देश विदेश (रमेश श्रीवास्तव)। गूगल- डूडल ने पीके रोज़ी को सम्मानित किया। पीके रोजी मलयालम सिनेमा में पहली अभिनेत्री थीं। उन्हें पर्दे पर देखते ही सिनेमा हॉल के पर्दे पर पत्थर फेंके गए, कुर्सियां तोड़ी गईं और बाद में हिंसक भीड़ ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया।
हिंसा का मूल कारण था जाति। सवर्ण जातियों में गुस्सा था कैसे एक पिछड़ी जाति की लड़की अभिनेत्री बन सकती है और अभिनेत्री बनकर रुपहले पर्दे पर नायर जाति की महिला का किरदार निभा सकती है।
स्वतंत्रता दौर के केरल में साल 1928 में जेसी डेनियल नाम के एक सवर्ण ईसाई फिल्म निर्देशक मलायलम भाषा की पहली साइलेंट फ़िल्म विघाथाकुमारण बनाते है जिसमे अन्य कलाकारों के साथ पीके रोजी को मुख्य अभिनेत्री के तौर पर साइन करते हैं। पीके रोजी का पूरा नाम राजम्मा था जो पुलाया नाम की जाति से थीं जिसका पेशा नाच गाना के अलावा वास्तुकला बनाना भी था।
मलायलम सिनेमा के इतिहास की पहली फिल्म में हेरोइन बनने के बाद पीके रोजी की ज़िंदगी नर्क बन गयी। फ़िल्म रिलीज होने से पहले ही पूरा केरल उग्र हो चुका था। एक पिछड़ी जाति यानी श्रमिक वर्ग की लड़की का हेरोइन बनना सवर्ण समाज बर्दाश्त नही कर पा रहा था।
तिरुवनंतपुरम के कैपिटल सिनेमा में फ़िल्म का प्रीमियर था, लेकिन हिंसा के डर से पीके रोजी फ़िल्म प्रीमियर में नही आ सकी। रिलीज के बाद हिंसा इतनी भड़की की थिएटर में तोड़फोड़ हुई और उसके बाद पीके रोजी का घर भी जला दिया गया।
पीके रोजी ने अपनी जान बचाने की खातिर केरल छोड़ दिया और तमिलनाडु में शादी कर रहने लगीं। उनके बच्चे बड़े होने तक केवल इतना जानते थे उनकी माँ थिएटर आर्टिस्ट है। अगर ये पिछड़ी जाति की नही होती तो पीके रोजी अन्य अभिनेत्रियों की तरह चमकता हुआ सितारा होती। लेकिन हिन्दू जातीय व्यवस्था ने उन्हें एक फ़िल्म के बाद वनवास में भेज दिया। गूगल डूडल को पीके रोजी को सम्मानित करने के लिए धन्यवाद ।