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बौद्धों से निपटने के लिए ही पूज्य गुरुदेव भगवान शंकराचार्य जी ने 13 अखाड़ों की रचना- दीक्षित

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बौद्ध व्यवस्था से निपटने में सैन्य शक्ति की भारी कमी को देखकर व बौद्धों से निपटने के लिए ही पूज्य गुरुदेव भगवान शंकराचार्य जी ने 13 अखाड़ों की रचना की थी।

आइए जानते इन अखाड़ों के विषय में।

आदि शंकराचार्य जी ने आठवीं सदी में बनाए थे 13 अखाड़े। इन अखाड़ों का गठन हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए किया गया था।उस दौर में वैदिक संस्कृति और यज्ञ परंपरा संकट में थी, क्योंकि बौद्ध धर्म तेजी से भारत में फैल रहा था और बौद्ध धर्म में यज्ञ और वैदिक परंपराओं का निषेध था। मूलतः धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की एक सेना की तर्ज पर ही अखाड़ों को तैयार किया गया था। जिसमें उन्हें योग, अध्यात्म के साथ शस्त्रों की भी शिक्षा दी जाती है। आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं। नासिक कुंभ को छोड़कर बाकी कुंभ मेलों में सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते हैं। नासिक के कुंभ में वैष्णव अखाड़े नासिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं। यह व्यवस्था पेशवा के दौर में कायम की गई जो सन 1772 से चली आ रही है।

क्या होता है अखाड़ों का अंतर 

अखाड़ों की अपनी व्यवस्थाएं होती हैं, लेकिन आदि शंकराचार्य ने इन 10 अखाड़ों (शैव और उदासीन) की व्यवस्था चार शंकराचार्य पीठों के अधीन की है। इन अखाड़ों की कमान शंकराचार्यों के पास होती है। अखाड़ों की व्यवस्था के लिए कमेटी के चुनाव होते हैं, लेकिन अखाड़ा प्रमुख का पद अलग होता है, जो अखाड़ों की अगुआई करता है। 10 शैव अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर पद सबसे बड़ा होता है, ये अखाड़े के प्रमुख आचार्य होते हैं, जिनके मार्गदर्शन में अखाड़े काम करते हैं, महंत और महामंडलेश्वर स्तर के संतों की अखाड़े में एंट्री इन्हीं की अनुमति से होती है और ये ही उनके आचार्य माने जाते हैं।

वहीं, वैष्णव अखाड़ों में अणि महंत पद सबसे बड़ा होता है। इसमें महामंडलेश्वर जैसे पदों के समतुल्य श्रीमहंत पद होता है। इन सभी श्रीमहंतों के आचार्य को अणि महंत कहा जाता है, जो अखाड़े का संचालन करते हैं।

13 अखाड़े कौन से हैं?

परंपरा के मुताबिक शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। इन अखाड़ों का नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है।

शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की पहचान है। यह साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में पारंगत होता है। अखाड़ों से जुड़े संतों के मुताबिक जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ। इन अखाड़ों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया था। शुरू में सिर्फ 4 प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया।

इन अखाड़ों को अखाड़ा नाम कैसे मिला?

अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। हालांकि, कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ‘अखाड़ा’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। जबकि, धर्म के कुछ जानकारों के मुताबिक साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते इसे अखाड़ा का नाम दिया गया है।

ये अखाड़े कैसे करते हैं काम?

कुंभ में शामिल होने वाले सभी अखाड़े अपने अलग-नियम और कानून से संचालित होते हैं। यहां जुर्म करने वाले साधुओं को अखाड़ा परिषद सजा देता है। छोटी चूक के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने के लिए भेजा जाता है। डुबकी के बाद वह भीगे कपड़े में ही देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगता है। फिर पुजारी पूजा स्थल पर रखा प्रसाद देकर उसे दोषमुक्त करते हैं। विवाह, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। अखाड़े से निकल जाने के बाद ही इन पर भारतीय संविधान में वर्णित कानून लागू होता है।

अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ें-भिड़ें, कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो, छावनी के भीतर से किसी का सामान चोरी करते हुए पकड़े जाने, देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश, कोई साधु किसी यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करे, अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए तो उसे अखाड़े की अदालत सजा देती है। अखाड़ों के कानून को मानने की शपथ दिलाकर ही साधु को अखाड़े में शामिल किया जाता है।


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