँर आना। कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी।कालहु डरहिं न रन रघुबंसी।।
इक्ष्वाकु वंश भारत की आत्मा है.. इक्ष्वाकु वंश का अपमान सम्पूर्ण सनातन धर्मियों का अपमान क्यों व कैसे है?
क्योंकि बाल्मिकी रामायण में वानरराज बाली से स्वयं भगवान कहते हैं-
पर्वतों, काननों सहित यह समस्त भूमंडल इक्ष्वाकु वंशियों का हैं। इस अखिल भूमंडल में जितने पशु पक्षी और मनुष्य रहते हैं उन्हें दंड देने अथवा उन पर अनुग्रह करने का अधिकार इक्ष्वाकु वंशियों को है।
…….. इसी इक्ष्वाकु वंश ने पृथ्वी पर अपनी साधना से मोक्षदायिनी गंगा उतारी थी और सनातन धर्मियों को प्रथम संविधान मनुस्मृति दिया था……।
……… ये पहली बार नहीं है जब कथित दलित चिंतकों, क्रिप्टोक्रिस्चियनों बाबर की औलादों ने ऐसी हरकत की है.. इसके पूर्व ये मनु महाराज का बहुत अपमान कर चुके हैं उनकी मूर्ति और उनकी स्मृति जलाई.. जो समस्त स्मृतियों में अग्रणी है….
ब्राह्मणों का नाम लेकर राजा राम के पूर्वज मनु महाराज का अपमान करते हैं ये…….
मनुस्मृति क्षत्रिय ग्रंथ है, क्षत्रियों के लिए कर्त्तव्य ग्रन्थ है, इसमें शासन और दंड के नियम हैं जो पूरी तरह सत्ता केंद्रित हैं और राजा राम के राज में भी और भीष्म पितामह के राज में भी मनुस्मृति ही संविधान के रूप में प्रचलित थी… मनुस्मृति में ही लिखा है की राजा केवल क्षत्रिय हो सकता है….
बार- बार ब्राह्मणों का आड़ लेकर येक्रिप्टोक्रिस्चियन, तथाकथित नवबौद्ध दलित चिंतक परम पावन इक्ष्वाकु कुल पर ही हमला करते हैं…भगवान राम की रामायण जलाना जघन्यतम अपराध है… धर्मो रक्षति रक्षितः
क्षत्रियों कुल उत्पन्न हे! पुरुषों या तो आप अपने क्षत्रिय तेज को जागृत कर इन विधर्मियों को दण्ड देने के लिए आगे आईये अथवा मान लीजिए कि अब आपके क्षात्र रक्त में भी संक्रमण हो चुका है…
और मुझे महर्षि वाल्मीकि के शब्दों में कहने पर विवश न होना पड़े कि- धिक् बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजो बलं बलं।। जय जय श्री राम …जय परशुराम ….. हर हर महादेव