आईएएस नियाज खान की किताब ब्राह्मण द ग्रेट के पहले अध्याय का हिंदी अवतरण।
नमस्कार मित्रों, मैं पहले अपना परिचय दे देता हूँ कि मैं कौन हूँ और अपने जीवन से क्या चाहता हूँ? मेरा नाम शुभेन्द्र है, पर मैं जूनियर कौटिल्य के नाम से जाना जाना ज्यादा पसंद करता हूँ मैं विशुद्ध ब्राह्मण हूँ, भगवान ब्रह्मा की पवित्र रचना, वह रचना जो उनके मुख से निकली है, मुख जो कि शरीर का सबसे पवित्र अंग होता है और इसलिए मुझे भारतीय वर्ण व्यवस्था में सर्वोपरि स्थान दिया गया है। मुझे दैवीय उद्भव वाले अपने वर्ण पर गर्व है। ब्राह्मण हमेशा सर्वोच्च होता है और उसकी सर्वोच्चता को पहले भी चुनौती नहीं दी जा सकती थी और अब भी नहीं दी जा सकती है।
मैं कौटिल्य महान का प्रबल समर्थक हूँ और इसलिए स्वयं के लिए जूनियर कौटिल्य संबोधन पसंद करता हूँ, और मेरा जीवन लक्ष्य भी वही है जो कौटिल्य महान का था। चाणक्य की तरह ही मैंने भी अपने हृदय में एक महान महत्वाकांक्षा पाली हुई है। ब्राह्मण चाणक्य की महत्वाकांक्षा थी वासना में डूबे नंद वंश के क्रूर शासक राजा धनानंद को सत्ताच्युत करके उसकी जगह अपने प्रिय शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को, जिसे कि उन्होंने तराशकर हीरा बना दिया था, सत्तासीन करने की भारत के सबसे बड़े साम्राज्य को खड़ा करने में चाणक्य का महत्वपूर्ण योगदान था।
अपने दृढ़ संकल्प और देश के प्रति अपने प्रेम के चलते ही वह देश को एक ऐसा सम्राट देने में सफल हुए थे। जिसने आगे चलकर एक अतिशक्तिशाली भारत का निर्माण किया। चाणक्य या कौटिल्य को उनकी सादगी, ईमानदारी और कुशाग्र बुद्धि के लिए जाना जाता है, जो सभी ब्राह्मणों के अंतर्निहित गुण हैं। दूसरों को ये अमूल्य उपहार/ गुण नहीं मिले हैं। भगवान ब्रह्मा ने हमें चुना है अपने ज्ञान से दूसरों का नेतृत्व करने के लिए पुजारी बनने के लिए, धार्मिक कर्म- काण्ड कराने के लिए योग्य पात्रों को शिक्षा का दान देने के लिए, और बेहतर शासन के लिए क्षत्रिय राजाओं को मार्गदर्शन देने के लिए चाणक्य ने ब्राह्मणों के वर्चस्व का एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत किया था और मैंने जब उनकी उपलब्धियों के बारे में पढ़ा तो पल भर में ही उनका शिष्य बन गया।
उस समय में संयुक्त राज्य अमेरिका में रहता था और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ के पद पर कार्यरत था। मेरे पास पैसे और पावर की कोई कमी नहीं थी। लेकिन यह सुनकर आप अचरज में पड़ जाएंगे कि आज मेरा वही रूप और वेश है जो कौटिल्य का हुआ करता था। उन्हीं के समान अब मैं भी घुटा हुआ सिर और एक लंबी मोटी शिखा रखता हूँ, उन्हीं के समान बेदाग धोती पहनता हूँ, जनेऊ धारण करता हूँ, पैरों में मेरे उन्हीं के समान लकड़ी की खड़ाऊँ होती है और मेरे मजबूत कंधे पर हमेशा एक झोला लटका रहता है। है न यह एक अविश्वसनीय परिवर्तन? पर मैंने अपने आप को इतना क्यों बदला? जब मैं सीईओ था तब मेरी जीवन- शैली गोरे लोगों से अत्यधिक प्रभावित थी और मेरी हर शाम न्यूयॉर्क के किसी शानदार बार में ही गुजरती थी। में अपने गंदे अतीत को थोड़ा- थोड़ा करके आपके सामने लाऊँगा, लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप पहले मेरी वर्तमान स्थिति देखें। मैं अब एक अतीव निर्धन ब्राह्मण का जीवन जी रहा हूँ। वाराणसी जिले में माँ गंगा के समीप एक घासफूस की छत वाली मिट्टी की कुटिया में रहता हूँ।
One chapter Hindi translation of BRAHMIN THE GREAT. Please share on WhatsApp groups and Facebook. People are curious to read Hindi. Also post comments please pic.twitter.com/Olu46T3ghZ
— Niyaz Khan (@saifasa) March 14, 2023