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हथकड़ी, पुलिस का पहरा… जिगर के टुकड़े का अंतिम संस्कार करने पहुंचा उम्रकैद काट रहा बाप।

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कहा जाता है कि मानव सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है। लेकिन इन पंक्तियों को सेवाधाम आश्रम ने सच कर दिखाया है। ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले से सामने आया है। जहां ऐसे ही दिव्यांग बेटे का अंतिम संस्कार करवाने के लिए केंद्रीय भैरवगढ़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पिता की पैरोल करवाई गई की। उसके बाद दिव्यांग का अंतिम संस्कार करवाया गया। यह एक ऐसा बच्चा था जिसे जीते जी न मां का प्यार मिला न बाप का, मां का प्यार क्योंकि मां अपने ही बेटे को न तो दो वक्त की रोटी दे पाने में समर्थ थी और न ही उसका इलाज करवाने को पैसे उसके पास थे, बाप भी मासूम के दुनिया में आने से पहले ही लूटपाट एवं हत्याकांड में आजीवन जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया।



दरअसल, पति के जेल जाने के बाद गर्भवती पत्नी ने जिस मासूम को जन्म दिया। वह जन्म से ही दिव्यांग था और किस्मत ने उसे अंकित ग्राम, सेवाधाम आश्रम पहुंचा दिया। यहां मासूम का हर तरह से न सिर्फ ध्यान रखा गया, बल्कि उचित इलाज भी दिया गया, लेकिन जन्म से ही गंभीर बीमारियों के चलते आश्रम में उसने जिंदगी का दामन छोड़ दिया। अंकित ग्राम सेवाधाम आश्रम संस्थापक सुधीर भाई ने बताया कि साल 2020 में जिला कलेक्टर उज्जैन ने दिव्यांग 5 साल के बच्चे को सेवाधाम आश्रम में प्रवेश दिया गया जो।

क्या है मामला?

वहीं, उसके पिता 2014 से केंद्रीय जेल भेरूगढ़ में आजीवन कारावास की सजा काट रहे है। जबकि, मां अपने बिस्तरग्रस्त दिव्यांग बेटे को संभालने में असमर्थ थी, जिसे भी जिला कलेक्टर शशांक मिश्र के आदेश से सेवाधाम आश्रम ने अपनाया गया है। वहीं, बच्चे की अचानक तबीयत खराब होने पर उसे जिला अस्पताल भेजा गया। जहां जिला अस्पताल में मौत के बाद उसके परिवार से संपर्क किया गया। लेकिन परिवार अंतिम संस्कार में सम्मिलित नहीं हो पा रहा था. तब उसके पिता केंद्रीय जेल में सजा काट रहे है। उसकी जानकारी तत्काल जिला प्रशासन को दी गई। इस दौरान 3 घंटों में एक्शन दिखाते हुए मानवीय संवेदनाओं के तहत सजायाफ्ता पिता को अंतिम संस्कार हेतु पेरोल का आदेश दिया।

बच्चे के पोस्टमार्टम के बाद पिता ने सुधीर भाई की उपस्थिति में अपने बेटे के अंतिम दर्शन कर अंतिम संस्कार किया। इस दोरान सभी की आंखे नम थीं। वहीं, पिता को गहरा अफसोस था कि वह पूर्व में पेरोल पर होते हुए भी अपने बेटे को जीवित नहीं मिल सका।

अंतिम दर्शन के लिए पिता की 3 घंटे में कराई गई थी पैरोल

इस दौरान सुधीर भाई ने बताया कि आश्रम में जब किसी की मौत होती है तो अंतिम संस्कार वे खुद करते है। लेकिन यदि आश्रम में रहने वाले का कोई भी रिश्तेदार देश में कहीं भी है तो उसे न सिर्फ सूचित किया जाता है। बल्कि अंतिम संस्कार भी वही करें ऐसा प्रयास किया जाता की। ऐसे में 8 साल के मासूम के मामले में भी जब उसकी मां से सम्पर्क किया तो उसकी जानकारी नहीं मिल पा रही कि। इस पर परिजनों ने कहा कि हम लोग कोई नही आएंगे आप लोग ही अंतिम संस्कार कर दें। लेकिन सुधीर भाई यह चाहते थे कि मासूम के अंतिम दर्शन उसके पिता तो कर ले।



लेकिन समस्या थी कि उसके पिता केन्द्रीय जेल भैरवगढ़ में आजीवन सजा काट रहे और। मगर, सुधीर भाई ने हार नहीं मानी और आश्रम के अथक प्रयासों से महज साढे तीन घंटे आपात पैरोल के आदेश जिला प्रशासन ने देकर उसके मासूम बेटे का अंतिम संस्कार पिता ने पूरा किया। इस काम में बालगृह अधीक्षक शैलेन्द्र कुमावत का सराहनीय योगदान रहा।


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