आम लोगों के साथ अभावों में जिंदगी बसर करने वाले की उम्मीदों को भी पंख लग सकते हैं। अभी दो दिन पहले एक खबर आई थी कि एक चालक की बेटी ने जज की परीक्षा में 7वां स्थान लाकर अपनी जैसी लाखों लड़कियों के लिए एक मिसाल कायम किया है।
अब मध्यप्रदेश के इंदौर शहर से एक दूसरी खबर आई है कि यहां सब्जी बेचकर जिंदगी गुजर करने वाले एक परिवार की 29 साला बेटी ने व्यवहार न्यायाधीश (सिविल जज) वर्ग-दो पद पर कामयाबी हासिल की है।
चौथे प्रयास में मिली कामयाबी
वर्तमान में एलएलएम की स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल करने वाली अंकिता नागर ने बताया कि वह बचपन से कानून की पढ़ाई करना चाहती थीं। उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई के दौरान तय कर लिया था कि उन्हें एक दिन जज बनना है। यह उनका चौथा प्रयास था। इससे पहले वह तीन बार इस परीक्षा में असफल हो चुकी थीं।
अदालत में आने वाले हर मजलूम को इंसाफ मिले
अंकिता नागर ने कहा कि तीन बार नाकाम होने के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए अपने सफर पर चलती रही। इस सफर के दौरान मेरे लिए रास्ते खुलते गए और मैं इस तरह अपनी मंजिल पर पहुंचने में कामयाब रही।
अंकिता नागर ने कहा कि एक जज के तौर पर काम शुरू करने के बाद उनका ध्यान इस बात पर होगा कि उनकी अदालत में आने वाले हर मजलूम को इंसाफ मिले।
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती।
अंकिता के पिता अशोक नागर शहर के मूसाखेड़ी इलाके में सब्जी बेचते हैं। उन्होंने बताया कि परीक्षा की तैयारी के दौरान वक्त मिलने पर अंकिता इस काम में उनका हाथ भी बंटाती रही है। अपनी बेटी की कामयाबी पर अशोक नागर ने कहा कि उनकी बेटी मेरे जैसे तमाम लोगों के लिए एक मिसाल है कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती है।