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अखिल भारत हिंदू महासभा के अध्यक्ष होने का दावादेर स्वयं को नही साबित कर पाये स्वामी चक्रपाणि, युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष अरूण पाठक की चेतावनी।

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सुप्रीम कोर्ट। स्वामी चक्रपाणि महराज द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में स्वामी अखिल भारत हिंदू महासभा के अध्यक्ष होने का दावा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने उक्त आदेश में उन्हें और अन्य पदाधिकारियों को कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। जबकि यथार्थ व जमीन से जुड़े नेतृत्व के जबरदस्त गुणों से पूरित स्वामी चक्रपाणि की अपनी अलग ही सोंच है, जो सनातना को पूर्णतया पोषित करती है।

 

https://twitter.com/SwamyChakrapani/status/1621740042984251393?t=CGn2Z6QE8sZ-2DMf9CMWFw&s=19

यह हैं स्वामी जी के विचार


 

यह है न्यायालय का मामला

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की खंडपीठ स्वामी चक्रपाणि द्वारा दायर एक याचिका संख्या 21194/ 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश 363/ 2020 में दिनांक 06-09-2021 को चुनौती देने वाली एक विशेष अनुमति याचिका IA No.169518/ 2021 No.169520 / 2021 दाखिल करने से छूट दिनांक 07-02-2022 पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें भारत के चुनाव आयोग को पार्टी के पदाधिकारियों को कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

चक्रपाणि महराज की ओर से यह है पक्ष

स्वामी चक्रपाणि की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करने की जरूरत है। उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान में कोई भी व्यक्ति महासभा के लिए उम्मीदवारों को नामित करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि यह शून्य से पैदा हुआ है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने कहा कि वह याचिकाकर्ता को महासभा के अध्यक्ष के रूप में मान्यता नहीं दे सकता।

 


यह भी एक यथार्थ परक मांग है।


न्यायाधीश नें यह कहा

जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा, “आप आपस में लड़ रहे हो, क्या किया जा सकता है?” सिंह ने कहा, “इस अदालत को इस मामले को देखना होगा। यह सबसे पुरानी पार्टी है। किसी को पार्टी का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। यह एक ऐसा मामला है जिस पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना चाहिए।” इस पर जस्टिस बनर्जी ने कहा, “सबसे पुरानी पार्टी! आप पार्टी के भीतर लड़ रहे हैं। कोई कहता है कि मैं अध्यक्ष हूं, कोई और कहता है कि मैं अध्यक्ष हूं।” चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने स्वामी चक्रपाणि की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चक्रपाणि के अध्यक्ष पद पर काबिज होने का तथ्य अत्यधिक विवादित है।

चीफ जस्टिस नें की टिप्पणी

चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की थी, “आधा दर्जन से अधिक लोग इस संगठन के अध्यक्ष होने का दावा कर रहे हैं।” कोर्ट ने कहा कि भारत के चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दल के इस आंतरिक विवाद को तय करने की शक्ति या अधिकार क्षेत्र नहीं है और संबंधित व्यक्ति एक सक्षम सिविल कोर्ट से पार्टी में अपनी स्थिति के बारे में घोषणा की मांग कर सकते हैं।

उच्च न्यायालय मे यह 

पृष्ठभूमि स्वामी चक्रपाणि ने अखिल भारत हिंदू महासभा (ABHM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनके नेतृत्व में पदाधिकारियों की सूची को मान्यता देने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने से इनकार करने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष अपील की थी। याचिका में चुनाव आयोग को सूची को मान्यता देने और उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई।


यह भी समझनें वाली बात है।

 


 

स्वामी चक्रपाणि की ओर से यह दिये गये साक्ष्य

यह प्रस्तुत किया गया कि चक्रपाणि को पहली बार 2006 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। नवंबर 2020 में भी उन्हें चुनाव आयोग द्वारा पार्टी के अध्यक्ष के रूप में मान्यता दी गई थी। हालांकि, जनवरी 2011 में आयोग ने प्रतिद्वंद्वी दावों के मिलने पर उपरोक्त मान्यता वापस ले ली। इसी तरह के मुद्दे पर मुकदमेबाजी के पहले दौर में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने यह माना कि संगठन के अध्यक्ष होने का दावा करने वाले व्यक्ति को सक्षम न्यायालय से इस संबंध में एक घोषणा प्राप्त करनी होगी। डिवीजन बेंच ने एलपीए 522/2011 में फैसला सुनाया, “यह उस व्यक्ति के लिए है जो अध्यक्ष/ पदाधिकारी के रूप में अधिकारों का प्रयोग करना चाहता है। यह ऐसे पद के लिए घोषणा की मांग करता है और उसे केवल इस कारण से पद धारण करने या उसकी शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि दूसरों ने न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया है।”

उच्च न्यायालय में इस मामले में की इस सन् में पड़ी थी नींव

हाईकोर्ट के समक्ष जुलाई, 2012 में एक पुनर्विचार याचिका में इस स्थिति की पुष्टि की गई और इसके खिलाफ एक एसएलपी को मई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। यह कहते हुए कि न्यायालय न्यायिक पदानुक्रम से बाध्य है, हाईकोर्ट ने आदेश में कहा, “हमें इस एलपीए पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता है।” इसमें कहा गया कि कथित आपराधिक शिकायतों का विवादित दावे के साथ “सीधा संबंध” हो सकता है। केस शीर्षक: स्वामी चक्रपाणि बनाम भारत निर्वाचन आयोग।

अखिल भारत हिंदू महासभा युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष अरूण पाठक नें दिया चेतावनी

वहीं अखिल भारत हिंदू महासभा  के राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष श्री अरूण पाठक नें कहा है कि फर्जी अध्यक्ष लिखनें वाले होशियार हो जायें, व फर्जी पद का उपयोग करना बंद कर दें। कारण अखिल भारत हिंदू महासभा की इकलौती अध्यक्ष सुश्री राजश्री चौधरी (प्रपौत्री नेता जी सुभाष चन्द्र बोस) ही हैं, जो कि संगठन द्वारा द्वारा चुनी गयी हैं। अन्य कोई भी यदि अखिल भारत महासभा का अध्यक्ष स्वयं को लिखता है तो सर्वथा गलत है, हम संगठन की ओर से इनपर संवैधानिक कार्यवाही के लिये बाध्य होंगे, जिसमें होनें वाली समस्त क्षति के लिये उक्त व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार होगा।


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